सूरज
भाई आज जरा जल्दी विदा गए.आसमान चुनाव में टिकट कटे किसी बुजुर्ग नेता
सरीखा उदास दिखा.तमाम सारे पक्षी इधर से उधर या फिर उधर से इधर आते-जाते
दिखे. ऐसा लग रहा था की चुनाव के मौसम में नेता दल-बदल कर रहे हैं. कुछ
भारी पक्षी अभी सोचने की मुद्रा में बैठे हैं. लग रहा है उन्होंने अभी तक
अपना स्टैंड तय नहीं किया है.
सूरज के जाने के बाद भी आसमान में लालिमा और रौशनी पसरी है. लग रहा है दिशाओं ने गाढ़े समय के लिए कुछ उजाला बचा के रखा था उसे वे अब बाहर निकालकर आहिस्ते-आहिस्ते खर्च करते हुए काम चला रहीं हैं.
एक पेड़ पर खूब सारे पक्षी इकट्ठा थे.किसी बात पर एक पक्षी ने केहौ,केहौ किया तो उसकी देखा-देखी बाकी सब पक्षी भी अपने-अपने अंदाज में आवाज करने लगे. सबकी आवाज एक -दुसरे से एकदम अलग.कोई कह रहा ये पक्षी कलरव कर रहे हैं.कोई कह रहा था -ये गदर काट रहे हैं.किसी का मानना था कि वे चुनाव में अपने नेता के समर्थन में बवाल कर रहे है.
अचानक एक पक्षी कहीं बहुत दूर से चिल्लाया. जोर से. उसकी आवाज सुनकर सब पक्षी कुछ देर को चुप हो गए. लगा वह सबका हाई कमान है. सारे पक्षी चिल्ला भले अलग-अलग तरीके से रहे हों लेकिन वे सब शांत एक ही तरह से थे. लगा की बयान जारी कर दिया जाये -"शान्ति में एक रूपता होती है." लेकिन आसपास कोई सम्वाददाता न देख मटिया दिए. बिना माइक और संवाददाता के क्या बयान जारी करना? दुर !
सभी दिशाएं अपने-अपने हिस्से के आसमान को गोद में लेकर सुलाने लगी.कोई अपने कलेजे के टुकड़े की आँखों में काजल सरीखा आंजने लगी. कोई अपने बच्चे आसमान के माथे पर सिंदूरी टीका लगाने लगी. गर्मी की उमस से बचाने के लिए दिशाएं पेड़ो के पंखे झलने लगीं.
अँधेरा होते ही लोगों ने घरों में बत्तियां जला ली.जिन घरों में बिजली के कनेक्शन नहीं हैं उन्होंने कटिया डाल ली. साहब लोगों के एसी,जिनको मीटर से बाईपास किया गया है, चलने लगे. सब लोग टेलीविजन के सामने बैठकर मैच देखने लगे. हर आदमी बालरों को सिखाने में जुटा था- "अबे ऐसे फेंक, अरे ऐसे नहीं वैसे." खिलाड़ी दूर होंने के चलते उनकी बात सुन नहीं पा रहे थे और अपने मन से गेंद फेंक रहे थे.
अचानक ओवरलोडिंग के चलते बिजली गुल हो गयी. सारे लोग अपने घर से बाहर आकर सरकार को कोसने लगे. समझदार कटिया वालों ने कटिया दूसरे फेस पर डाल ली और मैच का मजा लेते हुये मोहल्ले भर को स्कोर बताने लगे.
जब देर तक बिजली गायब रही तो लोगों ने मोमबत्तियाँ जलाकर सरकार के साथ-साथ डबल कटिया वालो को कोसना शुरू कर दिया. कवि ह्रदय लोग नीरज की कविता गुनगुनाते हुये अँधेरे का गम गलत करने लगे:
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना,
अँधेरा धरा पर कही रह न जाये!
शाम का नामोनिशान मिट गया है. अब रात हो रही है.
सूरज के जाने के बाद भी आसमान में लालिमा और रौशनी पसरी है. लग रहा है दिशाओं ने गाढ़े समय के लिए कुछ उजाला बचा के रखा था उसे वे अब बाहर निकालकर आहिस्ते-आहिस्ते खर्च करते हुए काम चला रहीं हैं.
एक पेड़ पर खूब सारे पक्षी इकट्ठा थे.किसी बात पर एक पक्षी ने केहौ,केहौ किया तो उसकी देखा-देखी बाकी सब पक्षी भी अपने-अपने अंदाज में आवाज करने लगे. सबकी आवाज एक -दुसरे से एकदम अलग.कोई कह रहा ये पक्षी कलरव कर रहे हैं.कोई कह रहा था -ये गदर काट रहे हैं.किसी का मानना था कि वे चुनाव में अपने नेता के समर्थन में बवाल कर रहे है.
अचानक एक पक्षी कहीं बहुत दूर से चिल्लाया. जोर से. उसकी आवाज सुनकर सब पक्षी कुछ देर को चुप हो गए. लगा वह सबका हाई कमान है. सारे पक्षी चिल्ला भले अलग-अलग तरीके से रहे हों लेकिन वे सब शांत एक ही तरह से थे. लगा की बयान जारी कर दिया जाये -"शान्ति में एक रूपता होती है." लेकिन आसपास कोई सम्वाददाता न देख मटिया दिए. बिना माइक और संवाददाता के क्या बयान जारी करना? दुर !
सभी दिशाएं अपने-अपने हिस्से के आसमान को गोद में लेकर सुलाने लगी.कोई अपने कलेजे के टुकड़े की आँखों में काजल सरीखा आंजने लगी. कोई अपने बच्चे आसमान के माथे पर सिंदूरी टीका लगाने लगी. गर्मी की उमस से बचाने के लिए दिशाएं पेड़ो के पंखे झलने लगीं.
अँधेरा होते ही लोगों ने घरों में बत्तियां जला ली.जिन घरों में बिजली के कनेक्शन नहीं हैं उन्होंने कटिया डाल ली. साहब लोगों के एसी,जिनको मीटर से बाईपास किया गया है, चलने लगे. सब लोग टेलीविजन के सामने बैठकर मैच देखने लगे. हर आदमी बालरों को सिखाने में जुटा था- "अबे ऐसे फेंक, अरे ऐसे नहीं वैसे." खिलाड़ी दूर होंने के चलते उनकी बात सुन नहीं पा रहे थे और अपने मन से गेंद फेंक रहे थे.
अचानक ओवरलोडिंग के चलते बिजली गुल हो गयी. सारे लोग अपने घर से बाहर आकर सरकार को कोसने लगे. समझदार कटिया वालों ने कटिया दूसरे फेस पर डाल ली और मैच का मजा लेते हुये मोहल्ले भर को स्कोर बताने लगे.
जब देर तक बिजली गायब रही तो लोगों ने मोमबत्तियाँ जलाकर सरकार के साथ-साथ डबल कटिया वालो को कोसना शुरू कर दिया. कवि ह्रदय लोग नीरज की कविता गुनगुनाते हुये अँधेरे का गम गलत करने लगे:
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना,
अँधेरा धरा पर कही रह न जाये!
शाम का नामोनिशान मिट गया है. अब रात हो रही है.
पसंदपसंद · · सूचनाएँ बंद करें · साझा करें
- महेंद्र मिश्र, Umesh Kumar, DrShobha Singh और 22 अन्य को यह पसंद है.
No comments:
Post a Comment