#सूरज
की किरणें भी बड़े खिलन्दड़े मूड में हैं आज। सड़क पर सरपट जाती महिला के कान
के बालें में लटक कर झूला सरीखा झूलने लगीं। कान का बाला रोशनी से नहा सा
गया। ऐसे चमकने लगा जैसे अनगिनत चकमक पत्थर रगड़ दिये हों किसी ने बाले में।
रोशनी की थोड़ी चमक आंखों तक जा पहुंची बाकी सब सूरज की किरण ने दुनिया भर
में बिखेर दी।
दूसरी किरण एक बच्ची की नाक की कील पर बैठकर उछल-कूद करने लगी। नाक की कील चमकने लगी। उसकी चमक किसी मध्यम वर्ग की घरैतिन को सब्सिडी वाला गैस सिलिन्डर मिलने पर होने वाली चमक को भी लजा रही है। रोशनी से बच्ची का चेहरा चमकने लगा है, आंखों और ज्यादा। आंखों की चमक होंठों तक पहुंच रही है। लग रहा है निराला जी कविता मूर्तिमान हो रही है:
दूसरी किरण एक बच्ची की नाक की कील पर बैठकर उछल-कूद करने लगी। नाक की कील चमकने लगी। उसकी चमक किसी मध्यम वर्ग की घरैतिन को सब्सिडी वाला गैस सिलिन्डर मिलने पर होने वाली चमक को भी लजा रही है। रोशनी से बच्ची का चेहरा चमकने लगा है, आंखों और ज्यादा। आंखों की चमक होंठों तक पहुंच रही है। लग रहा है निराला जी कविता मूर्तिमान हो रही है:
नत नयनों से आलोक उतर,
कांपा अधरों पर थर-थर-थर।
कांपा अधरों पर थर-थर-थर।
- Suresh Sahani आप तो निराला जी को इतना पढ़ लिए की मानस मर्मज्ञ उतना मानस नहीं पढ़े होंगे ।आप इस को सूरज पूराण के नाम से छपवाईयेगा ।बहुत अच्छा लिखा है ,अद्भुत!!!!!!
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