परसों हम फ़िर पूछते-पांछते पहुंचे स्वराज आश्रम। पनकी स्थित इस आश्रम के रास्ते में केडीए के तमाम फ़्लैट बनते दिखे। किसी खाली जमीन पर किसी पब्लिक स्कूल का बोर्ड लगा हुआ था। जब आबादी बस जायेगी तब स्कूल चलेगा धक्काड़े से।
वृद्धाश्रम के बाहर ही एक महिला बैठी खुद से बतिया रही थी। अन्दर पहुंचे तो पहली महिला जो मिली उसके पिता आर्डनेन्स फ़ैक्ट्री में काम करते थे। पति रहे नहीं तो अब यहां रहती है।
गेट के पास ही बने आफ़िस में दो बुजुर्ग बैठे थे। आफ़िस में सोफ़ा, तखत, मेज आदि लगा हुआ था। दोनों बुजुर्गों में से एक चौधरी जी थे और दूसरे गुप्ता जी। चौधरी जी अपनी पत्नी समेत रहते हैं वृद्धाश्रम में। यहां रहने का कारण पूछने पर बताया -’ पीढीगत सोच का अन्तर मुख्य कारण है। हम बुजुर्ग लोग पुराने जमाने के टिकट सरीखे हैं जिनमें मशीन से तारीख खुदकर निकलती थी। नई पीढी कम्प्यूटर से छपी टिकट सरीखी है जिससे सोच नहीं मिली।’
एक बेटी और एक बेटे के पिता चौधरी जी ने बताया - ’ बेटी की शादी हो गयी। वह अपने ससुराल में सुखी है। बेटा गुजरात में रहता है। प्राइवेट नौकरी करता है। बहू यहां पाता में गेल में नौकरी में रहती है। सरकारी नौकरी है छोड़ना मुश्किल। इसलिये बेटा-बहू अलग-अलग रहते हैं। चौधरी जी पिछले डेढ साल से रह रहे हैं यहां पत्नी समेत।’
चौधरी जी के साथ वाले गुप्ता जी अस्सी साल के बुजुर्ग हैं। एक आंख में रोशनी नहीं है शायद। दस हफ़्ते से हैं यहां पर। उनका बेटा गुड़गांव में सर्विस करता है।
बातचीत चली तो पता चला कि चौधरी जी आर्डनेन्स फ़ैक्ट्री खमरिया में नौकरी कर चुके हैं। 1957 से 1978 तक। इसके बाद एलिम्को, कानपुर चले आये। 21 साल नौकरी करने के बाद भी पेंशन नहीं मिलती आर्डनेन्स फ़ैक्टी से। लिखापढी चल रही है। चौधरी जी अम्बरनाथ से अप्रेन्टिस ट्रेनिंग किये हैं। अम्बरनाथ की ट्रेनिंग किये लोग आर्डनेंस फ़ैक्ट्रियों के सबसे जहीन लोगों में माने जाते रहे। जैसे-जैसे वे लोग रिटायर हुये, अम्बरनाथ में ट्रेनिंग बन्द हुई- आयुध निर्माणियों के वर्किंग लेवल पर तकनीकी कौशल का मालिक भगवान होता गया।
चौधरी जी पेंशन की बात चली तो हमने कहा कि आप हमको अपने विवरण दीजिये। अगर नियमानुसार आपको पेंशन मिलनी है तो मिलेगी। हम दिलायेंगे। चौधरी जी ने बताया किSatish Tewari जी उनका केस देख रहे हैं। लिखा-पढी कर रहे हैं। हमने कहा -ठीक है लेकिन तिवारी अभी रिटायर हो चुके हैं। हम अभी नौकरी में हैं। हम देखते हैं क्या हो सकता है।
बताते चलें कि जब हम नौकरी में आये थे तब तिवारी जी आर्डनेन्स फ़ैक्ट्री में काम करते थे। मेंटिनेन्स के क्षेत्र के उस्ताद रहे तिवारी जी। उनके अनगिनत चेले आज भी फ़ैक्ट्री में काम करते हैं। गुरु जी अपने नाती-पोतों के साथ मजे और मस्ती से जिन्दगी का मजा ले रहे हैं।
चौधरी जी ने अपनी पत्नी के साथ मुझे वृद्धाश्रम दिखाने को भेजा। कुल 62 लोग हैं वृद्धाश्रम में। हर बुजुर्ग को एक-एक बिस्तर एलाट है। उसी में कुल सामान रखा रहता है उनका। बिस्तर पर रखे बक्से को देखकर मैंने एक जन से पूछा कि इसको नीचे क्यों नहीं रख लेती तो वे बोली -नीचे रखने से सफ़ाई में दिक्कत आती है।
पहली महिला ही जो दिखी वे अपने से बतिया रही थीं। मानसिक संतुलन कुछ कमजोर रहा होगा। सब बुजुर्ग अपने-अपने बिस्तरों पर बैठे-लेटे थे। हमसे सबका परिचय कराती जा रहीं थी श्रीमती चौधरी। एक सफ़ेद बाल वाले आदमी से परिचय कराते हुये बताया -’ ये हमारे बेटे जैसा है। हमको जरा सी भी तकलीफ़ होती है तो रात भर जागकर खैर-खबर लेता रहता है।’ ऐसे ही एक महिला के बारे में भी बताया कि वो उनकी बिटिया सरीखी है। श्रीमती चौधरी ने अपना ठीहा दिखाया। चौधरी जी का बिस्तर अलग पुरुष वृद्धों के कमरे में है। मतलब बुजुर्ग लोग यहां दम्पति की तरह नहीं वरन बुजुर्गों की तरह अलग-अलग रहते हैं।
ज्यादातर लोग कानपुर के आसपास के ही रहने वाले थे। कुछ लोग अपने बच्चों के पास भी आते-जाते रहते हैं। लोग यहां आकर संतुष्ट भले दिख रहे थे , बता भी रहे थे, लेकिन परिवार के नाम पर एक बेबस बेचैनी उनकी आवाज में दिखी। मजबूरी में ही रह रहे थे लोग यहां।
इस बीच नीचे कुछ महिलायें आपस में लड़ने लगीं। ऊपर से बुजुर्ग लोग उनकी कहा-सुनी का मजा लेते हुये नजारा देख रहे थे। इस बीच किसी ने उनको अलग कर दिया। मजा खत्म हो गया।
एक बिस्तर पर एक लडकी भी मिली। वह आर्मापुर पोस्ट ग्रेजुएट कालेज में बीए में पढती है। चलने के लिये बैशाखी का सहारा लेती है। जो क्लास नीचे लगती है उनको तो कर लेती है लेकिन जो क्लास ऊपर की मंजिल में लगती हैं उनको अटेंड नहीं कर पाती। बता रही थी कि उनकी प्रिंसिपल गायत्री सिंह उसकी ऊपर वाली क्लास नीचे करने के बारे में कोशिश कर रही हैं।
वृद्धाश्रम में रहने वालों को सारी सुविधायें मुफ़्त में मिलती हैं। इसका खर्च मंजू भाटिया उठाती हैं। कुछ पैसा विभिन्न स्वयं सेवी संस्थाओं से दान दाताओं से मिलता है। बाकी जो कम पड़ता है वह मंजू भाटिया अपने पास से देती हैं। जब यह लिख रहे थे तब 2014 की एक खबर भी दिखी कि यह वृद्धाश्रम अवैध जमीन पर बना है। जिस व्यक्ति ने मंजू भाटिया को अपनी जमीन बताकर वृद्धाश्रम के लिये दिया था वह जमीन उसके नाम थी ही नहीं।
(ख बर की कड़ी -http://www.amarujala.com/…/swaraj-harbor-is-built-on-govern…)
बातचीत करते समय वहां कुछ लोग किसी को रखने के हिसाब से पूछताछ करने आये। पता चला कि फ़िलहाल पुरुष वृद्धों के लिये जगह नहीं है वहां। केवल महिला बुजुर्गों के लिये जगह है। किदवई नगर में कोई बड़ा वृद्धाश्रम खुला है, वहां जाने की सलाह दी गयी उनको।
लौटकर फ़िर चौधरी जी के पास आये। उन्होंने अपने कागजात दिये। हमने उनसे उनका पेंशन का काम देखने का वादा किया और चले आये। कल अपने तमाम दोस्तों और एक्सपर्ट से जानकारी की तो पता चला कि चौधरी जी की पेंशन में दो पेंच हैं:
१. जिस समय उन्होंने नौकरी छोडी उस समय बीस साल की नौकरी पर पेंशन का नियम था कि नहीं?
२. पेंशन स्वैच्क्षिक सेवानिवृत्ति की स्थिति में मिलती है। नौकरी से इस्तीफ़ा देने पर नहीं।
२. पेंशन स्वैच्क्षिक सेवानिवृत्ति की स्थिति में मिलती है। नौकरी से इस्तीफ़ा देने पर नहीं।
बहरहाल अभी तो पूरा मामला पता कर रहे हैं। यह भी सोच रहे कि हमारे विभाग की यूनियन/एशोसियेशन सेवारत लोगों के उन कामों को कराने के लिये तो मेहनत करती रहती हैं जिनको मैनेजमेंट खुद अपने से करने को बाध्य है। लेकिन एक बार सेवा से निकल जाने के बाद अपने कर्मचारियों की सहायता करने का चलन नहीं युनियनों में जितना फ़ैक्ट्री में रहते होता है। उनका रवैया जनप्रतिनिधियों से अलग नहीं है शायद इस मामले में।
लौटे तो पानी बरसने लगा था। लेकिन हम मोमिया में मोबाइल और बटुआ धरकर सरपट फ़टफ़टिया दौड़ाते हुये चले आये। इस बार आये तो रास्ता 4-5 किमी ही रहा। जाते समय भटकते हुये काफ़ी दूर चलना हो गया। लेकिन भटकने के अलावा रस्ता पता कहां चलते हैं।
वृद्धाश्रम जाने का विचार अपने बालक Anany Shukla से मिला था। उसने एक अद्भुत शक्सियत , दिलीप घोष , के बारे में बताया था। जुलाई में अनन्य जब गया था पहली बार वृद्धाश्रम तो दिलीप घोष से मिला था। हमारी भी उनसे मुलाकात हुई। लेकिन वह किस्सा अलग से
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