आज सुबह उठे तो सूरज भाई ने पकड़ लिया। बोले-आओ तुमको हम चाय पिलाता हैं।हम न नुकुर किये बिना साइकिल उठा कर उनके साथ लग लिए।
सड़क पर लोग आते-जाते दिख रहे थे। बच्चे स्कूल जा रहे थे।कुछ लोग कुत्तों को टहला रहे थे।कुछ लोगों को कुत्ते टहला रहे थे। जो जबर हुआ उसी के हिसाब से टहलने की दिशा तय हो रही थी। मामला लोकतंत्र में सरकार और कारपोरेट जैसा दिखा। जो जबर वही दूसरे को हांकता है।
एक टेम्पो बिगड़ गया तो ड्राइवर बच्चों को पैदल स्कूल की तरफ ले जाता दिखा।
सूरज सड़क की बायीं तरफ से ही रौशनी का फव्वारा मार रहे थे। हमने मजाक में
पूछा -"गुरु आप वामपंथी हैं क्या?" सूरज भाई हँसने लगे। बोले-"अभी वामपंथी
कह रहे।शाम को दक्षिणपंथी बोलोगे जब ये रौशनी का वितरण दाईं तरफ से होगा।"
सूरज भाई के हंसने से पेड़,पौधे,फूल,पत्ती,सड़क, पगडंडी सब जगमग नहा गए।
एक खुली जगह पर कोहरे ने अपन कब्जा कर रखा था।सूरज भाई ने फ़ौरन किरणों और उजाले का लाठीचार्ज करके कोहरे को तितर-बितर कर दिया। कोहरे के सारे संगी-साथी ऐसे भागे जैसे प्रेमचन्द की कहानी में कांजी हाउस की दीवार टूटने पर जानवर फ़ूट लेते हैं।
कोहरे को हड्डी-पसली बराबर करने के बाद सूरज भाई बोले-"अपन रौशनी विरोधी तत्वों को निपटाने में हीला-हवाली नहीं करते।जहां कोई अँधेरा तत्व दिखा उसको फौरन निपटाया।न निपटाते तो यही कोहरा अपना आश्रम खोल लेता और न जाने क्या-क्या चिरकुटई करता।"
चाय की दूकान पर चाय का आर्डर करके हम सूरज भाई के साथ गाना सुनने लगे। गाना बज रहा था:
बस यही अपराध हर बार करता हूँ
आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ।
मुख्य सड़क पर ट्रैफिक तेज हो गया है। टेम्पो ज्यादातर बच्चों को ले जा रहे हैं।नास्ते की दुकाने गुलजार हो गयी हैं।सूरज भाई के साथ चाय की चुस्की लेते हुए गाना सुन रहे थे।
"अँखियों के झरोखे से
मैंने देखा जो साँवरे।"
एक चाय में मन नहीं भरा तो दूसरी चाय का ऑर्डर देकर सूरज भाई गुनगुनाते हुए रेडियो के अंदर से बोले:
"सौ साल पहले मुझे तुमसे प्यार था
आज भी है और कल भी रहेगा।"
फैक्ट्री का हूटर बज गया।हम साइकिल पर और सूरज भाई हमारे कन्धे पर सवार होकर वापस चल दिए। पीछे गाना बज रहा है:
"मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू
आई रुत मस्तानी कब आएगी तू।"
सुबह सुहानी हो गयी।मस्तानी च। आप भी मस्तमना हो जाइये।
एक खुली जगह पर कोहरे ने अपन कब्जा कर रखा था।सूरज भाई ने फ़ौरन किरणों और उजाले का लाठीचार्ज करके कोहरे को तितर-बितर कर दिया। कोहरे के सारे संगी-साथी ऐसे भागे जैसे प्रेमचन्द की कहानी में कांजी हाउस की दीवार टूटने पर जानवर फ़ूट लेते हैं।
कोहरे को हड्डी-पसली बराबर करने के बाद सूरज भाई बोले-"अपन रौशनी विरोधी तत्वों को निपटाने में हीला-हवाली नहीं करते।जहां कोई अँधेरा तत्व दिखा उसको फौरन निपटाया।न निपटाते तो यही कोहरा अपना आश्रम खोल लेता और न जाने क्या-क्या चिरकुटई करता।"
चाय की दूकान पर चाय का आर्डर करके हम सूरज भाई के साथ गाना सुनने लगे। गाना बज रहा था:
बस यही अपराध हर बार करता हूँ
आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ।
मुख्य सड़क पर ट्रैफिक तेज हो गया है। टेम्पो ज्यादातर बच्चों को ले जा रहे हैं।नास्ते की दुकाने गुलजार हो गयी हैं।सूरज भाई के साथ चाय की चुस्की लेते हुए गाना सुन रहे थे।
"अँखियों के झरोखे से
मैंने देखा जो साँवरे।"
एक चाय में मन नहीं भरा तो दूसरी चाय का ऑर्डर देकर सूरज भाई गुनगुनाते हुए रेडियो के अंदर से बोले:
"सौ साल पहले मुझे तुमसे प्यार था
आज भी है और कल भी रहेगा।"
फैक्ट्री का हूटर बज गया।हम साइकिल पर और सूरज भाई हमारे कन्धे पर सवार होकर वापस चल दिए। पीछे गाना बज रहा है:
"मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू
आई रुत मस्तानी कब आएगी तू।"
सुबह सुहानी हो गयी।मस्तानी च। आप भी मस्तमना हो जाइये।
- Ashish Rai आज सूरज भाई भी फुरसत में होंगे , तबहिये गाना याद आ रहा है उनको , नाही तो सवेरे सवेरे लोटा लेके दौड़ते रहते है.
- Manmohan Singh क्या खूब लिखते हैं सर आप ...... ऐसा जान पड़ता है मानो प्रेमचन्द श्रीलाल जैसे लेखकों की रचना पढ रहे हों .... बेहतरीन
- Shiv Bali Rai सृष्टि के रचना के बाद केवल हनुमानजी है जो सूर्य के पास जा सकते है और उनके तेज को बर्दाश्त कर सकते है लेकिन अब श्रीमान कट्टा साहब है जो उनके साथ चाय भी पी सकते है |इस अलौकिक शक्ति का राज क्या है
- नवीन रमण सूरज जब कंधे पर सवार हुआ तो हर नादान बच्चें की तरह धीरे-धीरे कान के पास मुंह लाकर बतियाने लगा और कहने लगा गुरु वो लोग कित्ते अजीब है जो बस लाइक करके कट लेते है ।उनको भी दो बोल अपने लिखने चाहिए ।ताकि हमें भी उनका हाल क्षेम पता चलबे ।का कहते हो ...
- Kiran Dixit सूरज भाई तुम्हारे साथ इतनी मौज मस्ती करते हैं , चाय के साथ गाना भी सुनाते हैं ।हमने तो सुना था कि सूरज भाई 'वसुधैव कुटुम्बकम' की विचारधारा रखते हैं लेकिन यहाँ कोहरे ने आतंक मचाया हुआ है और सूरज भाई हैं कि चाय की चुस्कियों और गाने में मस्त हैं ।ये एकतरफा विचारधारा ठीक नहीं है ।सूरज भाई को इस पर विचार की जरूरत है ।।
- Subrato Mitra अनूपजी, धृष्टता के लिए क्षमा करें।
आपके नैरेटिव के साथ आपके फोटोग्राफ्स कतई न्याय नहीं करते। मेरा विनम्र अनुरोध है कि पॉकेट में रखा जा सकनेवाला एक अच्छा कैमरा लें और साथ रखें। मोबाइल कैमरा से काम नहीं चलनेवाला। - Vimal Kumar Pandey · 3 पारस्परिक मित्रआनन्द आ गया, वाह
- Kamlesh Mishra Subrato Mitra जी धृष्टता के लिए क्षमा करें। ये फोटो तो फिरी का माल है, असली माल तो दास्तान गोयी में है। "आओ तुमको हम चाय पिलाता हैं"... `विरोधी तत्वों को निपटाने'वाला... सूरज भाई का ये भाइयाना अंदाज़ भला `कोन-सा' अच्छा कैमरा दिखा सकता है। मन के झरोखे से मस्तमना होकर देखें... फिर आप ऐसी `धृष्टता' नहीं करेंगे...
- अनूप शुक्ल हां सही है।मेरे फोटोग्राफ्स विवरण से मेल नहीं खाते।लेकिन कैमरा इसका हल शायद न हो।फोटो खैंचने की समझ सीमित है अपन की। लेकिन कभी कोशिश करेंगे।आपके सुझाव में धृष्टता जैसी कोई बात नहीं लगी। सहज सुझाव है एक पारखी मित्र के जिसके गले में धाँसू कैमरा लटका है। Subrato Mitra
- अनूप शुक्ल हमारे सुधी पाठक के सहज सुझाव को धृष्टता मती कहिये मिसिरजी वैसे आपकी तारीफ़ से मन खुश हो गया। Kamlesh Mishra
- Subrato Mitra कमलेशजी, आपने किसी फोटोग्राफ को शब्दों से कम कैसे समझ लिया? फोटोग्राफ तो कई बार ऐसी-ऐसी कहानियाँ कहते हैं कि शायद शब्दों की जरूरत ही नहीं पड़े। मेरा विनम्र संवाद अनूपजी से था और मुझे आशा है कि उन्हें बुरा नहीं लगा होगा।
अनूपजी आपके शब्द सदैव ही चुटीले, प्रेरक और आनंददायक होते हैं। लिखते रहें।
और कैमरा कीमती हो तो फोटो बढ़िया होंगे—इसकी कोई गारंटी नहीं। पर, मुझे विश्वास है कि आपके हाथ में अच्छा कैमरा होगा तो वह भी आपकी कलम की तरह सटासट चलेगा। शुभकामनाएँ। - Arman Ansari KAVI GAN AAP LOG MAHAN HAIN...MUJHE HINDI YAAD AA RAHI HAI...''JAHAN NA PAHUNCHE RAVI WAHAN PAHUNCHE KAVI ''
- Arman Ansari Lekin aap danishmando se ek baat kehna chahta hoon...'' LEAD ME FROM DARKNESS UNTO LIGHT '' aur is par apni saari salahiyatein jhonk dein...
- Sangita Mehrotra Suraj bhai aapke saath aa gaye h ! Ab fir se mazedaar kisse padne ko mileage . Suraj dada ko meri Ram ram kahiyega
- Kamlesh Mishra Subrato Mitra जी, धृष्टता के लिये मैंने पहले ही अपसे क्षमायाचना कर ली थी। वैसे हर माध्यम अपनेआप में महत्वपूर्ण है। अभिव्यक्ति की कला उससे भी अधिक महत्व रखती है। आपके हाथ में कमतर कैमरा होगा तब भी हमे पूरा विश्वास है कि तस्वीर सर्वोचित केन्द्र-कोण के साथ पूर्णतः सटीक होगी।
अनूप शुक्ल जी, हम तो उनहिन कै बात पलट दीन रहाय। कउनौ बेजा बात होई गै हो तो छमा चाहत हैं... - अनूप शुक्ल हर माध्यम की 'सामर्थ्य और सीमा' होती है।कैमरे की भी होती है और लेखन की भी।कैमरा जहाँ ऐसे चित्र खींच सकता है जो हजारों शब्दों में व्यक्त नहीं हो सकता वहीं लेखन के माध्यम से सैकड़ों कल्पना चित्र बनते हैं।एक चित्रण को पढ़कर लोग अपने-अपने हिसाब से कल्पना चित्र बना सकते हैं।बहुत अच्छे चित्र और उनका बहुत अच्छा चित्रण एक बहुत ही विरल संयोग है।सबके पास यह हुनर नहीं होता।
बाकी अपनी सहज राय व्यक्त करने को 'धृष्टता' कहने की 'धृष्टता' क्यों कहते हैं भाई लोग ? Kamlesh Mishra Subrato Mitra - Shiv Bali Rai शुक्लजी ,आप विरोधाभाष के संगम है आप ने अभियंत्रण से पढाई की है और गप ऐसे हाकते है कि कवि और पुराण भी शरमा जाए ,पहले का समय होता तो निशित ही 19 पुराण होते और वो होता -कट्टा का सूर्य पुराण |
- Kamlesh Mishra सुकुल महाराज, समाजवादी चलन ये है की आजकल असली धृष्ट `धृष्टता' को `अधिकार' का पर्याय समझता है, और जनता `इस्टाइल' का। ऐसे में कहीं इस शब्द का ही लोप न हो जाये इसीलिये यह कार्यशाला-सा प्रयास था... यहाय समझ लीन जाय, अऊ' का...?!!
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