सबेरे स्वराज वृद्धाश्रम के बारे में लिखा तो दिलीप घोष जी का जिक्र छोड़ दिया। सोचा तसल्ली से और तफ़सील से लिखेंगे। तो आइये आपको मिलवाया जाये दिलीप घोष जी से।
दिलीप घोष पिछले चार साल से वृद्धाश्रम में रह रहे हैं। उम्र 68 साल के करीब है। लेकिन जो बात बताने की है वह यह कि घोष जी तीन विषयों में डीलिट हैं। अंग्रेजी, अटामिक इनर्जी और केमिकल इन्जीनियरिंग। अध्यापन के क्षेत्र से जुड़े रहे। बीस साल अमेरिका , दस साल लन्दन , पांच साल फ़ांस में रहने और पढाने के बाद आखिरी में आई.आई.टी. कानपुर में अध्यापन कर रहे थे।
अंग्रेजी में घोष जी की थीसिस शेक्सपियर पर थी। विषय था "अनामलीस आफ़ टाइम एंड प्लेस इन 30 आउट आफ़ 37 प्लेस बाई शेक्सपियर" मतलब शेक्सपियर के 37 में से 30 नाटकों में समय और स्थान की विसंगतियां। 400 पेज की इस थीसिस में बताया गया था कि शेक्सपियर के 30 नाटकों में क्या-कया विसंगतियां थीं। घोष जी हंसते हुये बताया -"जब थीसिस लिखी गयी तो दोस्तों ने कहा कि अंग्रेज लोग तुमको पकड़कर पीटेंगे।" लेकिन जब थीसिस प्रकाशित हुई तो उसकी इंग्लैंड में बहुत चर्चा हुई।
शेक्सपियर के कई नाटकों की कहानी खड़े-खड़े सुनाई घोष जी ने। उनके बिस्तरे पर ढेर सारी किताबें रखी थीं। अंग्रेजी, गणित, विज्ञान, सामान्य विषयों की और डेल कार्नेगी की हाऊ टु विन फ़्रेंड्स घराने की किताबें भी। सामने शेक्सपियर के संपूर्ण नाटकों की किताब रखी थी। लेकिन घोष जी की आंखों की रोशनी पढने लायक नहीं रही अब। बताया कि अटामिक इनर्जी की रिसर्च के दौरान उनकी आंख का रेटिना क्षतिग्रस्त हो गया है। आपरेशन कराया लेकिन रेटिना तक सिग्नल नहीं जाते। बताया कि शेक्सपियर का सारा लेखन उनको मुंहजबानी याद है।
शेक्सपियर के समय के किस्से सुनाते हुये बताया कि उस समय दर्शक भूतप्रेतों के किस्सों में यकीन करते थे। उनको ’एलिजाबैथियन दर्शक’ कहते थे। शेक्सपियर गरीब घर में पैदा हुआ था लेकिन अपने नाटकों के जरिये बहुत अमीर हुआ।
अमेरिका, इंगलैंड और फ़्रांस के कई किस्से सुनाये घोष जी ने। अंग्रेजी, फ़्रेंच, हिन्दी, बांगला के अलावा और भी कई भाषाये जानते हैं। लंदन के कई रोचक किस्से सुनाये।
लंदन की लम्बाई चौड़ाई के बारे में बताते हुये कहा- ’समझ लीजिये यहां से लखनऊ तक लम्बा और उतना ही चौड़ा शहर है लन्दन। लेकिन वहां धूप देखने को तरस जाते हैं लोग। इसीलिये हमको पसन्द नहीं।’ मुझे मुस्ताक अहमद युसूफ़ी के खोया पानी की यह संवाद याद आ गया- " यूं लंदन बहुत दिलचस्प जगह है और इसके अलावा इसमें कोई खराबी नजर नहीं आती कि गलत जगह पर स्थित है। थोड़ी-सी कठिनाई जुरूर है कि आसमान हर समय बादलों और कोहरे से घिरा रहता है। सुब्ह और शाम में अंतर पता नहीं लगता। इसलिए लोग A.M. और P.M. बताने वाले डायल की घड़ियां पहनते हैं।" (http://www.hindisamay.com/contentDetail.aspx… )
लंदन की यादें साझा करते हुये घोष जी ने बताया कि वहां लोगों के छातों में रेडियो लगे रहते हैं । लोग रेडियो सुनते चलते जाते हैं (यह मेरे लिये नई जानकारी थी)। और भी अनेक किस्से सुनाये घोष जी ने।
बातचीत के दौरान पता चला कि घोष जी के पिताजी ( स्व. श्री पी आर घोष) आर्डनेन्स फ़ैक्ट्री के अधिकारी थे। आर्डनेन्स फ़ैक्ट्री से जुड़े कई लोगों से जानपहचान के किस्से सुनाये घोष जी ने।
यहा वृद्धाश्रम में रहते हुये अक्सर मेडिकल कालेज में अंग्रेजी और मेडिसिन/केमिकल की क्लास लेने जाने जाते हैं घोष जी। उसका मानदेय मिलता है। मेडिकल कालेज से लोग लेने और छोड़ने आते हैं।
बात शौक की चली तो बताया घोष जी ने उनको तबला, गिटार आदि बजाने का शौक है। इधर उंगलियां सुन्न रहने लगी हैं तो डाक्टर ने तबला बजाने की सलाह दी थी लेकिन अभी तक अमल में नही लाई गयी सलाह। लेकिन अब बजाने की सोचते हैं।
प्रकृति की संगत में रहना अच्छा लगता है घोष जी को। नहाना दिन में चार बार होता है। आखिरी स्नान रात के दस बजे होता है।
इन सब खूबियों वाले घोष जी ने घर नहीं बसाया। बताया कि वे अपने लिये परफ़ेक्ट जीवन साथी खोज रहे थे। इसी चक्कर में शादी नहीं कर पाये। अब महसूस करते हैं कि घर बसाना चाहिये था।
हमने कहा - ’अब भी समय है। कोई जीवन साथी खोजकर रहिये मजे से।’
’अब तो ऊपर वाले के साथ ही रहने के लिये अप्लाई किया है। उसी के साथ रहेंगे। लेकिन वहां वेटिंग लाइन लम्बी है।’ -घोष जी ने कहा।
हमने उनके कन्धे पर हाथ रखकर और हाथ अपने हाथ में लेकर दोस्ताना अंदाज में सलाह दी -’ घर मत बसाइये लेकिन कोई महिला दोस्त ही बना लीजिये। कुछ तो भरपाई होगी आपकी परफ़ेक्शन के चक्कर में घर न बसाने के निर्णय की।’
इस पर उन्होंने एक महिला का जिक्र करते हुये बताया कि वो आती थीं। अपने साथ चलने के लिये कहा भी लेकिन गये नहीं घोष जी। अभी भी कभी-कभी बात होती रहती है।
मैं इस बात का पक्का हिमायती हूं कि जीवन में दाम्पत्य जीवन बिताना सबसे जरूरी अनुभव है। इन्सान को अपना घर अवश्य बसाना चाहिये। इसका अनुभव अपने आप में अनोखा और अमूल्य होता है।
काफ़ी देर बतियाने के बाद हम लौट आये। कई बातें इधर-उधर हो गयीं । आज शाम को बात हुई तो पता चला कि शाम को घुटने में चोट लग गयी। खून भी निकला। गिरने का किस्सा बताते हुये बोले-’ मुझे अपनी चोट से ज्यादा अपना पायजामा खराब होने की चिन्ता थी। दर्द हल्का है। लेकिन दो-तीन दिन तो लग ही जायेंगे ठीक होने में।’
चोट के बावजूद शाम का नहाने का कार्यक्रम उनका यथावत हुआ। घुटने में पालीथीन लपेटकर नहा लिये।
घोष जी को एक आम बंगाली भद्रजन की तरह खाना बनाने का भी शौक है। वेज और नानवेज दोनों बना लेते हैं। हमने कहा -’एक दिन चलेंगे घर पर आपके हाथ का बना खाना खायेंगे।’ उन्होंने कहा -’जरूर चलेंगे। हम आपको रेसिपी लिखकर दे देंगे। उसके हिसाब से तैयारी कर लीजियेगा। फ़िर हम चलकर बनायेंगे खाना।’
देखिये अगली बार कब मुलाकात होती है घोष जी से। उनसे मिलकर बहुत आनन्द आया था। बहुत विलक्षण व्यक्तित्व हैं घोष जी। ज्ञान और बेहतरीन अभिव्यक्ति का बेहतरीन संगम । उनसे फ़िर से मिलने का इंतजार है।
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