घर के बाहर पतंग उड़ाते बच्चों को देखकर केदारनाथ सिंह जी की यह कविता याद आई.
हिमालय किधर है?
मैंने उस बच्चे से पूछा जो स्कूल के बाहर
पतंग उड़ा रहा था
उधर-उधर – उसने कहा
जिधर उसकी पतंग भागी जा रही थी
मैं स्वीकार करूँ
मैंने पहली बार जाना
हिमालय किधर है!
-केदारनाथ सिंह
- Skdubey Dubey Chunav bhi Patang hai ,DILLI Kahna HAI jidhar ki Hawa ,udhar ya kidhar ki', hawa dikhe gi
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