#सूरज
भाई पेड़ों के पत्ते से ऐसे झांक रहे हैं जैसे अपन भद्दर जाड़े में रजाई से
मुंह निकाल के लेटे-लेटे टीवी देखते रहते हैं। हमने पूछा -आपकी बच्चियां
किधर ? बोले- आ रही हैं। बिना सजे-संवरे , सुन्दर बने कहीं निकलती नहीं।
हमसे कहा- आप चलो आगे पापा हम आते हैं। ये ल्लो आ गयीं न सब नटखट , शरारती
बच्चियां। देखते-देखते सूरज की सब लाड़लियां समूची कायनात में पसर गयीं।
#सूरज भाई वात्सल्य से चमकती आंखों से अपनी बच्चियों को निहारते हुये चाय
पीते रहे।
लेबल
अमेरिका यात्रा
(75)
अम्मा
(11)
आलोक पुराणिक
(13)
इंकब्लॉगिंग
(2)
कट्टा कानपुरी
(119)
कविता
(65)
कश्मीर
(40)
कानपुर
(305)
गुड मार्निंग
(44)
जबलपुर
(6)
जिज्ञासु यायावर
(17)
नेपाल
(8)
पंचबैंक
(179)
परसाई
(2)
परसाई जी
(129)
पाडकास्टिंग
(3)
पुलिया
(175)
पुस्तक समीक्षा
(4)
बस यूं ही
(276)
बातचीत
(27)
रोजनामचा
(896)
लेख
(36)
लेहलद्दाख़
(12)
वीडियो
(7)
व्यंग्य की जुगलबंदी
(35)
शरद जोशी
(22)
शाहजहाँ
(1)
शाहजहाँपुर
(141)
श्रीलाल शुक्ल
(3)
संस्मरण
(48)
सूरज भाई
(167)
हास्य/व्यंग्य
(399)
Wednesday, February 05, 2014
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment