Thursday, December 25, 2014

पचमढ़ी की एक सुबह

रजनीगन्धा कितने की है?

पांच रूपये की। लेकिन तुम न खाना।

पचमढ़ी की एक चाय की दूकान पर चाय वाली और उनकी पत्नी के बीच यह संवाद हुआ।चाय वाले प्रकाश अपने पिता के साथ पचास साल पहले छपरा से पचमढ़ी आये थे।यहीं बस गए। हमने पूछा तो बोले-पेट सब करवाता है।
महिला बताने लगी-"साला यहां दो दो स्टोब लगातार जलते थे। गाड़ियों की लाइन लगती थी। अब लोग आने कम हो गए।धंधा चौपट। दो तीन साल और निकल जाएँ बस।"

दो तीन साल क्यों? पूछने पर बताया-"तब तक हमारी गुड़िया खड़ी हो जायेगी। नर्स की ट्रेनिंग कर रही है छिंदवाड़ा से।"

पचमढ़ी में पर्यटक कम आते हैं अब। ट्रैक्टर बन्द हो गया। सूर्योदय दर्शन बन्द हो गया। जानवरों को डिस्टर्ब होता है। जब सनराइज के लिए लोग जाते थे तो खूब चाय बिकती थी सुबह। सनसेट भी हफ्ते में एक दिन बन्द हो गया।जंगल वालों को छुट्टी चाहिए।


"चार भाई हैं हम। दो भाई ठेकेदारी करते हैं। पहले लैबरी की। गोली के छर्रे बीने।जंगल में लकड़ी का काम क़िया। फिर ठेकेदारी में आया। अभी एक करोड़ साठ लाख का ठेका मिला। ये सीमेंट का काम(सड़क और फुटपाथ के बीच डिवाइडर ) उसी ने किया।"-आग तापते हुए प्रकाश ने बताया।

दूकान अतिक्रमण हटाने वालों ने हटा दी। फ्रिज और मीटर भी ले गए। किसी तरह बिजली का कनेक्शन लेकर बल्ब जला रहे हैं।

चाय कुछ कम थी ग्लास में। हमने कहा- ठीक है। लेकिन फिर से स्टोब जलाकर चाय बनाई। 130 किमी दूर छिंदवाड़ा से आये दूध की चाय 10 रूपये की। होटल में चाय 35 रूपये की है।

पचमढ़ी की एक सुबह। सूरज भाई मुस्कराते हुए गुड मार्निंग कर रहे हैं।

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