Friday, June 14, 2013

प्राइम टाइम की बहसें

http://web.archive.org/web/20140420082756/http://hindini.com/fursatiya/archives/4382

प्राइम टाइम की बहसें

prime timeआजकल हर चैनल पर प्राइम टाइम बहस का रिवाज है. देश में कोई भी बवाल हुआ, प्राइम टाइम का एंकर चार लोगों को इकट्ठा करके बहस करने लगता है. इस बारे में आपका क्या कहना है, आप इसको किस तरह से देखते हैं, आपकी पार्टी का मत क्या है? सवाल-जबाब, बहस के बीच तीन चार ठो कामर्शियल ब्रेक निकल आते हैं
.
घंटा पूरा हो जाता है. ज्यादातर बहस राजनीतिक मामलों में होती है. किसी नेता ने कुछ बयान दिया, कोई घोषणा की बस उस पर बहस शुरु. बहस वाले दिन तो ऐसा लगता है कि नेता का बयान उसका अटल सत्य है.
अब उसी पर टिका रहेगा. बदलेगा नहीं. लेकिन होता यह है कि अगले दिन उसी नेता के एकदम उलट बयान पर चर्चा हो रही है. राजनीतिक पार्टियों की प्रवक्ता तो एकदम रट्टू तोताओं की तरह बयानबाजी करते हैं. उनसे उनकी पार्टी की किसी गड़बड़ी के बारे में बात करिये तो वे दूसरी पार्टी की पच्चीस गड़बड़ियां एक सांस में गिना देते हैं. कभी-कभी तो ताज्जुब होता है कि उसने एंकर को इस बात के लिये सरे बहस डांटा क्यों नहीं कि उसको दूसरी पार्टी के ये पाप क्यों नहीं पता? आजकल प्राइमटाइम पर अगले साल होने वाले चुनाव का हल्ला है. अगला प्राइम मिनिस्टर कौन होगा सब इस पर कयास लगाते हैं.
अपने यहां आज तक जितने प्रधानमंत्री चुने गये उनमें से दो-तीन को छोड़कर शपथ ग्रहण के समय तक पता नहीं चला कि शपथ के लिये माइक के सामने कौन खड़ा होगा. फ़िर काहे को हलकान हैं जी? जो राजनीति, कूटनीति करनी हो वो अपने में करते रहो. चुनाव में जब जीत जाओ तो चुन लेना प्रधानमंत्री भी. कौन देश कहीं भागा जा रहा है, कर लेना सेवा भी. टीवी वाले नामी गिरामी लोगों को बुलाकर बहस कराते हैं. वे सब भी अक्सर घिसी-पिटी बातें करते हैं.
इससे अच्छा तो किसी दिन शहर के नुक्कड़ पर अपना स्टूडियो लगाकर सीधा प्रसारण किया जाये. उसमें कम से कम लोगों के बयान प्रायोजित तो नहीं लगेंगे. देश में इत्ती समस्यायें हैं कि उनको कोई एक अकेला आदमी कभी भी दूर नहीं सकता. प्रधानमंत्री आते रहेंगे, जाते रहेंगे. समस्यायें कम-ज्यादा ऐसी ही बनी रहेंगी अगर सब लोग सुधार की नहीं सोचते. किसी सरकार/प्रधानमंत्री के आते ही देश सुधर जाने की सोचना खामख्याली ही है. कभी प्राइम टाइम पर इस विषय पर भी बहस होनी चाहिये.

6 responses to “प्राइम टाइम की बहसें”

  1. राहुल सिंह
    प्राइम टाइम की बातें, बातें हैं बातों का क्‍या.
    राहुल सिंह की हालिया प्रविष्टी..लघु रामकाव्‍य
  2. प्रवीण पाण्डेय
    सब अपना टाइम अब प्राइम कर लें..
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..खिड़की पर गिलहरी
  3. shikha varshney
    इस प्राइम टाइम की बहस ने तो मेरा टीवी न्यूज़ देखना ही छुडवा दिया है :(
  4. sanjay jha
    (:(:(:
    प्रणाम.
  5. : फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] प्राइम टाइम की बहसें [...]
  6. vogue magazine
    Merely the smiling visitant here to talk about the love btw excellent design. Audacity, more audacity and also always audacity. by Georges Jacques Danton.

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