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दिन बहुरने के इंतजार में काला धन
By फ़ुरसतिया on June 19, 2013
आजकल बेचारे कालेधन की मरन है
कोई भी घपला होता है, काले धन पर तोहमत लगती है। ब्लैक मनी की थू-थू होती है.
जैसे नेता चमचे के बिना, महन्त चेले के बिना, आई.पी.एल. फ़िक्सिंग के बिना अधूरा लगता है वैसे ही कोई भी घपला काले धन की चर्चा के बिना अधूरा लगता है. घपला अगर कोई आधुनिक जटिल कविता है तो काला धन उसका आम जनता की समझ में आने वाला सरल अनुवाद है. घोटाला यदि कोई अबूझ सिद्धांत है तो काला धन उसकी सहज टीका है.
जैसे पार्टियां चंदे के बिना, नेता लफ़्फ़ाजी के बिना, लेखक अपनी उपेक्षा का रोना रोये बिना नहीं रह पाता वैसे ही दुनिया का कोई भी बड़ा धन्धा बिना काले धन के नहीं पनप सकता.
दुनिया में जितने भी मजबूत धन्धे हैं चाहे वह हथियार का हो, धर्म का हो या फ़िर शिक्षा का ही क्यों न हो, सबकी बुनियाद में काले धन की सीमेन्ट लगी है। काला धन न हो तो स्विस बैंक फ़ुस्स बैंक होकर रह जाये.
अपने देश में पिछले बीस सालों में जित्ता विकास हुआ है, काला धन उससे कई गुना ज्यादा बढ़ा है. गणित की भाषा में कहें तो किसी भी आधुनिक समाज का विकास उस समाज में मौजूद कालेधन की मात्रा का समानुपाती होता है.
इस सबके बावजूद कालेधन को लोग इज्जत की निगाह से नहीं देखते. कालाधन कमाने वाला तक खुलेआम उसकी आलोचना ही करता है. राजनीतिज्ञ चुनाव भले काले धन के सहारे लड़ें लेकिन सार्वजनिक रूप से कालेधन की ऐसी बुराई करते हैं जैसे वामपंथी, दक्षिणपंथियों की करते हैं, अमेरिकी क्यूबा की करते हैं, पाकिस्तान वाले भारत की करते तरह हैं.
अपने प्रति दुनिया का यह द्वंदात्मक इज्जतवाद देखकर बेचारे कालेधन के दिल पर क्या बीतती होगी. दुनिया के धोखे को देखकर उसका मन भी जिया खान की तरह लटककर निपट जाने का करता होगा. उसका भी मन करता होगा कि सरकारी गवाह बन जाये और सबकी पोल खोल दे कि कैसे तमाम लोगों से उसके अंतरंग संबंध रहे. कैसे लोगों ने उसका सहारा लिया, आगे बढ़े, और सहारा लिया लेकिन जब सफ़लता के किस्से सुनाने की बारी आयी तो श्रेय अपनी मेहनत, लगन और बुद्धि को दिया। कालेधन के योगदान की सरासर उपेक्षा कर दी.
यह वैसा ही है कि किसी देश के इतिहास में राजा रानियों के किस्से लिखे जायें लेकिन मेहनतकश जनता की कहानी गोलकर दी जाये.
लेकिन फ़िर कालाधन शायद यह सोचकर चुप रह जाता होगा कि अपराधी कोई भी हो लेकिन बुराई उसी की होनी है. बेइज्जती तो उसी की खराब होनी है.
इसके बाद शायद वह यह सोचकर चुपचाप अपनी करतूतों में जुट जाता होगा कि आजनहीं तो कल उसको वह इज्जत अवश्य मिलेगी जिसका वह हकदार है। उसको भी खुले आम उतनी ही स्वीकार्यता मिलेगी जितनी की आज समाज में जातिवाद, संकीर्णता, भाई भतीजावाद, भाग्यवाद और काहिली को मिली है.
काला धन सोचता होगा- जैसे बाकियों के दिन बहुरे क्या पता वैसे ही उसके भी बहुरैं.
कोई भी घपला होता है, काले धन पर तोहमत लगती है। ब्लैक मनी की थू-थू होती है.
जैसे नेता चमचे के बिना, महन्त चेले के बिना, आई.पी.एल. फ़िक्सिंग के बिना अधूरा लगता है वैसे ही कोई भी घपला काले धन की चर्चा के बिना अधूरा लगता है. घपला अगर कोई आधुनिक जटिल कविता है तो काला धन उसका आम जनता की समझ में आने वाला सरल अनुवाद है. घोटाला यदि कोई अबूझ सिद्धांत है तो काला धन उसकी सहज टीका है.
जैसे पार्टियां चंदे के बिना, नेता लफ़्फ़ाजी के बिना, लेखक अपनी उपेक्षा का रोना रोये बिना नहीं रह पाता वैसे ही दुनिया का कोई भी बड़ा धन्धा बिना काले धन के नहीं पनप सकता.
दुनिया में जितने भी मजबूत धन्धे हैं चाहे वह हथियार का हो, धर्म का हो या फ़िर शिक्षा का ही क्यों न हो, सबकी बुनियाद में काले धन की सीमेन्ट लगी है। काला धन न हो तो स्विस बैंक फ़ुस्स बैंक होकर रह जाये.
अपने देश में पिछले बीस सालों में जित्ता विकास हुआ है, काला धन उससे कई गुना ज्यादा बढ़ा है. गणित की भाषा में कहें तो किसी भी आधुनिक समाज का विकास उस समाज में मौजूद कालेधन की मात्रा का समानुपाती होता है.
इस सबके बावजूद कालेधन को लोग इज्जत की निगाह से नहीं देखते. कालाधन कमाने वाला तक खुलेआम उसकी आलोचना ही करता है. राजनीतिज्ञ चुनाव भले काले धन के सहारे लड़ें लेकिन सार्वजनिक रूप से कालेधन की ऐसी बुराई करते हैं जैसे वामपंथी, दक्षिणपंथियों की करते हैं, अमेरिकी क्यूबा की करते हैं, पाकिस्तान वाले भारत की करते तरह हैं.
अपने प्रति दुनिया का यह द्वंदात्मक इज्जतवाद देखकर बेचारे कालेधन के दिल पर क्या बीतती होगी. दुनिया के धोखे को देखकर उसका मन भी जिया खान की तरह लटककर निपट जाने का करता होगा. उसका भी मन करता होगा कि सरकारी गवाह बन जाये और सबकी पोल खोल दे कि कैसे तमाम लोगों से उसके अंतरंग संबंध रहे. कैसे लोगों ने उसका सहारा लिया, आगे बढ़े, और सहारा लिया लेकिन जब सफ़लता के किस्से सुनाने की बारी आयी तो श्रेय अपनी मेहनत, लगन और बुद्धि को दिया। कालेधन के योगदान की सरासर उपेक्षा कर दी.
यह वैसा ही है कि किसी देश के इतिहास में राजा रानियों के किस्से लिखे जायें लेकिन मेहनतकश जनता की कहानी गोलकर दी जाये.
लेकिन फ़िर कालाधन शायद यह सोचकर चुप रह जाता होगा कि अपराधी कोई भी हो लेकिन बुराई उसी की होनी है. बेइज्जती तो उसी की खराब होनी है.
इसके बाद शायद वह यह सोचकर चुपचाप अपनी करतूतों में जुट जाता होगा कि आजनहीं तो कल उसको वह इज्जत अवश्य मिलेगी जिसका वह हकदार है। उसको भी खुले आम उतनी ही स्वीकार्यता मिलेगी जितनी की आज समाज में जातिवाद, संकीर्णता, भाई भतीजावाद, भाग्यवाद और काहिली को मिली है.
काला धन सोचता होगा- जैसे बाकियों के दिन बहुरे क्या पता वैसे ही उसके भी बहुरैं.
Posted in बस यूं ही | 6 Responses
टापने वाला टाप्चिक लाइन है .
प्रणाम.
कित्ते बाबा लोग इसी चक्कर में पेल दिए गए , पेलने वालों का अपना फायदा हुआ , बाबा जी की भी दुकान चला निकली | अब बताइए धन कहीं बुरा होता है ????
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..इतिहास में डुबकी और बिजली का टोका !!!
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..जो है, सो है
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..भई यह पितृ दिवस ही है पितृ विसर्जन दिवस नहीं!