घटना के अनुसार कार में पति-पत्नी और उनकी बेटी थे।ऑटो चालक ने ऑटो मोड़ा,जिससे कार में टक्कर लग गयी।टक्कर लगते ही महिला और उसकी पुत्री गुस्से में उतरी और ऑटो चालक को खरी खोटी सुनना शुरू कर दिया।इसी दौरान उसकी पुत्री ने चप्पल उतारकर ऑटो चालक को मारना शुरू कर दिया। उसने भागने की कोशिश की तो युवती की माँ ने उसकी कॉलर पकड़ी और दोनों ने उसकी धुनाई शुरू की। सड़क पर मजमा लग गया लेकिन किसी ने बीच-बचाव करने की कोशिश नहीं की।ऑटो चालक के साथ मारपीट होते देख एक युवक को भी जोश आया व उसकी कालर पकड़कर पीटने लगा। भीड़ को युवक इस तरह की एंट्री नागवार गुजरी।इसके बाद तो ऑटो चालक को छोड़कर भीड़ ने युवक को खदेड़ खदेड़ कर पीटा।इसके बाद पुलिस मौके पर पहुंची और मामले को शांत कराया।
अखबार में तीन फोटो छपे हैं।हर फोटो में ऑटो चालक पिट रहा। देखकर लगा कि आम जिंदगी में कितना गुस्सा है लोगों में। कार है तो उसका बीमा भी होगा। बन जाती। ऑटो चालक कि गलती रही होगी। लेकिन क्या इसके लिए उसको सरे राह चप्पलों से पीटा जाना उचित है?
यह पिटाई एक लड़की और उसकी माँ के द्वारा ऑटो चालक की पिटाई नहीं बल्कि एक संपन्न द्वारा विपन्न की पिटाई है। कार द्वारा ऑटो की पिटाई है। अगर गलती कार वाले की होती तो क्या ऑटो वाला उसको अकेले उसको इतनी ही सहजता से पीट देता?
भीड़ इस पूरे मामले में तमाशबीन रही। ऑटो चालक को पिटते देख किसी ने लड़की और उसकी माँ को समझाने की कोशिश नहीं की। भीड़ भी सम्पन्न के साथ है।भीड़ को पिटता हुए एक आदमी का दर्द नहीं दिखा।वह तमाशबीन बनी रही।
बाद में जब एक युवक भी लड़की और उसकी माँ की तरफ से ऑटो चालक को पीटने लगा तब भीड़ ने उस युवक को दौड़ा दौड़ा कर पीटा। लगता है आज अपने समाज में हर व्यक्ति गुस्से में भरा हुआ है। सोच विचार नहीं करता। करणीय अकरणीय नहीं देखता।गुस्सा पहले उतारता है। विचार बाद में करता है।
घर जाकर ऑटो वाला अपना गुस्सा शायद अपने बीबी बच्चों पर उतारे। पिटना कमजोर की नियति है।
सबसे खतरनाक रुख अखबार का है। इस घटना में ऑटो चालक पीटा गया है। प्रथम दृष्टया ऑटो चालक इसमें पीड़ित है। पिटा है। उसको पीटने वालों ने उसकी गलती के लिए नहीं अपने सपन्नता के अहंकार में पीटा। लेकिन अखबार की रिपोर्टिंग से ऐसा कहीं से नहीं लगता कि उसकी सम्वेदना पिटने वाले के साथ है। इस घटना की रिपोर्टिंग में अख़बार की भाषा कॉमिक है। मजे लेने वाली है।
अखबार जनता को खबरें देने के साथ साथ उनके मानस को प्रभावित करते हैं। जब अखबार लिखता है
"फिर दोनों ने उसकी धुनाई शुरू कर दी", " एक युवक को भी जोश आया", "भीड़ को इस युवक की इस तरह की एंट्री नागवार गुजरी", "इसके बाद तो ऑटो चालक को खदेड़ -खदेड़ कर पीटा" तो साफ लगता है कि वह पिटते हुए लोगों का उपहास कर रहा है। अख़बारों की यह प्रवृति रिपोर्टरों की सम्वेदनहीनता की परिचायक है।
"फिर दोनों ने उसकी धुनाई शुरू कर दी", " एक युवक को भी जोश आया", "भीड़ को इस युवक की इस तरह की एंट्री नागवार गुजरी", "इसके बाद तो ऑटो चालक को खदेड़ -खदेड़ कर पीटा" तो साफ लगता है कि वह पिटते हुए लोगों का उपहास कर रहा है। अख़बारों की यह प्रवृति रिपोर्टरों की सम्वेदनहीनता की परिचायक है।
ज्यादातर रिपोर्टर बहुत कम पैसे में देर रात तक अख़बारों में काम करते हैं।ऑटो वाला भी उनकी ही तरह खटता होगा। उनको यह समझ होनी चाहिये कि पिटा हुआ ऑटो वाला उनकी ही तरह होगा। अपने ही तरह के व्यक्ति के पीटे जाने पर इस तरह की मजे लेती हुई रिपोर्टिंग सहज सम्वेदना की खिल्ली उड़ाती है।
कार वाले द्वारा ऑटो चालक को पीटने की घटना बताती है कि सपन्न होने की हड़बड़ी में हम सम्वेदन हीन होते जा रहे हैं।
ऑटो चालक की पीटे जाने की कॉमिक रिपोर्टिंग बताती है कि सनसनीखेज खबर के चक्कर में पत्रकारिता अमानवीय होती जा रही है।
दुःखद
ReplyDelete:(
ReplyDeleteहद है!
ReplyDeleteकार है तो उसका बीमा भी होगा। बन जाती। ho sakta haen utnae me naa banti , ho sakta haen jisko aap sampanntaa samjh rahey haen wo kisi ki saalo ki mehnat paet kaat kar jodaa paesaa ho jis sae wo gadii karidi gayii ho
ReplyDeletemarna uchit nahin haen lekin usko sampanntaa sae jodna bhi uchit nahin haen , aur auto wala bhi sampann haen agar cycle waale sae milaye
मेरा कहने का आशय यह है कि अपने समाज में सम्वेदनहीनता बढ़ रही है। "सम्पन्न" शब्द शीर्षक से हटा दिया।
DeleteVakai Dukhad
ReplyDeleteहर के अन्दर गुस्सा भरा है, पर ये नहीं पता की कहाँ निकालना है
ReplyDeleteआज 29/जनवरी/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!