Thursday, September 15, 2005

हम तो बांस हैं-जितना काटोगे,उतना हरियायेंगे

आज हिंदी दिवस था .उसका उपहार हमें यह मिला कि पता चला कि किसी ने हमारी जमीन पर अपना तम्बू गाड़ लिया है. चिट्ठाचर्चा जिसे हमने बड़े मन से शुरु किया था उस पर किन बचकानी हरकतों या गफलतों के कारण ऐसा हुआ मैं इस विवरण में नहीं जाना चाहता.न उसकी जरूरत समझता हूं.खाली नाम उडा़ने से लिखना होता होता तो सारे उठाईगीर लेखक/ कवि होते. तम्बू जिसने भी गाडा़ हो लेकिन यह सच है कि किसी भी तम्बू के लिये बम्बू(बांस) की दरकार होती है.बम्बू तो बिना किसी तम्बू के गड़ सकता है लेकिन कोई भी तम्बू बिना बम्बू के नहीं खडा़ हो सकता.

इसी क्रम में याद आ रही है अपने शाहजहांपुर के साथी राजेश्वर दयाल पाठक की कविता जो हमारी बात कहती है:-

हम तो बांस हैं,
जितना काटोगे,उतना हरियायेंगे.

हम कोई आम नहीं
जो पूजा के काम आयेंगे
हम चंदन भी नहीं
जो सारे जग को महकायेंगे
हम तो बांस हैं,
जितना काटोगे, उतना हरियायेंगे.

बांसुरी बन के,
सबका मन तो बहलायेंगे,
फिर भी बदनसीब कहलायेंगे.

जब भी कहीं मातम होगा,
हम ही बुलाये जायेंगे,
आखिरी मुकाम तक साथ देने के बाद
कोने में फेंक दिये जायेंगे.

हम तो बांस हैं,
जितना काटोगे ,उतना हरियायेंगे.


तो भइया, हमें जब लिखना होगा तो किसी खास ब्लागनाम के तंबू की दरकार नहीं होगी.हम तो बांस हैं,जितना काटोगे, उतना हरियायेंगे.

हिंदी दिवस के अवसर पर हमारे यहां कविसम्मेलन भी हुआ.तमाम कवियों ने कवितायें पढ़ीं.एक साथी जय नारायन सक्सेना ने जो कविता पढ़ी़ वो काफ़ी पसंद की गयी.कविता यहां जस की तस प्रस्तुत है:-

तन खा कर तनखा मिलती है,तनखा को तन खा जाता है,
तनखा जब कर में आती है,तन खा से मन अन खा जाता है.

तनखा के मिलने से पहले,अधिकार आरक्षित होते हैं,
कर्तव्य आहें भरता है,आश्वास्सन बाधित होते हैं .

तनखा के कर में आते ही,मांगों की पुकारें आती हैं,
मांग न हो पातीं पूरी,पुकारें तन खा जाती हैं .

तनखा वह श्रम की खेती है,सीमित बोऒ सीमित काटो,
इस मासिक फसल के कटते ही,प्रसाद सा सबको बांटो.

नववर्ष की पावन बेला पर,पत्नी ने की कुछ फरमाइस,
चलो पिया तुम हमें दिखा दो,फूलबाग में लगी नुमाइश.

जब से बजट हुआ है घोषित,कभी न की कोई फरमाइस,
कल शादी की वर्षगांठ है,करो पिया तुम पूरी ख्वाइस .

राजदूत से जाना होगा,मेघदूत में खाना होगा ,
प्रेमनगर का पान चबाकर,प्रेमदूत बन जाना होगा.

पेंग बढ़ाकर झूले होंगे, आसमान को छूते होंगे,
ऊंचा वाला झूला झूलेंगे,क्षण भर को दुखड़े भूलेंगे.

कुआं मौत का देखेंगे हम,उड़ता हुआ धुआं देखेंगे,
चारो ओर हों खेल तमाशे,बैठ खायेंगे चाट-बतासे.

पंजाबी एक सूट सिला दो,हाई हील का बूट दिला दो,
जयपुर वाला लंहगा ले दो,सस्ता नहीं कुछ मंहगा ले दो.

पप्पू की जिद पूरी कर दो,ले दो,दो पहिये की गाड़ी,
कब से आस लगाये हूं मैं,पिया दिला दो सिल्क की साड़ी.

कल शादी की वर्षगांठ पर,मुझको क्या दोगे उपहार,
या फिर मुझको बहला दोगे,डाल गले में बाहों का हार.

बन्द करो अपनी फरमाइस,ना जाना है हमें नुमाइस,
जितनी पूरी करते आओ,उतना बढ़ती जाती ख्वाइस.

नयावर्ष हैं वही मनाते,जिनका साल गया उन जैसा,
वर्षगांठ हैं वही मनाते ,जिनकी गांठ में होता पैसा.

अपनी तो है श्वेत कमाई,दो नंबरी मत बात करो तुम,
चादर से मत पैर निकालो,आडंबर की मत बात करो तुम.

लक्ष्मण रेखा सी बंधी हुई, है मेरी तनखा सीता .
मत आमंत्रण दो मंहगे रावण को,अपहृत हो जायेगी सीता.

प्यार भाव वाचक संज्ञा है,एहसासों की पावन गंगा है,
मत आंको इसे उपहारों से,दूषित होगी मनभावन गंगा है.

मेरे पास न सोना-चांदी,न है धन खान रतन ,
मैं तो केवल प्रेम पुजारी,अर्पित तुझ पर निर्मल मन.

कोई भौतिक चाह नहीं है,न मन में कोई और लगन,
बस यही कामना ईश्वर से,साथ रहें हम जनम-जनम.

अंतिम बात तुम्हें समझाता,ओ मेरे दिन की रानी ,
याद रखो तुम'जय'की बानी,उतना उतरो जितना पानी.


इसमें फूलबाग,मेघदूत,प्रेमनगर आदि कानपुर की जगहों मोहल्लों के नाम हैं.

यह पोस्ट खासतौर से भोलानाथ उपाध्याय के लिये बतौर इनाम लिखी जा रही है.

25 comments:

  1. "अभिव्यक्ति" पर , श्री अंसार कम्बरी के कुछ "कलजुगी" दोहे , शायद आप ने भी देखे होंगे । उन्हीं दोहों में से एक इस प्रकार हैः

    "सूफी सन्त चले गये , सब जंगल की ओर ।
    मन्दिर मस्जिद में मिले , रंग बिरंगे चोर ।।"

    अब आगे क्या कहें ?

    -राजेश

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  2. दोनो कवितायें बहुत शानदार है.
    रही बात ब्लाग्स्पाट वाले ब्लाग की चोरी की, तो भैया, उसको सभी लोग फ़्लैग कर दो. देबू भाई, जबरिया चोरी किये गये ब्लाग्स को चिटठा विश्व से हटा दीजिये.

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  3. गुरुदेव बँबू वापस मिल गया है, अपना तँबू फिर से लगा लीजिए।

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  4. Bahut badhiya kavita hai. Hindi lipi mein likhney hetu kya karna hota hai..kyunki hamari kavita humney chaapi kintu angreji mein -http://dineshblogbuster.blogspot.com
    Yadi aapko samai miley toh kripya..humein writetodinesh@gmail.com per mail karein.Seh Dahnyvaad.
    Dinesh

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  5. अनूप: आप भी शताब्दी एक्स्प्रेस के वातानुकूलित डिडब्बों में लटकते हुये कैलाश पंखे देखिये:

    http://www.hat.net/album/
    asia/india/30_sleep_eat_and_move/
    transport/
    050104221730_shatabdi_express.jpg

    - अतुल (srivastava.atul@gmail.com)

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  6. अनूप जी,

    गज़ब के क्रिटिक देते हैं आप| बस यूँ समझ लिजिये हम तो दीवाने हैं आपके कामन्ट पङने के| बस लगे रहिये...

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  7. Anonymous7:59 PM

    bahut achey bahut achey aap ka bambuo se itna lagaw aur unka zindadi se is kadar jodna kabiley tarif hai hamari subh kamnaye bambu ke sath .....Raj Singh sidhu

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  8. बहुत ख़ूब लिखा है आपने ..

    रंजना

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  9. अनूप जी,बहुत कुछ नया सीखा हिन्दी चिट्ठाकारी के बारे मे आपका चिट्ठा पड्कर्…।

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  10. बहुत बढिया।
    नौकरी और तनखा का सुनदर चित्र खींचा ह

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  11. bahut khoob babuji desi touch hai...........

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  12. if i want to send a mail you which id should i use please my id is onmy webpage

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  13. भाई जी, (बाकी सब तो बहुत ठीक है) मेघदूत तो होटल हुआ करता था - अब कोई मोहल्ला भी बन गया है क्या ?

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  14. बहुत अच्छी लगी तनखा की कविता ।

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  15. बहुत अच्छा लीखा है

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  16. aap bahut bariya likhate hai mama ji
    aapka sab lekha bahut bariya rahata hai

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  17. बांस का बहुत सही बखान कर दिया आपने ....सचमुच जिस तरह से आपने लिखा वो काबिले तारीफ है ...


    अनिल कान्त
    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  18. Aksar aapko padhke khamosh ho jaatee hun...bina kahe chalee jaatee hun...

    http://kshama-bikharesitare.blogspot.com

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  19. वाह पंडित जी वाह!!

    आपकी "बांस" वाली टिप्पणी पर मज़ा आ गया.

    गज़ब की कविता है और बिल्कुल सटीक.
    ( कनपुरिया मां कहें तो " आय गज़ब")

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  20. yahan to padhkar bahut kuchh grahn bhi karne layak hai ,gyan ka bhandaar hai ye blog .baans ko lekar likhi gayi ye rachna kabile tarif hai ,

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  21. वाह जयनारायन सक्सेना जी की रचना अपनी आप बीती सी जान पड़ी...उत्तम अभिव्यक्ति।

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  22. हम तो बांस हैं,
    जितना काटोगे,उतना हरियायेंगे.

    बहुत सुन्दर थी ये वाली |
    लेकिन

    तन-खा वाली simply ultimate...
    बहुत ही अच्छी |

    सादर
    -आकाश

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  23. शब्दों की जीवंत भावनाएं.सुन्दर चित्रांकन,पोस्ट दिल को छू गयी..कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने.बहुत खूब.
    बहुत सुंदर भावनायें और शब्द

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  24. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

    बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
    नब बर्ष (2013) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    मंगलमय हो आपको नब बर्ष का त्यौहार
    जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
    ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
    इश्वर की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार

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