काले
धन की सब बुराई करते हैं। काले धन की मात्रा समाज में भ्रष्टाचार के
समानुपाती होती है। जिस समाज में जितना ज्यादा करप्शन होता है उतनी ही
आलोचना होती है बेचारे की। मानो भ्रष्टाचार कोई अपने से आता है और उसके
प्रसार में किसी और दुनिया के लोगों का हाथ होता है।
जैसे किसी सिक्के के दो पहलू होते हैं वैसे काले धन और करप्शन के दो पहलू होते हैं। पूर्वग्रह से ग्रस्त लोग आम तौर पर काले धन का एक ही पहलू देखते हैं। बुराई करते हैं। इस चक्कर में उसके दूसरे पक्ष धवल पक्ष की अनदेखी हो जाती है।
अब जैसे देखिये पिछले सालों 2G घोटालों का कित्ता हल्ला रहा। कई लोग अन्दर गये। बाहर आये। लेकिन जनता को यह भी तो पता चला कि स्पेक्ट्रम जैसी चीज भी बिकती है। उसमें भी घपले की गुंजाइश है। फ़िर यह भी पता चला कि कानून की निगाह में सब बराबर हैं। मंत्री को भी जेल जाना पड़ सकता है। इसके बाद पता चला कि जो घोटाला बताया गया था वह वास्तव में हुआ ही नहीं था। उसके बाद फ़िर कांट्रैक्ट निरस्त हुये। दोबारा नीलामी हुई। सब कांट्रैक्टर मिल गये। संगठित हो गये। रेट और कम हो गये। इससे एक बार फ़िर साबित हुआ कि संगठन में शक्ति होती है। देखिये एक घपले से, जिसे तथाकथित ही कहा जायेगा न अब तो, कितना सारा ज्ञान लोगों को, समाज को मिला। है न!
बीच में महात्मा गांधी रोजगार योजना में भी गड़बड़ी की खबर आयी। राष्ट्रपिता का नाम बदनाम हुआ। कुछ लोगों ने फ़र्जी नाम पर भुगतान किये। जो लोग थे ही नहीं उनको पेमेन्ट हुये। लेकिन दूसरे नजरिये से सोचिये तो यह पैसा कहीं अंतरिक्ष में तो चला नहीं गया। लोगों ने गांव में मनरेगा में घोटाला किया। जो पैसा कमाया उससे शहर में ठेके लिये। शहर के लोगों को रोजगार दिया। यही काम अगर सरकार करती तो कित्ता समय लगता। नया विभाग बनाना पड़ता। बड़े तामझाम होते। गांव के धन का वितरण शान्ति से शहर में कर दिया। इससे अच्छा और क्या पुण्य का काम हो सकता है।
काला धन कमाने वाले बुद्धि के बहुआयामी प्रयोग के शानदार मुजाहिरे करके लोगों को कमाई के नये-नये तरीके बताते रहते हैं। स्टैंप घोटाले के पहले कहां पता था अब्दुल करीम तेलगी के अलावा और किसी को टिकट की बिक्री में भी ऐसी गजब कमाई की गुंजाइश हो सकती है, किसको पता था पहले कि क्रिकेट में रूमाल हिलाने में करोड़ों के वारे-न्यारे होते हैं, कोयले के ब्लॉक आवंटन में अरबों इधर-उधर हो सकते हैं। चारा आदमी भी खाते हैं ,टाट-पट्टी भी हजम हो सकती है, शहीदों के नाम पर घोटाले की आदर्श गुंजाइश है यह सब इन घोटालों के पहले कित्ते लोगों को पता था? अब जब पता चला है तो लोग इसमें अपना कैरियर बना रहे है। घर, परिवार , देश का विकास कर रहे हैं।
लोग अपराध को एकांगी नजरिये से देखते हैं। पिछले दिनों एक एटीएम में एक महिला पर हमला हुआ। गलत हुआ। लेकिन उसके बाद देखिये क्या हुआ? सब बैंको को आदेश हुआ कि हर एटीएम पर सुरक्षा व्यवस्था रखी जाये। मतलब जित्ते एटीम उत्ते लोगों को रोजगार मिला। फ़िर सीसीटीवी भी और बिकेंगे। बनाने वालों को रोजगार मिला। सुरक्षा व्यवस्था के लिये और भी तमाम इंतजाम किये जायेंगे। लोग लगेगें। सब समाज के ही लोगों का भला हुआ न। एक तरह से अपराध का यह धनात्मक आयाम है।
उधर देखिये आतंकवाद बढ़ रहा है दुनिया में। लोगों के लिये खतरा है। आतंकवादी बच्चा लोगों को बरगला के अपने यहां भर्ती करते हैं। पचास आतंकवादी अगर भर्ती होते हैं तो पांच हजार सुरक्षा कर्मियों की भर्ती का जुगाड़ बनता है। सुरक्षा कार्यालय बनता है। खुफ़िया विभाग सतर्क होता है। चौकन्ने रहने के लिये तमाम तरह के उपकरण बनते हैं। खरीदे जाते हैं। बेकार होते हैं फ़िर खरीदे जाते हैं। कित्ते लोगों की रोजी-रोटी चलती है इस आपाधापी में। कित्तों को रोजगार मिलता है।
आज् दुनिया में सब कुछ कम्प्यूटर से होता है। कुछ लोगों के पैसे बैंक से गायब हो जाते हैं। जब यह पता चलता है तब खूब सारे साफ़्टवेयर लगाये जाते हैं। इंजीनियर लगाये जाते हैं। तमाम लोगों को रोजगार मिलता है। चार ठो इंजीनियर हैकिंग में लगाये जाते हैं, आठ ठो हैंकिंग रोकने के लिये। चकाचक तन्ख्वाह वाला रोजगार बढ़ा न दुनिया में।
अब ज्यादा दूर क्यों जाते हैं? अभी देखिये दिल्ली में आप की सरकार बनी न। नये तरह का प्रयोग। देश भर में हल्ला है ’आप’ की सरकार का। सोचिये कैसे बनी यह? अगर समाज में करप्शन न होता तो भला लोकपाल बिल के लिये ’भारतमाता की जय’ और ’वन्दे मातरम’ भला बोलता कोई। न आन्दोलन होता न सरकार बनती। करप्शन न होता तो दिल्ली वालों को 20000 लीटर महीना मुफ़्त पानी मिलता भला? यह सब करप्शन के साइड इफ़ेक्ट हैं।
इस तरह से देखा जाये तो दुनिया में तमाम होने वाले अच्छे काम काले धन के उजले पहलू हैं।
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