आज
सुबह-सुबह जल्दी उठ गए। देखा तो सूरज भाई नदारद। हम उनके हाजिरी रजिस्टर
में 'अनुपस्थित' लिखने ही वाले थे।फिर सोचा जरा आगे बढ़ के देख लें। देखा तो
भाई जी काम भर का उग आये थे।
फिर साईकिल लेकर सड़क पर निकल लिए। सूरज भाई भी साथ लग लिए। सड़क पर लोग टहलने का काम करते दिखे। एक बुजुर्ग जोड़ा खरामा-खरामा टहलता दिखा। एक पुलिया पर कुछ बच्चे कसरत सी करते दिखे। एक बच्चा पुलिया को पीछे धकेलने टाइप की कोई कसरत कर रहा था। लेकिन पुलिया न टस्स हो रही थी न मस्स। लेकिन बच्चा जुटा था पसीना बहाते हुये। दूसरा बच्चा पास के बस स्टैंड की रेलिंग पर बत्तख की तरह हाथ फैलाये चल रहा था। संतुलन साधने की कोशिश में जमीन से तीन फुट ऊपर दायें-बाएं हो रहा था। वह गठबंधन सरकार की तरह किसी तरह अपना गिरना बचाए हुए था और इसी को अपनी सफलता मानते हुए गच्च था।
सड़क पर चार बच्चियां भी दिखीं। दो साईकिल थामे चल रहीं थीं। दो आपस में गलबहियां डाले खिलखिला रहीं थीं। उनको घर लौटने की कोई जल्दी नहीं थी। लगता है वे घर लौटने के पहले जी भर कर हंस लेना चाहती थीं। भर मन खिलखिला लेना चाहतीं थीं। क्या पता घर में खिलखिलाने पर कोई टोंक देता हो उनको। उनको हंसते देख सूरज की अनगिनत किरणें भी उनके चेहरे पर बैठ कर मुस्कराने लगीं। देखा-देखी तमाम किरणें और आ गयीं लेकिन बच्चियों का चेहरा किरणों से हाउसफुल था।मतलब कि ’फ़ेसफ़ुल’ था। यह देखकर कुछ किरणें तो शरीफ़ों की तरह दूसरी जगह लौट गयीं लेकिन कुछ जिद्दी किरने बच्चियों की आँखों में धंसकर बैठ गयीं। कुछ बच्चियों के दांतों में रेल के जनरल डिब्बे के मुसाफिरों सरीखी लटककर चमकने लगीं।
रास्ते में एक पेड़ दिखा। एक ही पेड़ पर कुछ पत्तियां अलग-अलग रंग में रंगी दिखीं। एक का रंग दूसरे के मुकाबले कम हरा दिखा। हमें लगा बताओ कि भला जब एक ही पेड़ पर रंग का वितरण असमान है तो भला देश में एक सामान कैसे हो सकता है। क्या पता पेड़ में भी इस मुद्दे पर बहस होती हो। एक डाल की पत्तियाँ दूसरे पर आरोप लगतीं हों- "तुमने सारा रंग चुरा लिया।" क्या पता इस पर वे पत्तियां जबाब देतीं हो-"ये हमारी मेहनत की कमाई हैं। ये हरियाली हमने खैरात में नहीं पाई है।"
सूरज भाई भी यह सब देखकर मुस्कराते टाइप ही दिखे। चुनाव के हल्ले से बेखबर वे अपने काम में जुटे थे।साथ में चाय पीते हुए हम दोनों टीवी देख रहे थे। चुनाव की खबरें दिखाता हुआ एक संवाददाता कह रहा था- "इसमें इमोशन भी है, ड्रामा भी है, एक्शन भी है।" पता नहीं क्यों सम्वाददाता ने पैसा और शराब क्यों नहीं कहा।
अगली खबर एक किसान की आत्महत्या की है। किसान ने कर्ज के चलते आत्महत्या की। टीवी वाला बार-बार बता रहा है कि यह खबर सबसे पहले वही दिखा रहा है।
चाय पीकर सूरज भाई निकल लिए। एक और सुबह हो गयी।
फिर साईकिल लेकर सड़क पर निकल लिए। सूरज भाई भी साथ लग लिए। सड़क पर लोग टहलने का काम करते दिखे। एक बुजुर्ग जोड़ा खरामा-खरामा टहलता दिखा। एक पुलिया पर कुछ बच्चे कसरत सी करते दिखे। एक बच्चा पुलिया को पीछे धकेलने टाइप की कोई कसरत कर रहा था। लेकिन पुलिया न टस्स हो रही थी न मस्स। लेकिन बच्चा जुटा था पसीना बहाते हुये। दूसरा बच्चा पास के बस स्टैंड की रेलिंग पर बत्तख की तरह हाथ फैलाये चल रहा था। संतुलन साधने की कोशिश में जमीन से तीन फुट ऊपर दायें-बाएं हो रहा था। वह गठबंधन सरकार की तरह किसी तरह अपना गिरना बचाए हुए था और इसी को अपनी सफलता मानते हुए गच्च था।
सड़क पर चार बच्चियां भी दिखीं। दो साईकिल थामे चल रहीं थीं। दो आपस में गलबहियां डाले खिलखिला रहीं थीं। उनको घर लौटने की कोई जल्दी नहीं थी। लगता है वे घर लौटने के पहले जी भर कर हंस लेना चाहती थीं। भर मन खिलखिला लेना चाहतीं थीं। क्या पता घर में खिलखिलाने पर कोई टोंक देता हो उनको। उनको हंसते देख सूरज की अनगिनत किरणें भी उनके चेहरे पर बैठ कर मुस्कराने लगीं। देखा-देखी तमाम किरणें और आ गयीं लेकिन बच्चियों का चेहरा किरणों से हाउसफुल था।मतलब कि ’फ़ेसफ़ुल’ था। यह देखकर कुछ किरणें तो शरीफ़ों की तरह दूसरी जगह लौट गयीं लेकिन कुछ जिद्दी किरने बच्चियों की आँखों में धंसकर बैठ गयीं। कुछ बच्चियों के दांतों में रेल के जनरल डिब्बे के मुसाफिरों सरीखी लटककर चमकने लगीं।
रास्ते में एक पेड़ दिखा। एक ही पेड़ पर कुछ पत्तियां अलग-अलग रंग में रंगी दिखीं। एक का रंग दूसरे के मुकाबले कम हरा दिखा। हमें लगा बताओ कि भला जब एक ही पेड़ पर रंग का वितरण असमान है तो भला देश में एक सामान कैसे हो सकता है। क्या पता पेड़ में भी इस मुद्दे पर बहस होती हो। एक डाल की पत्तियाँ दूसरे पर आरोप लगतीं हों- "तुमने सारा रंग चुरा लिया।" क्या पता इस पर वे पत्तियां जबाब देतीं हो-"ये हमारी मेहनत की कमाई हैं। ये हरियाली हमने खैरात में नहीं पाई है।"
सूरज भाई भी यह सब देखकर मुस्कराते टाइप ही दिखे। चुनाव के हल्ले से बेखबर वे अपने काम में जुटे थे।साथ में चाय पीते हुए हम दोनों टीवी देख रहे थे। चुनाव की खबरें दिखाता हुआ एक संवाददाता कह रहा था- "इसमें इमोशन भी है, ड्रामा भी है, एक्शन भी है।" पता नहीं क्यों सम्वाददाता ने पैसा और शराब क्यों नहीं कहा।
अगली खबर एक किसान की आत्महत्या की है। किसान ने कर्ज के चलते आत्महत्या की। टीवी वाला बार-बार बता रहा है कि यह खबर सबसे पहले वही दिखा रहा है।
चाय पीकर सूरज भाई निकल लिए। एक और सुबह हो गयी।
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- Abhinay Kumar Sharma, Krishna Kumar Jain, Monika Jain और 30 अन्य को यह पसंद है.
- Reena Mukharji Gud post
- Kumkum Tripathi बहुत बढ़िया लिखे हैं ।लेकिन पेड़वा हमें ,विविधताओं से भरा अपना भारतवर्ष लग रहा है जो आज-कल अपने लिए योग्य माली के तलाश में है ।
- Satish Tewari बच्चियां गलबहियां डाले इस लिये जी भर के खिलखिला रहीं थीं क्योंकि घर में खिलखिलखिलाने की आज़ादी जो नहीं मिलती ....
- Subhash Chander Beautiful description of the morning and photograph of the rising sun is so refreshing .
- Deepti Singh सूरज के बिम्ब तो बस कमाल के हैं सर. पढते हुए लगता है, जैसे सचमुच सूरज आपके साथ चाय पी रहा.
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