दिल्ली से कलकत्ता के लिए जैसे ही जहाज में बैठे तो देखा सूरज भाई बाहर चमक रहे थे। हमने कहा-बोले साथ चलेगे। हमने कहा अन्दर आ जाओ भाई! वो बोले -टिकट नहीं लिया! और फिर काहे को पैसा फूंकना? इसी जहाज की छत पर लद के चलेंगे। फ्री फंड में।
देखते-देखते जहाज उड़ा और उचक कर शहर के बाहर हो लिया। नीचे सड़क,मकान,मैदान सब छोटे होते चले गए।
ऊपर पहुंचते समय सूरज की रोशनी कम साफ़ दिखाई दी। हम पूछे -यार सुरज भाई तुम हमको नीचे तो एकदम चमकदार रौशनी भेजते हो। लेकिन यहाँ मटमैली धुप कैसे? वो बोले-ऊपर उठने में सब जगह गंदगी होती है भाई! हमें लगा वे फिलासफी वाले मूड में हैं तो हम चुप मार गए।
ऊपर से जमीन ऐसे दिख रही थी जैसे कोई बहुत बड़ा कैनवास पसरा है जमीन पर और उस पर कोई नौसिखुआ कलाकार चित्रकारी करता जा रहा हो। तरह-तरह के रंग की कलाकारी ! धूसर,मटमैले,हरे,नीले रंग की आकृतियाँ। कहीं-कहीं तो रंग मिला दिए ताकि नया रंग दिख सके।
धूसर मटमैले कैनवास के ऊपर नीला आसमान तना हुआ है। आसमान अपने को शायद बड़ा पवित्र समझता है सो उसने कैनवास और अपने बीच एक मोटी सफ़ेद पट्टी सरीखी खींच रखी है। जैसे वो कलाकार से कह रहा हो-" ये हमारे तुम्हारे बीच की लक्षमण रेखा है। इसे पार किया तो तुमको भी नीला कर देंगे।"
लेकिन धीरे-धीरे धरती का कैनवास बढ़ता जा रहा है।आसमान के नीले रंग को धकियाकर पीछे करता जा रहा है। देखते-देखते दोनों रंग एक दुसरे में घुल-मिल गए जैसे चुनाव के समय एक दुसरे की धुर विरोधी विचार धारा वाले गठबंधन बना लेते हैं।
देखते-देखते कोलकाता पहुंच गए अपन। नीचे के पेड़ पौधे मकान साफ नजर आने लगे। आयताकार खेत मैदान ऐसे दिख रहे थे कि उनका क्षेत्रफल निकालने का मन किया। लेकिन कुछ करते इसके पहले ही जहाज धड से हवाईपट्टी पर उतर गया। परिचारिका कलकाता के नेताजी सुभाष चन्द्र एयरपोर्ट पर स्वागत करते हुए सामान समेटने को कह रही है।
सामान समेट के उतरे तो सूरज भाई लपककर गले मिले और बोले -कोलकाता में स्वागत है।कोलकाता में चमकीली धूप पसरी थी। सुबह की।
- Kumkum Tripathi कठिन दीदा है जी, आपका .......ऊ आपके समनवे जहाजी के छत पर चढ़ गये अउर आप ऊनको समझईबो नहीं किए!.........बताइए कहीं वो गीर गए रहते तो क्या होता?...........
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तब सुखाते कपड़ा ,ढेबरी अउर बलबे के अजोरे - Krishn Adhar आयता कार मैदान और छेत्रफल निकालने का मन-एक इंजीनियर की इससे महान इच्छा और क्या हो..कापरनिकस ने जव ग्रहों की परवलयाकार गति का अधेय्यन किया तो उसने पैरावोला के जो सिद्धान्त वनाये थे,विभिन्न ग्रहों को वही नियम पालन करते पाया,तव उसने भी कहा था,ईश्वर निश्चित एक पक्का गणितग्य होगा..हरएक की कविता-भाषा अलग है।
- Jyoti Singh ek mulakat meri bhi suraj ke saath hui thi isi tarah lekin wo purani ho gayi aur main safar apne suraj ke sang aasmaan par nahi zameen par kar rahi thi .lekin aapki yaatra kafi dilchsp lagi padhkar aanand aa gaya ,
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