दो दिन पहले दिल्ली में धरना प्रदर्शन हुआ।
माननीय मुख्यमंत्री ने दो दिन धरने पर बैठक उट्ठक लगायी। वहीं दफ़्तर लगाया। वहीं धरना किया। वहीं बयान दिया। वहीं समझौता वार्ता की। जहां से धरना शुरु किया वहीं खतम कर दिया।
एक मुख्यमंत्री सिपाहियों के निलंबन के लिये दो दिन धरना रत रहे। आखिर में दो को छुट्टी पर भेज कर ही मान गये। निलंबन में वेतन आधा मिलता है। छुट्टी में पूरा। सरकार का नुकसान करा दिया धरना खत्म करा कर।
हम समझते थे मुख्यमंत्री बहुत अधिकार संपन्न होता है। लेकिन यहां तो उल्टा ही निकला। दो दिन ठिठुरने के बाद केवल दो लोगों को छुट्टी पर भेज पाये ये तो बहुत गड़बड़ बात है।
लगता है मुख्यमंत्री समर्थन देने वाली पार्टियों को संदेश दे रहे हों– हमको कमजोर और असहाय समझकर मुख्यमंत्री बनवा दिया। हम इसका बदला लेकर रहेंगे। लेकर रहेंगे, लेकर रहेंगे। इंकलाब जिन्दाबाद!
जब माननीय धरने पर बैठे तो हमें लगा जैसे एक कोई शेर एक मेढक के शिकार के लिये धरने पर बैठ जाये। बाद मे पता चला कि मेढक छुट्टी पर चले गये और शेर वापस अपने दफ़्तर लौट आया बोला -जनता जीत गयी।
यह भी लगा कि अब सब पार्टियों को लगता है बातचीत से कुछ हल होने वाला नहीं। सब काम धरने से ही निपटेंगे। धरने पर अगाध भरोसे को देख कर स्व. भगवती चरण वर्मा जी के एक उपन्यास का शीर्षक याद आता है– सामर्थ्य और सीमा। लगता है कि धरना ही उनकी सामर्थ्य है और धरना ही उनकी सीमा। सब काम धरने से।
ये धरना अपने यहां एक बड़ा बवाल है। जिसके मन की न हुयी वो धरने पर बैठ जाता है। अभी माननीय बैठे धरने पर । अब खबर आ रही है कि विरोधी पार्टी धरने पर बैठेगी। निलंबित हो गये होते तो पुलिस वाले बैठ जाते। अब हो सकता है बाकी पुलिस वाले भी धरने पर बैठ जायें –पुलिस वालों में भेदभाव मत करिये। समान पद समान सुविधा के नियम के हिसाब से हमको भी छुट्टी पर भेजिये।
नियम कानून सहज बुद्दि सब बेकार हैं। धरना सार्वभौमिक सत्य है। जिसे देखो वह अपना काम धरने से निकलवा रहा है। देश में जिसे देखो वह धरने पर है।
भ्रष्टाचार धरने पर है कि हमको जायज ठहराओ। काहिली नारा लगा रही है कि हमें ईमानदारी का दर्जा दो। गुंडागर्दी हल्ला मचा रही है कि उसको बहादुरी का स्केल दिया जाये। बर्बरता माइक पर दहाड़ रही है कि हमको देशभक्त न माना गया तो देश वालों की खैर नहीं।
वैसे देखा जाये तो यह सच ही है। धरने का चलन आदि काल से है। दुनिया में जो भी कुछ आजतक मिला वह धरने से ही मिला।
पुराने जमाने में ॠषि लोग तपस्या करते थे। अड़ जाते थे आराध्य के सामने के सामने कि हमको वरदान दो। सालों तक तपस्या करते थे। तपस्या भी तो एक तरह का धरना ही है। देवताओं के सिंहासन हिल जाते थे तपस्या वाले धरने से । तब वे वरदान देकर मामला निपटवाते थे। वरदान वास्तव में एक समझौता ही तो था। बीच का रास्ता होता था। दुनिया में आज तक जो हुआ सब धरने की बदौलत ही मिला।
रावण को शिव से वरदान तपस्या से ही मिला। बैठ गये धरने पर शंकर जी के सामने। सालों बैठे रहे। तब शंकर जी ने वरदान देकर मामला निपटाया। अपना धनुष तक दे दिया। महिषासुर, अर्जुन, बुद्ध सब को अपनी ताकतें, हथियार और ज्ञान सब धरने से ही तो मिले।
न्यूटन भी पेड़ के नीचे बैठे धरना ही तो दे रहे थे जब उनको सेव का गिरना दिखा। उसी से उन्होंने न्यूटन के नियम बनाये।
आर्किमिडीज को भी अपनी समस्या का हल नहीं समझ में आया तो जाकर बैठ गया नहाने के टब में। उसी धरने के चलते उसको उत्प्लावन के नियम का ज्ञान मिला।
दुनिया भर में जितने भी बड़े-बड़े निर्णय हुये वे सब तमाम मीटिंगों में लिये गये। मीटिंग भी तो एक तरह का धरना ही है। जिसमें मांग करने वाले और मांगने वाले एक ही जगह पर होते हैं। घंटो के मोलभाव के बाद समझौता खतम होता है।
कुल मिलाकर हमको तो ये लगता है कि ये दुनिया ही धरना प्रधान है।
आपको क्या लगता है?
माननीय मुख्यमंत्री ने दो दिन धरने पर बैठक उट्ठक लगायी। वहीं दफ़्तर लगाया। वहीं धरना किया। वहीं बयान दिया। वहीं समझौता वार्ता की। जहां से धरना शुरु किया वहीं खतम कर दिया।
एक मुख्यमंत्री सिपाहियों के निलंबन के लिये दो दिन धरना रत रहे। आखिर में दो को छुट्टी पर भेज कर ही मान गये। निलंबन में वेतन आधा मिलता है। छुट्टी में पूरा। सरकार का नुकसान करा दिया धरना खत्म करा कर।
हम समझते थे मुख्यमंत्री बहुत अधिकार संपन्न होता है। लेकिन यहां तो उल्टा ही निकला। दो दिन ठिठुरने के बाद केवल दो लोगों को छुट्टी पर भेज पाये ये तो बहुत गड़बड़ बात है।
लगता है मुख्यमंत्री समर्थन देने वाली पार्टियों को संदेश दे रहे हों– हमको कमजोर और असहाय समझकर मुख्यमंत्री बनवा दिया। हम इसका बदला लेकर रहेंगे। लेकर रहेंगे, लेकर रहेंगे। इंकलाब जिन्दाबाद!
जब माननीय धरने पर बैठे तो हमें लगा जैसे एक कोई शेर एक मेढक के शिकार के लिये धरने पर बैठ जाये। बाद मे पता चला कि मेढक छुट्टी पर चले गये और शेर वापस अपने दफ़्तर लौट आया बोला -जनता जीत गयी।
यह भी लगा कि अब सब पार्टियों को लगता है बातचीत से कुछ हल होने वाला नहीं। सब काम धरने से ही निपटेंगे। धरने पर अगाध भरोसे को देख कर स्व. भगवती चरण वर्मा जी के एक उपन्यास का शीर्षक याद आता है– सामर्थ्य और सीमा। लगता है कि धरना ही उनकी सामर्थ्य है और धरना ही उनकी सीमा। सब काम धरने से।
ये धरना अपने यहां एक बड़ा बवाल है। जिसके मन की न हुयी वो धरने पर बैठ जाता है। अभी माननीय बैठे धरने पर । अब खबर आ रही है कि विरोधी पार्टी धरने पर बैठेगी। निलंबित हो गये होते तो पुलिस वाले बैठ जाते। अब हो सकता है बाकी पुलिस वाले भी धरने पर बैठ जायें –पुलिस वालों में भेदभाव मत करिये। समान पद समान सुविधा के नियम के हिसाब से हमको भी छुट्टी पर भेजिये।
नियम कानून सहज बुद्दि सब बेकार हैं। धरना सार्वभौमिक सत्य है। जिसे देखो वह अपना काम धरने से निकलवा रहा है। देश में जिसे देखो वह धरने पर है।
भ्रष्टाचार धरने पर है कि हमको जायज ठहराओ। काहिली नारा लगा रही है कि हमें ईमानदारी का दर्जा दो। गुंडागर्दी हल्ला मचा रही है कि उसको बहादुरी का स्केल दिया जाये। बर्बरता माइक पर दहाड़ रही है कि हमको देशभक्त न माना गया तो देश वालों की खैर नहीं।
वैसे देखा जाये तो यह सच ही है। धरने का चलन आदि काल से है। दुनिया में जो भी कुछ आजतक मिला वह धरने से ही मिला।
पुराने जमाने में ॠषि लोग तपस्या करते थे। अड़ जाते थे आराध्य के सामने के सामने कि हमको वरदान दो। सालों तक तपस्या करते थे। तपस्या भी तो एक तरह का धरना ही है। देवताओं के सिंहासन हिल जाते थे तपस्या वाले धरने से । तब वे वरदान देकर मामला निपटवाते थे। वरदान वास्तव में एक समझौता ही तो था। बीच का रास्ता होता था। दुनिया में आज तक जो हुआ सब धरने की बदौलत ही मिला।
रावण को शिव से वरदान तपस्या से ही मिला। बैठ गये धरने पर शंकर जी के सामने। सालों बैठे रहे। तब शंकर जी ने वरदान देकर मामला निपटाया। अपना धनुष तक दे दिया। महिषासुर, अर्जुन, बुद्ध सब को अपनी ताकतें, हथियार और ज्ञान सब धरने से ही तो मिले।
न्यूटन भी पेड़ के नीचे बैठे धरना ही तो दे रहे थे जब उनको सेव का गिरना दिखा। उसी से उन्होंने न्यूटन के नियम बनाये।
आर्किमिडीज को भी अपनी समस्या का हल नहीं समझ में आया तो जाकर बैठ गया नहाने के टब में। उसी धरने के चलते उसको उत्प्लावन के नियम का ज्ञान मिला।
दुनिया भर में जितने भी बड़े-बड़े निर्णय हुये वे सब तमाम मीटिंगों में लिये गये। मीटिंग भी तो एक तरह का धरना ही है। जिसमें मांग करने वाले और मांगने वाले एक ही जगह पर होते हैं। घंटो के मोलभाव के बाद समझौता खतम होता है।
कुल मिलाकर हमको तो ये लगता है कि ये दुनिया ही धरना प्रधान है।
आपको क्या लगता है?
भ्रष्टाचार धरने पर है कि हमको जायज ठहराओ। काहिली नारा लगा रही है कि हमें ईमानदारी का दर्जा दो। गुंडागर्दी हल्ला मचा रही है कि उसको बहादुरी का स्केल दिया जाये। बर्बरता माइक पर दहाड़ रही है कि हमको देशभक्त न माना गया तो देश वालों की खैर नहीं। http://hindini.com/fursatiya/archives/5380
केजरीवाल वोट की राजनीति कर रहे हैं। वे जनता को संदेश दे रहे हैं, ”देखो, मुख्यमंत्री बनकर तो एक सिपाही को भी नहीं हटा सकता। इसलिए अब प्रधानमंत्री बनाओ।”
रचना त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..हाउसवाइफ मतलब हरफ़नमौला
केजरीवाल वोट की राजनीति कर रहे हैं। वे जनता को संदेश दे रहे हैं, ''देखो, मुख्यमंत्री बनकर तो एक सिपाही को भी नहीं हटा सकता। इसलिए अब प्रधानमंत्री बनाओ।''
सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..हाथों में तेरे मेरा हाथ रहे
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..सड़कों पर लोकतन्त्र
छुट्टी पर भेजना दंड संहिता के किस नियम /प्रावधान के तहत आता है ?
पुनि-पुनि धरना रत हुए जनता गयी अघाय॥
करत करत धरना प्रबल, सीएम भी बन जाय॥
सीएम भी बन जाय, मगर धरना ना छोड़े।
गृअह मंत्री निरुपाय, मीडिया पीछे दौड़े॥
कहते कवि सिद्धार्थ, अनर्गल कुछ भी करना।
केवल एक उपाय, लगाओ तुम भी धरना॥
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..यूँ छोड़कर मत जाइए (तरही ग़जल-III)
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..फितूर !!!