Friday, November 21, 2014

अँखियों के झरोखे से मैंने देखा जो साँवरे




आज सुबह उठे तो सूरज भाई ने पकड़ लिया। बोले-आओ तुमको हम चाय पिलाता हैं।हम न नुकुर किये बिना साइकिल उठा कर उनके साथ लग लिए।

सड़क पर लोग आते-जाते दिख रहे थे। बच्चे स्कूल जा रहे थे।कुछ लोग कुत्तों को टहला रहे थे।कुछ लोगों को कुत्ते टहला रहे थे। जो जबर हुआ उसी के हिसाब से टहलने की दिशा तय हो रही थी। मामला लोकतंत्र में सरकार और कारपोरेट जैसा दिखा। जो जबर वही दूसरे को हांकता है।

एक टेम्पो बिगड़ गया तो ड्राइवर बच्चों को पैदल स्कूल की तरफ ले जाता दिखा।

सूरज सड़क की बायीं तरफ से ही रौशनी का फव्वारा मार रहे थे। हमने मजाक में पूछा -"गुरु आप वामपंथी हैं क्या?" सूरज भाई हँसने लगे। बोले-"अभी वामपंथी कह रहे।शाम को दक्षिणपंथी बोलोगे जब ये रौशनी का वितरण दाईं तरफ से होगा।" सूरज भाई के हंसने से पेड़,पौधे,फूल,पत्ती,सड़क, पगडंडी सब जगमग नहा गए।
एक खुली जगह पर कोहरे ने अपन कब्जा कर रखा था।सूरज भाई ने फ़ौरन किरणों और उजाले का लाठीचार्ज करके कोहरे को तितर-बितर कर दिया। कोहरे के सारे संगी-साथी ऐसे भागे जैसे प्रेमचन्द की कहानी में कांजी हाउस की दीवार टूटने पर जानवर फ़ूट लेते हैं।

कोहरे को हड्डी-पसली बराबर करने के बाद सूरज भाई बोले-"अपन रौशनी विरोधी तत्वों को निपटाने में हीला-हवाली नहीं करते।जहां कोई अँधेरा तत्व दिखा उसको फौरन निपटाया।न निपटाते तो यही कोहरा अपना आश्रम खोल लेता और न जाने क्या-क्या चिरकुटई करता।"

चाय की दूकान पर चाय का आर्डर करके हम सूरज भाई के साथ गाना सुनने लगे। गाना बज रहा था:

बस यही अपराध हर बार करता हूँ
आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ।

मुख्य सड़क पर ट्रैफिक तेज हो गया है। टेम्पो ज्यादातर बच्चों को ले जा रहे हैं।नास्ते की दुकाने गुलजार हो गयी हैं।सूरज भाई के साथ चाय की चुस्की लेते हुए गाना सुन रहे थे।

"अँखियों के झरोखे से
मैंने देखा जो साँवरे।"
एक चाय में मन नहीं भरा तो दूसरी चाय का ऑर्डर देकर सूरज भाई गुनगुनाते हुए रेडियो के अंदर से बोले:

"सौ साल पहले मुझे तुमसे प्यार था
आज भी है और कल भी रहेगा।"

फैक्ट्री का हूटर बज गया।हम साइकिल पर और सूरज भाई हमारे कन्धे पर सवार होकर वापस चल दिए। पीछे गाना बज रहा है:

"मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू
आई रुत मस्तानी कब आएगी तू।"

सुबह सुहानी हो गयी।मस्तानी च। आप भी मस्तमना हो जाइये।


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