आज
सुबह जगे तो बाहर पक्षी कलरव कर रहे थे। कलरव तो खाली लिखने को लिखा
क्योंकि पक्षियों की आवाज को कलरव कहते हैं बाकी उनकी आवाज से तो लग रहा था
की बड़ी तेज हल्ला मचा रहे हैं।आसमान एकदम सर पर उठाये थे। मौके की ताड़ में
कि कोई दिख भर जाये विरोधी की उसके सर पर पटक दें पूरा का पूरा आसमान हाथ न
आई कुर्सी की तरह।
सूरज भाई भी गरम मिजाज में दिखे। पेड़,पौधों, पत्तियों पर इतनी ज्यादा धूप सप्लाई कर रहे थे कि वे बेचारे झुलस से रहे थे-जैसे ज्यादा खाद से फसल झुलस जाती है या अतिसय प्रेम प्रदर्शन सुलगाता सा लगता है।
सूरज भाई के जलवे का हाल यह कि जिस पर उनकी नजर पड़ी उसको धूप में नहला दे रहे थे। सुलगा दे रहे थे। किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि उनको टोंके।छाया का कहीं नामोनिशान नहीं दिख रहा था। सब झुलस रहे थे।
एक दुबला-पतला कीड़ा धूप की तेजी से बिलबिलाता इधर-उधर भगा चला जा रहा था। गरम जमीन पर चलने से उसके पेट पर छाले पड़ रहे थे। उसकी परेशानी देख कर एक घास की पत्ती ने उसको अपने नीचे छिपा लिया। कीड़ा उस पत्ती से ऐसे चिपक गया जैसे माँ के पेट से बच्चा।
इसके बाद तो सूरज भाई की भी हिम्मत नहीं हुई कि उस कीड़े को कुछ नुकसान पहुंचाए। उन्होंने अपनी तेजी थोड़ी धीमी की। पेड़ों ने भी अपनी पत्तियाँ हिलाकर हवा की। कुछ पत्तियाँ तो उस घास की पत्ती के ऊपर आकर गिर गयीं मानों वे बताना चाह रहीं थीं कि सूरज से मुकाबले में वे सर्वहारा घास के साथ खड़ी है। पक्षी भी पंख फड़फड़ाते हुए, आवाज करते हुए इसका स्वागत किया!
पक्षी ऐसे आवाज कर रहे थे मानों किसी का समर्थन कर रहे हों या विरोध। एक कौवा और मोर आमने-सामने की छत पर बैठे कांव-कांव ,केहौन-केहौन कर रहे थे। एक कांव के बाद एक केहौन। लग रहा था दोनों आपस में इंटरव्यू-इंटरव्यू खेल रहे हों। दोनों बड़े संतुष्ट टाइप दिख रहे थे। मुझे लगा कि ये नठिया मीडिया मासूम पक्षियों तक को बरगला रहा है।
शाम तक सूरज के तेवर थोड़े नरम पड़ते दिखे। ठेले पर ककड़ी बिक रही थी। दस रूपये पाव। पाव भर ककड़ी खरीद कर साथ-साथ खाते हुए हम देश के हाल पर चिन्तन टाइप करने लगे। सूरज की किरणें भी मुस्कराने, खिलखिलाने लगीं आसपास ताकि सूरज भाई का मूड ठीक हो जाये। हमने सूरज भाई को चाय भी पिलाई। उसके बाद वे उचककर निकल लिए। बोले -सी यू टुमारो!
कल मिलेंगे तो पूछुंगा सूरज भाई से कि वे इत्ते गरम क्यों हो रहे थे इत्ता? आज तो क्या पूछना -अब शाम होने वाली है।
सूरज भाई के जलवे का हाल यह कि जिस पर उनकी नजर पड़ी उसको धूप में नहला दे रहे थे। सुलगा दे रहे थे। किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि उनको टोंके।छाया का कहीं नामोनिशान नहीं दिख रहा था। सब झुलस रहे थे।
एक दुबला-पतला कीड़ा धूप की तेजी से बिलबिलाता इधर-उधर भगा चला जा रहा था। गरम जमीन पर चलने से उसके पेट पर छाले पड़ रहे थे। उसकी परेशानी देख कर एक घास की पत्ती ने उसको अपने नीचे छिपा लिया। कीड़ा उस पत्ती से ऐसे चिपक गया जैसे माँ के पेट से बच्चा।
इसके बाद तो सूरज भाई की भी हिम्मत नहीं हुई कि उस कीड़े को कुछ नुकसान पहुंचाए। उन्होंने अपनी तेजी थोड़ी धीमी की। पेड़ों ने भी अपनी पत्तियाँ हिलाकर हवा की। कुछ पत्तियाँ तो उस घास की पत्ती के ऊपर आकर गिर गयीं मानों वे बताना चाह रहीं थीं कि सूरज से मुकाबले में वे सर्वहारा घास के साथ खड़ी है। पक्षी भी पंख फड़फड़ाते हुए, आवाज करते हुए इसका स्वागत किया!
पक्षी ऐसे आवाज कर रहे थे मानों किसी का समर्थन कर रहे हों या विरोध। एक कौवा और मोर आमने-सामने की छत पर बैठे कांव-कांव ,केहौन-केहौन कर रहे थे। एक कांव के बाद एक केहौन। लग रहा था दोनों आपस में इंटरव्यू-इंटरव्यू खेल रहे हों। दोनों बड़े संतुष्ट टाइप दिख रहे थे। मुझे लगा कि ये नठिया मीडिया मासूम पक्षियों तक को बरगला रहा है।
शाम तक सूरज के तेवर थोड़े नरम पड़ते दिखे। ठेले पर ककड़ी बिक रही थी। दस रूपये पाव। पाव भर ककड़ी खरीद कर साथ-साथ खाते हुए हम देश के हाल पर चिन्तन टाइप करने लगे। सूरज की किरणें भी मुस्कराने, खिलखिलाने लगीं आसपास ताकि सूरज भाई का मूड ठीक हो जाये। हमने सूरज भाई को चाय भी पिलाई। उसके बाद वे उचककर निकल लिए। बोले -सी यू टुमारो!
कल मिलेंगे तो पूछुंगा सूरज भाई से कि वे इत्ते गरम क्यों हो रहे थे इत्ता? आज तो क्या पूछना -अब शाम होने वाली है।
- सलिल वर्मा हर बात का दोष सूरज पर डालना बन्द कीजिये.. जनता कभी माफ़ नहीं करेगी!! बाइ द वे हमारे यहाम तो आग के गोले से निपटने के लिये यही गोला कारगर हो रहा है!!
- Reena Mukharji
- Sangita Mehrotra AAp bahut dayaalu h ji !Iss garmi mein bhi suraj ko hero ki tarah depict kar rahe h !
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