Saturday, March 01, 2014

हमारा भी डी.ए. बढवाओ न दादा


#‎सूरज‬ भाई शनिवारी अन्दाज में हैं। खरामा-खरामा टहलते हुये आ रहे हैं। लेकिन किरणों को फ़टाफ़ट चमकने के लिये हुकुम फ़रमा दिया है। किरणें सूरज भाई से मौज ले रही हैं। एक किरण कह रही हैं-- आज तो वीकेन्ड है दादा! आज जरा आहिस्ते से रहने दो। दूसरी कह रही है -हमारा भी डी.ए. बढवाओ न दादा । सबका बढ गया।
एक पेड़ के आधे हिस्से में धूप पहुंच गयी है। आधे में अभी नहीं पहुंची है। जिस हिस्से में पहुंच गयी है वे मारे खुशी के चकमक हो रहे हैं। जिनमें नहीं पहुंची वे हिल-हिलकर अपना रोष व्यक्त कर रहे हैं। हवा का ड्रम बजाते हुये हाय-हाय कर रहे हैं। सूरज दादा समझा रहे हैं कि अभी आयेंगे भाई थोड़ी देर में तुम्हारे पास भी लेकिन वे पत्ते हल्ला मचाने से बाज नहीं आ रहे हैं।

रोशनी से नहाये हुये घास-फ़ूस-फ़ूल-पौधे पेड़ों को मुंह बिरा रहे हैं। सर तान के हिलते हुये कह रहे हैं शायद कि बड़े होने से क्या फ़ायदा जब धूप तक नहीं पहुंच रही तुम तक। पेड़ के पत्ते सूरज से शिकायत करना छोकर पड़ोसियों की तरह उनसे झगड़ने लगे हैं। ’एयरएप्स’ का प्रयोग करते हुये दनादन एक दूसरे से बहस कर रहे हैं। उनको देखकर लग रहा है जैसे वे किसी चैनल पर प्राइम टाइम बहस कर रहे हों।

उधर घरों में बच्चों के मां-बाप अपने बच्चों को तैयार करके स्कूल भेजने में जुटे हैं। बच्चों के इम्तहान शुरु हो रहे हैं। कुछ मायें दही-टीका लगा रही हैं। आज तौलिया गीला बिस्तर पर छोड़ देने पर बच्चे डांटे नहीं जा रहे हैं। बच्चे किताब-कापी लिये हुये रिवीजन करते हुये नाश्ता करते इम्तहान के लिये तैयार हो रहें हैं। किरणों, फ़ूलों ,पत्तियों, हवा जिसको भी पता लगा वे सब बच्चों को ’आल द बेस्ट”कह रहे हैं। एक किरण दूसरी के गले लगते हुये कह रही है--कित्ता अच्छा है न अपन का कोई इम्तहान नहीं होता।

इस सब कार्य व्यापार से बेखबर यह बच्चा दुनिया को कौतूहल से देख रहा है। सूरज भाई चाय पीते इस बच्चे को दुलरा रहे हैं। इसकी आंखों में बैठकर किरणों को मुस्तैदी से खिलने का निर्दश दे रहे हैं। सबेरा अब हो ही गया है।
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