शनिवार की सुबह #सूरज
भाई भी अलसाये हुये हैं। किरणें आराम आराम से चमक रही हैं। पत्ते, पौधे,
फ़ूल अलबत्ता फ़ड़फ़ड़ा रहे हैं। बीच-बीच में हवा चलती है तो फ़ड़फ़ड़ाहट तेज हो
जाती है।
जैसे ट्रेन आने पर आटो वाले यात्रियों पर टूट पड़ते हैं।सटते हुये कहते हैं -आइये होटल तक छोड़ देते हैं। पांच रुपये लगेंगे। वैसे ही तमाम पत्ते, घास के पौधे सूरज की किरणों को अपने साथ ले जाने का जतन करते प्रतीत हो रहे हैं। एक पत्ता एक किरण के पास आकर साथ चलने के लिये कह रहा था कि पीछे से तमाम पत्तों की धक्कममुक्का से वह किरण के जरा ज्यादा ही नजदीक पहुंच गया। सट सा गया उससे। किरण ने उसे अंग्रेजी में डपट सा दिया। शायद यू इडियट भी कहा। पत्ता सहम कर पीछे हट गया। उसने सॉरी बोला। इसके बाद वह इस इंतजार में स्टेचू बना रहा कि किरण ’गैंग ऑफ़ वासेपुर’ की नायिका की तरह कब कहती है-- हम कोई मना थोड़ी कर रहें सटने को लेकिन पूछना तो चाहिये न आपको।
लेकिन किरण ने ऐसा कुछ नहीं कहा। इठलाती, चमकती हुयी आगे जाकर एक फ़ूल के पास जाकर रुकी। फ़ूल ने किरण की चमक, रोशनी और जगमगाहपूछनाट ले ली और उसके स्वागत में बिछ गया। किरण उस फ़ूल पर पसर गयी। आसपास के सब लोग उनको देखने के इकट्ठा हो गये। तितलियां और भौंरे पत्रकारों की तरह उनके पास आकर फ़ोटो सत्र में जुट गये।
पास ही एक और फ़ूल है। अभी ताजा ही खिला है। झटके से। उस पर कोई किरण नहीं पसरी थी अभी। थोड़ा साइड में होने के चलते दिखने में भी कम आ रहा था। उस तक तितलियां कम पहुंच रहीं थी। वह चमकते और चर्चा में आये फ़ूल को हिकारत से देखते हुये कहने लगा-- मीडिया बिका हुआ है। उसकी यह बात सुनते ही वहां भी तितलियां और भौंरे मंडराने लगे।
सूरज की तमाम किरणें समतल जमीन पर पसरी हैं। वे ऊंची इमारतों के दायें-बायें , ऊपर नीचे तो जा रही हैं। लेकिन किसी की हिम्मत अंदर जाने की न हो रही है। उजाला अलबत्ता किसी-किसी इमारत में घुस कर टहल जा रहा है। लगता है यहां सूरज के जाने की मनाही है। यहां रवि नहीं केवल कवि ही जा सकते हैं अंदर। लेकिन कवि होली मौके पर खोये में आलू की तरह अपनी कविताओं में घिसे-पिटे चुटकुले और फ़ूहड़ता मिलाकर होली की कवितायें असेम्बल करने में लगे हैं।
कल बिना नाश्ता किये घर से निकल आई किरण एक कोने में आज मम्मी का दिया टिफ़िन खोलकर नाश्ता करती हुयी मोबाइल पर मेेसेज टाइप करती जा रही है-थैंक्यू, लव यू मम्मा। उसके मेसेज भेजते ही उधर से भी -"इस्माइली के साथ गॉड ब्लेस यू ! "का संदेशा आ गया।
सूरज भाई मेरे साथ चाय पीते हुये यह सब कार्य व्यापार देख रहे हैं।मुस्करा रहे हैं।सुबह सच में हो गयी है।
जैसे ट्रेन आने पर आटो वाले यात्रियों पर टूट पड़ते हैं।सटते हुये कहते हैं -आइये होटल तक छोड़ देते हैं। पांच रुपये लगेंगे। वैसे ही तमाम पत्ते, घास के पौधे सूरज की किरणों को अपने साथ ले जाने का जतन करते प्रतीत हो रहे हैं। एक पत्ता एक किरण के पास आकर साथ चलने के लिये कह रहा था कि पीछे से तमाम पत्तों की धक्कममुक्का से वह किरण के जरा ज्यादा ही नजदीक पहुंच गया। सट सा गया उससे। किरण ने उसे अंग्रेजी में डपट सा दिया। शायद यू इडियट भी कहा। पत्ता सहम कर पीछे हट गया। उसने सॉरी बोला। इसके बाद वह इस इंतजार में स्टेचू बना रहा कि किरण ’गैंग ऑफ़ वासेपुर’ की नायिका की तरह कब कहती है-- हम कोई मना थोड़ी कर रहें सटने को लेकिन पूछना तो चाहिये न आपको।
लेकिन किरण ने ऐसा कुछ नहीं कहा। इठलाती, चमकती हुयी आगे जाकर एक फ़ूल के पास जाकर रुकी। फ़ूल ने किरण की चमक, रोशनी और जगमगाहपूछनाट ले ली और उसके स्वागत में बिछ गया। किरण उस फ़ूल पर पसर गयी। आसपास के सब लोग उनको देखने के इकट्ठा हो गये। तितलियां और भौंरे पत्रकारों की तरह उनके पास आकर फ़ोटो सत्र में जुट गये।
पास ही एक और फ़ूल है। अभी ताजा ही खिला है। झटके से। उस पर कोई किरण नहीं पसरी थी अभी। थोड़ा साइड में होने के चलते दिखने में भी कम आ रहा था। उस तक तितलियां कम पहुंच रहीं थी। वह चमकते और चर्चा में आये फ़ूल को हिकारत से देखते हुये कहने लगा-- मीडिया बिका हुआ है। उसकी यह बात सुनते ही वहां भी तितलियां और भौंरे मंडराने लगे।
सूरज की तमाम किरणें समतल जमीन पर पसरी हैं। वे ऊंची इमारतों के दायें-बायें , ऊपर नीचे तो जा रही हैं। लेकिन किसी की हिम्मत अंदर जाने की न हो रही है। उजाला अलबत्ता किसी-किसी इमारत में घुस कर टहल जा रहा है। लगता है यहां सूरज के जाने की मनाही है। यहां रवि नहीं केवल कवि ही जा सकते हैं अंदर। लेकिन कवि होली मौके पर खोये में आलू की तरह अपनी कविताओं में घिसे-पिटे चुटकुले और फ़ूहड़ता मिलाकर होली की कवितायें असेम्बल करने में लगे हैं।
कल बिना नाश्ता किये घर से निकल आई किरण एक कोने में आज मम्मी का दिया टिफ़िन खोलकर नाश्ता करती हुयी मोबाइल पर मेेसेज टाइप करती जा रही है-थैंक्यू, लव यू मम्मा। उसके मेसेज भेजते ही उधर से भी -"इस्माइली के साथ गॉड ब्लेस यू ! "का संदेशा आ गया।
सूरज भाई मेरे साथ चाय पीते हुये यह सब कार्य व्यापार देख रहे हैं।मुस्करा रहे हैं।सुबह सच में हो गयी है।
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