कल भेड़ाघाट जाना हुआ.हम चले तो धूप भी साथ चल दी. हमारे ही साथ. वहां पहुंचते ही धूप चट्टान पर पसरकर सुस्ताने लगी.संगमरमर की चट्टानों ने धूप का रंग चुरा कर अपने चेहरे और बदन पर पोत लिया. ऐसे चमकने लगी जैसे सोने की चादर ओढ़ ली हो.
कुछ किरने नदी के पानी में घुस कर नहाने लगी. नदी की गोद में उछ्ल कूद करके खिलखिलाने लगीं.पानी भी उनका साथ पाकर खिल गया. चमकने लगा.
पानी की लहरें दूर से इठलाती हुई सी आ रहीं थीं. नदी के दो पाटों के बीच पसरे रैम्प पर अनगिनत लहरें इठलाते हुए "कैट वाक " सा करती अपना सौन्दर्य प्रदर्शन कर रहीं थीं. उपर से सूरज भाई अपना अरबों वाट का बल्ब जलाये लाईट सपोर्ट देंने के बहाने सारा माजरा देख रहे थे. आनंदित हो रहे थे.
दूर से आती लहरें ऐसे लग रहीं थी मानों वे लांग जम्प के लिए भागती आ रहीं हों. चट्टान के पास आकर वे सब नीचे कूदती जा रहीं थीं. इत्ती उंचाई से कूदने में कहीं चोट न लग जाये इसका कोई डर नहीं लग रहा था उनकों. कुछ बूंदों को डर लगा तो वे लहरों के पास से भागकर मेरे गाल बाल माथे पर आकर बैठ गई. ठंडी-ठंडी कूल -कूल बूंदे. हमने भी कुछ कहा नहीं. बैठी रहो. आराम से.
लहरें पानी में कूदने के पहले चट्टान के पास इकठ्ठा सी हो रहीं थीं. चट्टान, सूरज की किरणों, पानी के गठबंधन के चलते लहरें बहुरंगी हो रहीं थीं. नीचे की लहर हरे/काही रंग की और उपर की पानी के रंग की. दोनों लहरें अपने साथ अलग-अलग रंग का पानी लिए ऐसे साथ आ रहीं थीं जैसे "पूल डिनर" के लिए अपने अपने डब्बे में खाना लिए महिलाएं पार्टी के लिए आ रहीं हों.
चट्टान से नीचे गिरता पानी दूधिया फेनिल हो जा रहा था. मानो वाशिंग मशीन से उजली होकर बाहर आ रहीं हों. ऊंचाई से नीचे आकर पानी सरपट आगे भगा चला रहा है जैसे उसको शपथ ग्रहण करनी हो आगे घाट पर जाकर.
वहीं इस अथाह अबाध प्रवाहित जलराशि के किनारे एक चट्टान पर बैठा एक बगुला एक-एक बूँद पानी को मछली की तरह पकड़ते हुए अपनी प्यास बुझाने की कोशिश में लगा था. वह बगुला देश के आम आदमी सरीखा दिखा मुझे जिसके पास तक अरबों खरबों के कल्याण कार्यक्रम चिल्लर होकर पहुंचते हैं.
घाट पर अनगिनत सैलानी प्रफुल्लित प्रमुदित सौन्दर्य की नदी नर्मदा का अद्भुत सौन्दर्य निहारते हुए मुग्ध हो रहे थे. फोटो बाजी कर रहे थे. सदियों से प्रवाहित होती नदी की संगत के कुछ पल अपने साथ संजो रहे थे.
इस सबसे बेखबर चट्टान पर पसरी धूप अलसाई सी लेटी है. सूरज भाई अपनी लाडली को प्यार से निहार रहे हैं. क्या मजाल जो कुछ कह सकें उसको. धूप भी अपने पापा का लाड़ महसूसते हुए मुस्करा रही है.
हमको देखते ही सूरज भाई लपककर मेरे पास आये और बोले -इधर कहाँ?
इसके बाद हम पास के ढाबे में बैठकर चाय पीते हुए बतियाते रहे. कब शाम हो गयी पता ही न चला.
- Vijay Wadnere ...aajkal Suraj aur Kiran se kuchh jyada hi yarana ho raha hai.
Par yeh bhi pata hai ki Suraj to Kiran ke Papa hain, to fir thode confusiya gaye ki akhir aap ho kiske chakkar mein??
Kiran ke chakkar me ho, aur is ummeed se uske Papa se meljol badha rahe ho ki rishte me samarthan mil jayega?
Yaa Suraj ke chakkar me ho..pali palayee beti ki chah mein..?
Dono hi suraton mein yeh baat bhabhi ji ke kaano tak pahuchani hi padegi. Budhape mein koi unch-neech naa kar baitho aap. - Rishi Bajpai Sir its my long time dream to cum n c Jabalpur. Hope I vl get a chance to b there. Whenever I vl cum I vl try to meet u by all means. Till then u keep enjoying as always. Have a great day. Charansparsh!! !
- Lata R. Ojha "Arbon kharbon ke kalyaan karyakram chillar ho kar pahunchte hain "waah bhai kya baat kahi...
Aur lahron ka ramp walk hats off to your imagination - Shekhar Suman जबलपुर की सबसे अच्छी बात यही लगती है पूरा जबलपुर नर्मदा के साथ चलता है, खिलखिलाते हुये.... हमने भी वहाँ काफी वक़्त बिताया है, हर दूसरे दिन किसी न किसी घाट पे पहुँच जाते थे.....
- Krishn Adhar उपमा कालिदासस्य-के स्थान पर उपमा अनूपशुक्लस्य कहने का मन होने लगा।पूल डिनर,शपथ ग्रहण..अभिनव।आप झिझक छोड़ अव सूर्यचरितमानस या ऐसा ही कुछ लिख...।
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