पिछले हफ़्ते छुट्टी में कानपुर गये थे। लैपटॉप साथ ले गये थे। अंजर-पंजर ढीले हैं बुजुर्गवार के। उमर के साथ विदा होते जाने वाले दांतों की तरह एकाध कुंजियां गायब हैं। बैटरी भी खलास है। बैटरी वैसे भी बिचौलिया टाइप है। बिजली को अपने पास इकट्ठा करेगी। फ़िर लैपटॉप को भेजेेगी। अब बैटरी खलास होने से लैपटॉप और बिजली का सीधा हाटलाइन कनेक्शन है। इधर कनेक्शन हुआ कम्प्यूटर चालू। तार हिला स्क्रीन गायब।
घर गये तो देखा कनेक्शन चकाचक था। लिखकर आ रहा था सिग्नल स्ट्रेंग्थ-एक्सेलेंट। लेकिन डाटा इधर-उधर नहीं हो रहा था। कोई साइट नहीं चल रही थी। हर साइट माफ़ी मांग रही थी- भैया हमसे न होगा। हम न चल पायेंगे। कुछ गड़बड़ है। दूसरा कम्प्यूटर देख लो।
सिग्नल एक्सेलेंट लेकिन डाटा ट्रांसफ़र शून्य। कुछ ऐसे ही जैसे अर्थव्यवस्था चकाचक है लेकिन गरीब लोग भूख के चलते आत्महत्या कर रहे हों। उजाले के साइनबोर्ड के सामने घुप्प अंधेरा पसरा है।
कम्यूटर रिपेयर वाले को बुलाया। देखते ही बोला -"कम्प्यूटर में भयंकर वायरस है। फ़ार्मेट करना पडेगा।"
अपने यहां कम्प्यूटर से जुडी हर समस्या का समाधान उसको फ़ार्मेट कर देना माना जाता है। चल नहीं रहा- ’फ़ार्मेट कर दो’। अटक रहा है -’फ़ार्मेट कर दो’ हर समस्या का हल फ़ार्मेटिंग में है।
यह कुछ-कुछ अमेरिकी अंदाज जैसा है। हर समस्या का इलाज हमला कर देने में है। ईराक, अफ़गानिस्तान उसके पहले वियतनाम। जिसके साधन पर कब्जा करना हो। उसमें कोई कमी बनाकर उस पर हमला कर दो। फ़ार्मेट कर दो उसको।पहले लूटकर बरबाद करो फ़िर नवनिर्माण के ठेके हासिल करो। परसाई जी कहते भये:
"अमरीकी शासक हमले को सभ्यता का प्रसार कहते हैं.बम बरसते हैं तो मरने वाले सोचते है,सभ्यता बरस रही है।"बहरहाल हमने सोचा कि करा लेते हैं फ़ार्मेट। कम्प्यूटर बालक पुरानी सिस्टम पर पोछा लगाने ही वाला था कि हमें याद आया कि अपन के मोबाइल पर भी तो नेट इसई वाई-फ़ाई से चलता है। इसमें भी डाटा टस से मस न हो रहे हैं। क्या इसको भी फ़ार्मेट कराओगे मालिक। बस्स हमने रोक दिया। मत करो फ़ार्मेट। बाद में देखेंगे।
अब यहां जबलपुर आकर देखते हैं तो दस साल पुराने बुजुर्ग कम्प्यूटर बाबा टनाटन चल रहे हैं। जित्ता डाटा अन्दर ले रहे हैं उसई के अल्ले-पल्ले बाहर कर रहे हैं। न कोई आर्मेटिंग न कोई फ़ार्मेटिंग। अब यह अलग बात है कि सब अंजर-पंजर ढीले हैं। कभी कोई अंग हड़ताल पर चला जाता है। कभी कोई और। कभी बिजली गुल, कभी कुंजी अटक गई। लेकिन चल रहा है बराबर।
असल में आज के जमाने में रिपेयरिंग का मतलब बदलना हो गया है। जरा सा अटके नहीं कि सलाह उछलती है -"बदल देते हैं। फ़ार्मेट कर देते हैं।" किसी भी कमी को समझकर उसको दूर करने का धैर्यभाव कम होता जा रहा है। पुराने को ठीक करने से अच्छा है नया ले लेना। पुराने को ठीक करने के लिये उसको समझना होता है। उतनी जानकारी किससे पास है। इससे अच्छा है जो चीज खराब दिखे उसे बदल ही डालो।
आपका कम्प्यूटर भी ऐसे ही चलता है क्या?
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