#सूरज
भाई तुम्हारे यहां तो नदियों में आग बहती होती ? धड़ाधड़, भरभराती आग की
नदी। सब तरफ़ भक्क उजाला रहता होता। बिजली की जरूरतई न होती होगी। न कहीं
कोई बिल आता होगा। अंधेरे का कहीं नामोनिशान नहीं होता होगा। तुम्हारे उधर
रहते तो अपने मुक्तिबोध जी ’अंधेरे में’ जैसी कालजयी कविता न रच पाते। हम
आज दनादन सवालै पूछने लगे।
अंधेरा-उजाला सब सापेक्ष होता है माई डीयर। अब जैसे तुम्हारे लिये हमारी यह पचास डिग्री तक रोशनी बहुत काम की लगती है। लेकिन हमारे सतह के 6000 डिग्री के तापमान की तुलना में यह अंधियारा है। हमारे क्रेंन्द्र के लाखों डिग्री के तापमान की तुलना में तो घुप्प अंधेरा। सूरज भाई चाय की चुस्की लेते हुये बोले।
अंधेरा-उजाला सब सापेक्ष होता है माई डीयर। अब जैसे तुम्हारे लिये हमारी यह पचास डिग्री तक रोशनी बहुत काम की लगती है। लेकिन हमारे सतह के 6000 डिग्री के तापमान की तुलना में यह अंधियारा है। हमारे क्रेंन्द्र के लाखों डिग्री के तापमान की तुलना में तो घुप्प अंधेरा। सूरज भाई चाय की चुस्की लेते हुये बोले।
अच्छा सूरज भाई कभी तुम्हारा मन नहीं करता कि ये मुफ़्त की रोशनी की जगह
तुम भी मीटर लगा दो और बिल भेज दो सब रोशनी का? हमने सवाल पूछा?
अरे न भाई! हम रोशनी फ़ैलाते हैं अपने सुख के लिये। ये दुनिया हमारी बच्चियों के लिये खेल का मैदान है। ये सब यहां अठखेलियां करती हैं, उछलती कूदती हैं। उनको देखकर मन खुश हो जाता है। यही हमारे लिये सब कुछ है। हम कोई टुटपुंजियाऔर चिरकुटिया मल्टीनेशनल थोड़ी हैं जो मांग के हिसाब से दाम लगा दें। सूरज भाई अपनी किरणों को दुलराते हुये बोले।
चलते-चलते हमने उनको Priyankar Paliwal की कविता ( http://anahadnaad.wordpress.com/priyankar-poem-sabase-buraa-din/ )सुनाई।
"सबसे बुरा दिन वह होगा
जब कई प्रकाशवर्ष दूर से
सूरज भेज देगा
‘लाइट’ का लंबा-चौड़ा बिल
यह अंधेरे और अपरिचय के स्थायी होने का दिन होगा"
कविता सुनकर सूरज भाई मुस्कराते हुये बोले- निशाखातिर रहो। और सब भले हो जाये लेकिन हमारे यहां से ’लाईट’ का कोई बिल न आयेगा।
हम सोचे सूरज भाई को धन्यवाद दें लेकिन वे चाय का कप रखकर अपनी बच्चियों के साथ दुनिया भर में रोशनी फ़ैलाने निकल लिये।
अरे न भाई! हम रोशनी फ़ैलाते हैं अपने सुख के लिये। ये दुनिया हमारी बच्चियों के लिये खेल का मैदान है। ये सब यहां अठखेलियां करती हैं, उछलती कूदती हैं। उनको देखकर मन खुश हो जाता है। यही हमारे लिये सब कुछ है। हम कोई टुटपुंजियाऔर चिरकुटिया मल्टीनेशनल थोड़ी हैं जो मांग के हिसाब से दाम लगा दें। सूरज भाई अपनी किरणों को दुलराते हुये बोले।
चलते-चलते हमने उनको Priyankar Paliwal की कविता ( http://anahadnaad.wordpress.com/priyankar-poem-sabase-buraa-din/ )सुनाई।
"सबसे बुरा दिन वह होगा
जब कई प्रकाशवर्ष दूर से
सूरज भेज देगा
‘लाइट’ का लंबा-चौड़ा बिल
यह अंधेरे और अपरिचय के स्थायी होने का दिन होगा"
कविता सुनकर सूरज भाई मुस्कराते हुये बोले- निशाखातिर रहो। और सब भले हो जाये लेकिन हमारे यहां से ’लाईट’ का कोई बिल न आयेगा।
हम सोचे सूरज भाई को धन्यवाद दें लेकिन वे चाय का कप रखकर अपनी बच्चियों के साथ दुनिया भर में रोशनी फ़ैलाने निकल लिये।
- Kumkum Tripathi परोपकारी लोग कभी भी अपने किए उपकारों का एहसान नहीं जताते बल्कि इसमें सदैव अपनी खुशी ही देखते हैं . ............बहुत खूब
- Amit Kumar Srivastava सूरज महराज मन ही मन सोच रहे होंगे ,अभी ठण्ड है तभी रोज़ हमारा इंटरव्यू छाप छाप कर गर्मी बटोर रहे हैं । देखते हैं एक दो माह बाद यह सिलसिला कायम रहता है कि नहीं ।
- Shailendra Kumar Jha bahot accha kiya aapne 'suraj bhai' ko ye "kavita" samarpit kar..............hamne ye kavita ka ye mukhra 'dak-saheb'(anurag aaryaji) ke blog pe padha tha............
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