#सूरज
भाई की अगवानी के लिये दरवज्जा खोले बैठे हैं लेकिन सूरज भाई अभी तक आये
नहीं हैं। मनौना करा रहे हैं शायद। बाहर निकलकर देखते हैं तो सूरज भाई
आसमान में निगाहों से लगभग 45 डिग्री का कोण बनाये चमक रहे हैं। लगता है
उनको पता है कि 45 डिग्री के कोण से फ़ेंकी गयी चीजें सबसे दूर तक जाती हैं।
इसीलिये वे इस कोण से किरणें धरती पर भेज रहे हैं। उनकी वैज्ञानिक चेतना
अद्भुत है।
जैसे कोई तैराक तैरने के पहले दोनों हाथों से पानी दूर हटाता है और पानी की लहरें दूर तक फ़ैलती जाती हैं वैसे ही #सूरज भाई अपने दोनों हाथों से आसमान के तालाब की जगह को चीरते हुये ऊपर उठते जा रहे हैं।
जैसे कोई तैराक तैरने के पहले दोनों हाथों से पानी दूर हटाता है और पानी की लहरें दूर तक फ़ैलती जाती हैं वैसे ही #सूरज भाई अपने दोनों हाथों से आसमान के तालाब की जगह को चीरते हुये ऊपर उठते जा रहे हैं।
बाहर सड़क पर एक स्कूटर भड़भड़ाता हुआ सा जा रहा है। निश्चित अंतराल और लय
ताल में फ़ट फ़ट फ़टाक , फ़ट फ़ट फ़टाक , फ़ट फ़ट फ़टाक की आवाज निकालता जा रहा है।
संगीत प्रेमी स्कूटर लगता है। एक्झास्ट से निकलती आवाज से लग रहा है कि
स्कूटर के पेट में गैस फ़ंस गयी है। जरूर ऊट पटांग ईंधन खाया होगा।
सूरज की किरणें सरसराती हुई आसमान से धरती पर उतर रही हैं। एक राजनीतिक रुझान वाली किरण ने अपनी सहेलियों से पूछा - अरे ये बता हम लोग चुनाव में मुफ़्त में फ़ूल , पौधों , घास , पत्तियों को ऊष्मा प्रदान करते रहते हैं । कहीं ये आचार संहिता का उल्लंघन तो नहीं होगा?
बाकी किरणें उसकी यह बात सुनकर खिलखिलाने लगीं। एक ने कहा तू तो एकदम चुनाव प्रत्याशियों की तरह हो गयी। सोचती है ऊलजलूल बातें करेगी तो वोट देंगे। अरे आचार संहिता चुनाव लड़ने वालों पर लगती है। अपन को कौन चुनाव लड़ना है।
धरती पर पहुंचकर किरणें अपनी-अपनी नियत जगत पर मुस्तैद हो गयीं। एक किरण एक जवान , सुन्दर से दिखते फ़ूल पर बैठी तो सुना वह रमानाथ अवस्थी जी कविता गुनगुना रहा था:
देखते-देखते #सूरज भाई आ गये। अखबार में नक्सली हिंसा, मुआवजे और प्रत्याशियों की घोषणा की खबर देखते चाय पीने लगे। अचानक पूछने लगे - कुछ तय हुआ कौन कहां से लड़ेगा? अभी तक तय नहीं कर पाये?
हमें रागदरबारी की लाइने याद आ गयीं - सब गंजहों के चोचले हैं।
आज की सुबह तो हो गयी भैया। अब कल की कल देखी जायेगी।
सूरज की किरणें सरसराती हुई आसमान से धरती पर उतर रही हैं। एक राजनीतिक रुझान वाली किरण ने अपनी सहेलियों से पूछा - अरे ये बता हम लोग चुनाव में मुफ़्त में फ़ूल , पौधों , घास , पत्तियों को ऊष्मा प्रदान करते रहते हैं । कहीं ये आचार संहिता का उल्लंघन तो नहीं होगा?
बाकी किरणें उसकी यह बात सुनकर खिलखिलाने लगीं। एक ने कहा तू तो एकदम चुनाव प्रत्याशियों की तरह हो गयी। सोचती है ऊलजलूल बातें करेगी तो वोट देंगे। अरे आचार संहिता चुनाव लड़ने वालों पर लगती है। अपन को कौन चुनाव लड़ना है।
धरती पर पहुंचकर किरणें अपनी-अपनी नियत जगत पर मुस्तैद हो गयीं। एक किरण एक जवान , सुन्दर से दिखते फ़ूल पर बैठी तो सुना वह रमानाथ अवस्थी जी कविता गुनगुना रहा था:
सो न सका कल याद तुम्हारी आई सारी रात,इस कविता को सुनते ही किरण भी किसी की याद में खो सी गयी। स्मृतियों में डूबने -उतराने लगी।
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात।
मुझे सुलाने की कोशिश में, जागे अनगिन तारे
लेकिन बाज़ी जीत गया मैं वे सब के सब हारे
जाते-जाते चांद कह गया मुझसे बड़े सकारे
एक कली मुरझाने को मुस्काई सारी रात।
देखते-देखते #सूरज भाई आ गये। अखबार में नक्सली हिंसा, मुआवजे और प्रत्याशियों की घोषणा की खबर देखते चाय पीने लगे। अचानक पूछने लगे - कुछ तय हुआ कौन कहां से लड़ेगा? अभी तक तय नहीं कर पाये?
हमें रागदरबारी की लाइने याद आ गयीं - सब गंजहों के चोचले हैं।
आज की सुबह तो हो गयी भैया। अब कल की कल देखी जायेगी।
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