Sunday, September 18, 2016

किताबें छपने के लिये तैयार

आज इतवार है। इतवार मतलब एत्तवार। घुमा के एतबार मने भरोसा करेंगे तो कोई रोकेगा तो नहीं न !
दो दिन पहले जन्मदिन के मौके पर आई शुभकामनाओं का शुक्रिया अदा करना है अभी। यह देख ही रहे थे कि पता चला कि अरे अभी तो पिछले साल की अनेक शुभकामनायें उधारी पर चल रही हैं। खैर चुक जायेगा उधार भी। उधार रहने से यादें बनी रहती हैं। आप चाहते हैं कि कोई आपको हमेशा याद रखे तो आपको उससे कुछ उधार लेकर चुकाना भूल जाना चाहिये। लोग उधार को प्रेम की कैची कहते हैं लेकिन यह भी सच है कि उधार याद का गोंद है, फ़ेवीकोल है।
पिछले साल जबलपुर में थे। इस बार कानपुर आ गये। जब भी पुरानी पोस्ट देखते हैं , जबलपुर की याद आती है। लगता है अरे हम जबलपु्र भी रहे हैं। समय कित्ती तेजी से बदलता है न!
इस साल हमारी किताब आई ’बेवकूफ़ी का सौंदर्य’। 1000 कापी छापी थी कुश ने। बताया करीब 500 बची हैं। मल्लब 500 किताबें करीब निकल गयीं। 3 महीने में 500 किताब निकल जाना मजेदार अनुभव है। अभी तो और तमाम निकलेंगी। है कि नहीं?
अब जब किताब छपना शुरु हुआ है तो कई किताबें छपने के लिये तैयार हो गयी हैं। कई बार लिस्ट भी बनाये हैं। देखिये आपको भी बताते हैं:
1. पुलिया पर दुनिया (छप चुकी, अपडेट करना है)
2. बेवकूफ़ी का सौंन्दर्य ( छप चुकी, सुधारना है अगले संस्करण के लिये)
3. सूरज की मिस्ड काल (सूरज भाई के बारे में लिखी पोस्ट्स)
4. रोजनामचा ( जबलपुर की सैर के किस्से)
5. जबलपुर से कानपुर की ट्रेन यात्राओं के किस्से
6. लोकतंत्र का वीरगाथा काल ( पलपल इंडिया में छपे 51 लेख)
7. कट्टा कानपुरी के कलाम
8. झाड़े रहो कलट्टरगंज (कानपुर के किस्से)
9. एक और व्यंग्य संकलन ( भूमिका आलोक पुराणिक लिखेंगे )
10.व्यंग्यकारों से बातचीत
11. व्यंग्य उपन्यास
इसमें से ’सूरज की मिस्ड काल’ तो लगभग तैयार है। बस फ़ाइनल करना है। बकिया 4-9 तक सब बस छांटना और सुधारना है। व्यंग्यकारों से बातचीत और व्यंग्य उपन्यास वाला काम शुरु करना है। व्यंग्य उपन्यास का फ़ार्मेट तय करना है बस। लिखना शुरु कर देंगे बस फ़िर खतम करके ही मानेगे। लोगों के लिये होता होगा ’वेल बिगिन इस हाफ़ डन’। हमारे साथ तो भईया ऐसा है कि ’शुरु हुआ कि काम खतम।’ मने एक बार बस शुरु भर हो जाये। फ़िर तो काम निपट के ही मानता है। गनीमत है कि आलस्य संतुलन बनाये रखता है वर्ना हमारे पास तो कोई काम ही नहीं बचता करने को। सब निपट गये और साथ में अपन भी। अरे भाई जब आदमी के पास कुछ करने को ही नहीं बचा तो उसका होना न होना बराबर ही हुआ न। खाली मार्गदर्शक बनके रह जाता है आदमी जिसकी कोई नहीं सुनता !
निपट जाने की बात से एक मजेदार बात याद आई। जबलपुर और अभी कुछ दिन पहले कानपुर आने तक भी हमको सपने केवल दो तरीके के आते थे। एक में यह होता था कि इम्तहान आने वाले हैं और हमारी तैयारी हो नहीं पायी है। दूसरे में यह कि बस का समय हो गया है और हम बस स्टैंड तक नहीं पहुंच पाये। अब कानपुर आने पर सपनों में बदलाव आया है। अलग-अलग तरह के सपने आने लगे हैं। कुछ हसीन और कुछ ज्यादा ही हसीन। हम बतायेंगे नहीं बस आप समझ जाइये। एक दिन कुछ ज्यादा ही हसीन सपना आया उसके बारे में बताते हैं।
हम बता तो रहे हैं सपने के बारे में आपको अपना समझकर लेकिन कोई जन डांटना नहीं कि ऐसा समना काहे देखा। अब कोई सपने पर कोई पासपोर्ट, वीसा, टोल टैक्स थोड़ी लगता है। कोई सपना ’मे आई कम इन सर/ मैम’ कहकर थोड़ी घुसता है दिमाग में।
इस सपने में देखते हैं कि हम मर गये हैं। हमको जलाने के लिये चिता पर रखा गया है। लोग घी-तेल का इन्तजाम कर रहे हैं। हमको लगा कि अगर हम यहां आलस के चलते लेटे रहे तो हम जला दिये जायेंगे। हमको जलने का डर नहीं लगा लेकिन हमको लगा कि बताओ यार इत्ता कार्बनडाईआक्साइड बनने का कारण बने बनेगे हम। हमको गुस्सा आया कि मरने के पहले ’देहदान’ का फ़ार्म काहे नहीं भरे।
इससे ज्यादा और कुछ नहीं सोचे हम। हम बस फ़ौरन चिता से उठकर फ़ूट लिये। ऐसा फ़ूटे कि समझ लेव अगर इत्ता तेज ओलम्पिक में भागते तो हुसैन बोल्ट गन्डा बंधा रहा होता कि भाई साहब हमको भी सिखाइये न ऐसे स्पीड से भागना। हम कहते अरे बेट्टा कोई किसी को सिखाता नहीं। खुद अपना तरीका इजाद करना करना पड़ता है।
यह बात दो-तीन दिन पहले की है। एक बार तो मन किया कि कह दें जन्मदिन वाले दिन का सपना है। कोई हमारे सपने का सीडी थोड़ी है किसी के पास। लेकिन फ़िर सोचा कि क्या फ़ायदा झूठ बोलने से। झूठ बिना फ़ायदे के बोलना भी नहीं चाहिये। वैसे लोग जो झूठ बोलते हैं न वो हमेशा फ़ायदे के लिये ही नहीं बोलते। तमाम लोग आदतन बोलते हैं झूठ। इसलिये कि आदत बनी रहे। कुछ लोगों के झूठ सुनने की तो ऐसी आदत हो जाती है कि अगर सच बोलते हैं तो लगता है कि झूठ बोल रहे हैं।
बात जन्मदिन की चल रही थी। उस दिन की और सब बातें तो फ़िर कभी लेकिन सबेरे जब निकले तो लगा कि सारी किरणें मुस्कराते, खिलखिलाते हुये हमको जन्मदिन की बधाइयां दे रहीं थीं। पूरी सड़क पर रोशनी की कालीन टाइप बिछा रखी है सूरज भाई ने हमाये लाने। हम ऊपर देखे तो सूरज भाई भी मुस्करा रहे थे। और तो और उस दिन सड़क किनारे के पेड़ देखकर ऐसा लगा कि मानो सड़क गुलदस्ता भेंट कर रही हो। हम सोचे कि अब अगर गुलदस्ता लेने के चक्कर में पड़े तो देर हो जायेगी। सो टाटा करके निकल लिये आगे।
पंकज बाजपेयी से भी मिले उस दिन। बताया - ’आज जन्मदिन है हमारा’ तो हैप्पी बर्थडे बोले। यह भी कि केक खा लेना। आगे सड़क पर एक आदमी साइकिल के कैरियर पर पेटी लादे लिये जा रहा था। पेटी पर लिखा था - ’झमाझम कुल्फ़ी’ कीमत 3 रुपये 5 रुपये। सबेरे के समय भी साइकिल वाले के चेहरे पर शाम की फ़ोटो लगे देखे।
जब से घोष जी के बारे में बताया तमाम मित्रों ने उनके बारे में कई सवाल पूछे हैं। उनके जबाब और उनका फ़ोटो मिलने पर। एक उनके बचपन के मित्र भी मिले हैं फ़ेसबुक पर ही। फ़िलहाल उनके बारे में यही सूचना है कि दो दिन पहले जो उनको चोट लगी थी उसपर की पट्टी उन्होंने निकालकर फ़ेंक दी है। धड़ल्ले से नहा रहे हैं।
अब चले ! ज्यादा खटपट किये ऐसी हड़काये जायेंगे कि तबियत झन्ना जायेगी है। इतवार का शनीचर हो जायेगा। इसलिये फ़ूटते हैं गुरु । आप तसल्ली से रहिये। ठीक न !
’बेवकूफ़ी का सौंन्दर्य’ का लिंक http://rujhaanpublications.com/produ…/bevkoofi-ka-saundarya/
’पुलिया पर दुनिया’ की कड़ी https://pothi.com/…/ebook-%e0%a4%85%e0%a4%a8%e0%a5%82%e0%a4…

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