शाम के समय मन किया कि देखें #सूरज
भाई के क्या हाल हैं! देखा तो आसमान में पीली चिडिया सरीखे दिख रहे थे
सूरज भाई! चोंच और चेहरा एकदम चमकता हुआ सा। विदा होने के मूड में जानकर
उनको डिस्टर्ब न किया। सूरज भाई कुछ थके-थके से लग रहे थे। जैसे चुनाव में
किसी बुुजुर्ग प्रत्याशी को मनचाही जगह चुनाव टिकट न मिलने उसका मुंह झोले
जैसा लटक जाता है वैसे ही सूरज भाई गुमसुम से दिख रहे थे।
एक बारगी तो मन किया कि सूरज भाई से कहें- भाईजी थक गये हो तो राकेश सत्तू ले लीजिये। चुस्त-दुरुस्त हो जाओगे। लेकिन फ़िर पता नहीं ये सत्तू पसन्द करने हैं कि नहीं।
फ़ूल, पौधे खामोशी की चादर ओढे शान्त हो गये थे। अलबत्ता चिड़ियां चखचख , चखचख् करने में जुटी थीं। वैसे भी उनको कौन कुछ ज्यादा मेहनत करनी पड़ती हैं। फ़ुर्र-फ़ुर्र यहां से वहां उड़ती फ़िरना। मजे की बात उनकी आवारगी से भी कवि लोग प्रभावित हो जाते हैं और लिख मारते हैं:
कोई मंदिर तो कोई मस्जिद बना बैठे,
हम इंसानों से वो परिंदे अच्छे जो
कभी मंदिर तो कभी मस्जिद पे जा बैठे।
अब भाई अगर मंदिर और मस्जिद जाने से ही लोग अच्छे होने लगें तो तमाम डिफ़ाल्टर ऐसे मिल जायेंगे जो मंदिर में जाते हैं और मस्जिद भी। दोनों जगह सेटिंग है उनकी। तो क्या उनको अच्छा मान लिया जायेगा?
देखते-देखते सूरज भाई हमको बाय कहकर आसमान की गली में गुम हो गये। आसमान ने अंधेरे की चादर ओढ ली। शाम के बाद रात हो रही थी।
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10202526151608505&set=a.1767071770056.97236.1037033614&type=3&theater
एक बारगी तो मन किया कि सूरज भाई से कहें- भाईजी थक गये हो तो राकेश सत्तू ले लीजिये। चुस्त-दुरुस्त हो जाओगे। लेकिन फ़िर पता नहीं ये सत्तू पसन्द करने हैं कि नहीं।
फ़ूल, पौधे खामोशी की चादर ओढे शान्त हो गये थे। अलबत्ता चिड़ियां चखचख , चखचख् करने में जुटी थीं। वैसे भी उनको कौन कुछ ज्यादा मेहनत करनी पड़ती हैं। फ़ुर्र-फ़ुर्र यहां से वहां उड़ती फ़िरना। मजे की बात उनकी आवारगी से भी कवि लोग प्रभावित हो जाते हैं और लिख मारते हैं:
कोई मंदिर तो कोई मस्जिद बना बैठे,
हम इंसानों से वो परिंदे अच्छे जो
कभी मंदिर तो कभी मस्जिद पे जा बैठे।
अब भाई अगर मंदिर और मस्जिद जाने से ही लोग अच्छे होने लगें तो तमाम डिफ़ाल्टर ऐसे मिल जायेंगे जो मंदिर में जाते हैं और मस्जिद भी। दोनों जगह सेटिंग है उनकी। तो क्या उनको अच्छा मान लिया जायेगा?
देखते-देखते सूरज भाई हमको बाय कहकर आसमान की गली में गुम हो गये। आसमान ने अंधेरे की चादर ओढ ली। शाम के बाद रात हो रही थी।
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