2004 में जब ब्लॉग लिखना शुरू किया तो विन्डोज़ 98 का जमाना था। हिंदी में सीधे लिखने के लिए कोई फांट नहीं था। जय हनुमान की सुविधा का उपयोग करके तख्ती पर लिखते थे। डायल अप कनेक्शन इंटरनेट था। किर्र किर्र करके कनेक्ट होता था।जब नेट लगता था था तो फोन नहीं हो सकता था।एक समय में एक काम।
अक्सर लम्बी लम्बी पोस्ट लिखते।कभी पूरी पोस्ट उड़ जाती। उन दिनों ऑटो सेव का जमाना नहीं था।तब एक पोस्ट लिखना वीरता का काम था। पोस्ट लिखने पर मजा भी उसी अनुपात में आता था।
जाड़े के दिनों में मेरी एक ही तमन्ना रहती थी-धूप में बैठकर ब्लॉगिंग की। इसके लिए इंतजाम किया गया। 10-15 मीटर लम्बा तार जुगाड़ लिया गया। लैपटाप लेकर बगीचे में बैठते। कभी नेट कट जाता तो भागकर भीतर आते। देखते कि कहाँ से लफड़ा हुआ। वाई-फ़ाई कनेक्शन तो बहुत बाद में आया।
तबसे मामला बहुत आगे आ चुका है। आज तो हर जगह नेट से जुड़े हुए हैं। जाड़े में रजाई के अंदर घुसे हुए पोस्ट लिख सकते हैं। कनाडा/होनूलूलू /झुमरी तलैया के दोस्तों से चैटिया सकते हैं। सुविधाएं बढ़ी हैं। लिखना सहज हुआ है। अब तो ये सुविधा भी आ गयी है कि बोलकर टाइप हो सकता है। जय हो।
लिखने की सुविधा जितनी सहज हुयी है। लिखना उतना ही कम होता गया।ब्लॉग पर। पिछले कई महीनों से ब्लॉग पर जो पोस्ट डालीं वे फेसबुक की पोस्ट हैं जो वहां से यहां ले आए। फेसबुक उतरन पोस्ट्स।
फेसबुक पर लिखना सहज है। इसलिए वहां लिखते हैं। फेसबुक पर लिखते समय यह भाव रहता है जैसे बाजार में खड़े हैं। लोग हमें लिखते हुए टाइप करते हुए देख रहे हैं। जैसे ही हम पोस्ट करेंगे इसे फौरन देखा जाएगा। लाइक किया जाएगा। टिपियाया जायेगा। दस मिनट में बीस टिप्पणियॉ आ जाएंगी।
ब्लॉग पर लिखना एकान्तिक साधना जैसा है। हम अकेले में लिख रहे हैं। कोई हमें देख नहीं रहा है। सृजन सुख है यह। अगर ब्लॉग पोस्ट को सोशल मिडिया पर साझा न किया जाए तो क्या पता कितने लोग पढ़ें।
मेरा ब्लॉग मैं जब अपडेट नहीं करता तब भी 100 के करीब लोग देखते हैं रोज। अब सोचा है नियमित अपडेट करूँगा। रोज नहीं तो नियमित तो अपलोड करूँगा ही। पहले ब्लॉग पर लिखूंगा फिर उसे शेयर करूँगा और कहीं। ब्लॉग भले ही पुराना हो गया लेकिन है तो मेरा ब्लॉग ही। अंतर्जाल पर मेरी पहचान मेरे ब्लॉग के ही चलते है। इसको अब और उपेक्षित नहीं करना।और उतरन नहीं पहनाना।
आज की इस पोस्ट में इतना ही। बकिया और फिर जल्दी ही। शायद नियमित भी। मजे कीजिये आप भी इतवार के।
फ़ोटो रजाई में बैठे हुए उस मुद्रा का जिसमें यह पोस्ट लिखी गयी।
लिखने की सुविधा जितनी सहज हुयी है। लिखना उतना ही कम होता गया। ब्लॉग पर।....
ReplyDeleteहां, ये ही हुआ है सभी के साथ , नियमित लिखा जाय तो ब्लॉग्स पर भी माहौल बदले शायद ।
शुभकामनायें
हां इरादा तो बनाया है नियमित लेखन का। देखिये कितना अमल में ला पाते हैं।
Deleteचमक रहे हैं ठंड में. कमेंट यहां किया ताकि सनद रहे ब्लॉग पर आए थे. वाकई ब्लॉग पर ही लिखने का सुख है.
ReplyDeleteअरे चमक क्या रहे।रजाई में हैं भाई।बकिया सनद तो हो गयी। :)
Deleteहम तो आते रहते हैं, बस कमेन्ट नहीं करते... आज कमेंटिया भी देते हैं.... सच में हमने भी जब ब्लॉगिंग शुरू की थी तब बड़ी दिक्कत थी.... कुछ पोस्ट तो साइबर कैफे से की हैं... अब जब 24*7 इन्टरनेट है वो भी 16Mbps वाला तो ऐन मौके पर अनियमित हो गए... पढ्न तो जारी है लेकिन लिखना कम हो गया.... सब साला ये फेसबुक का किया धरा है.... बना बनाया आशियाना सुनसान हो गया.... चलिये, लिखते रहिए, पढ़ने वाले तो पढ़ते ही रहेंगे....
ReplyDeleteहाँ कोशिश करेंगे एक बार फिर कि नियमित लिख सकें। :)
Deleteब्लागिंग ने हमको भी बहुत कुछ सिखाया। अच्छे मित्र दिए। पहले प्रत्येक रविवार को पोस्ट लिखते थे। धीरे-धीरे कम होता गया। अभी समय का अकाल है। फुर्सत मिलते ही जुट जायेंगे हम भी।
ReplyDeleteसही हैं ।मेरे भी अनगिनत दोस्त बने ब्लागिंग के चलते।
Deleteऔर जहां तक समय की बात तो समय का अकाल तो हमेशा रहता है। समय तो निकाला जाता है।मिलता कहां है। रमानाथ अवस्थी जी की कविता है न -'कुछ कर गुजरने के लिए मौसम नहीं मन चाहिए। "
वाह जी वह। बधाइयाँ और शुभकामनायें। लगे रहे और हम भी लौट लौट कर पहले के तरह झाँकने आते रहेंगे। हमारा वादा है।
ReplyDeleteधन्यवाद।कोशिश करेंगे लगे रहने की।
Deleteनियमित लेखन हमने भई पता नहीं कितनी बार प्रण किया है, और टूटा है ये प्रण, पर पिछले कई दिनों से बराबर लिख रहे हैं, हम भी आजकल रजाई के अंदर बैठकर लिखने की सुविधा का लाभ ले रहे हैं
ReplyDeleteहां देख रहे हैं । आजकल आप नियमित लिख रहे हैं। लिखते रहे। हम भी कोशिश करेंगे।
Deleteबढ़िया. निश्चय है. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteमैं खुद पिछले दो-तीन साल में कई बार ऐसा ही निश्चय कर चुका हूँ, लेकिन.. :(
फिर से निश्चय करके कोशिश की जाए।
Deleteमैं भी कोशिश करती हूँ
ReplyDeleteसही है। करिये कोशिश। लिखिए नियमित।
Deleteबड़ा अच्छा लगा नियमित लेखन की बात जान कर .लगने लगा उपेक्षित ब्लागरी के दिन बहुरेंगे -प्रतीक्षा रहेगी !
ReplyDeleteदेखिये कितना नियमित रह पाते हैं।
Deleteआप जब जबलपुर में मिले थे तब कहा था लिखा करो.... सालभर हो गया... अब जाकर सुधि आई...
ReplyDeleteएक ब्लॉग बनाया था - alawyersdiary.blogspot.com
इसे ही अब नियमित करने का संकल्प लिया है... विषय आधारित है...
आपने मुलाक़ात के समय एक किताब बताई थी... सफेद घोड़ा काला सवार.... राजकमल की साइट देखी... वहाँ नहीं मिली.... आपको कहीं मिले तो बताईयेगा... पढ़ने की इच्छा है