Friday, December 05, 2014

जलवा सूरज भाई का


सुबह निकले तो पक्षियों ने चिंचियाते हुए गुडमॉर्निंग की।बच्चे स्कूल जा रहे थे।स्कूल के सामने ऑटो रुका और बच्चे धड़धड़ाते हुए उतरे।ऐसा लगा बच्चों से भरा ऑटो स्कूल के सामने पहुंचते ही 'अनजिप्ड ' हो गया हो।

बायीं तरफ से सूरज भाई चमक रहे थे।दीवारों पर धंसे कांच के टुकड़ों पर पड़ती रौशनी उनको और नुकीला बना रही थी।कांच के टुकड़े दीवारों को खतरनाक बना रहे थे।सुरक्षा के लिए इस्तेमाल की गयीं चीजें भी खतरनाक दिखती हैं।

चाय की दूकान पर गाना बज रहा था -'सुजलाम्, सुफलाम मलयज शीतलाम।'

कुछ जवान लड़के आये और दुकानदार से चुहल करने लगे। दुकानदार ने भी की।कोई भी दूकान चलाने के लिए बहुत नाटक करने पड़ते हैं। दूकान चाहे चाय की हो या राजनीति की बिना नाटक के चलती कहाँ है।

लड़कों ने दूकान पर लटका हुआ लाइटर चलाकर हाथ सेंका।चाय पी और चले गए।एक आदमी बीड़ी मुंह में दबाये दोनों हाथैलियों को हाथ से रगड़ रहा था। 'ऑटो सुट्टा मोड' में बीड़ी पीते वह सड़क पर जाते हुए मोटरसाइकिल सवार को ताक रहा था।मोटर साइकिल वाला एक हाथ से सिगरेट मुंह में दबाये हेलमेट दूसरे आधे हाथ में लिए बाकी के आधे हाथ से मोटरसाइकिल चला रहा था। सिगरेट की तलब सुरक्षा पर भारी थी।

एक व्हील चेयर पर बैठे एक भाई साहब एक कागज़ में कुछ गुणा भाग लगा रहे थे। पता चला कि सट्टे का नंबर लगा रहे हैं। चार रूपये की पर्ची पर जीतने पर 60 रूपये मिलते हैं।आज तक जीते नहीं लेकिन सट्टा लगाते रहते हैं। देश की आम जनता की तरह आशावादी नजरिया है।

पप्पू नाम है इनका। 93 में कटनी में रेलगाड़ी की चपेट में आ जाने पर पैर कट गया था।इंटर तक पढ़े हैं। घर वालों के साथ रहते हैं। कमाई के लिहाज से कुछ करते नहीं। सट्टा लगाते हैं जिसमें नंबर कम ही लगता है।

लौटते हुए सूरज भाई की सरकार का विस्तार हो चूका था।हमने चाय के लिए पुछा तो बोले-तुम पियो हमको अभी रौशनी की सरकार चलानी है।बहुत काम है।

मन तो किया कहें - यू टू सूरज भाई!

लेकिन फिर नहीं बोले।देख रहे है जलवा सूरज भाई का!

सुबह हो गयी।

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