"जो वादा किया , वो निभाना पड़ेगा
रोके जमाना चाहे,तुमको आना पड़ेगा।"
यह कह रहे हैं चाय वाले भाई रेडियो के साथ गुनगुनाते हुए।आज तय किया था कि ग्वारीघाट तक साइकिल से जाएंगे लेकिन साथी शेखर पाण्डेय का पहला दिन था साइकिलिंग का सो ग्वारीघाट का प्लान स्थगित कर दिया और खमरिया की तरफ चल दिए।
चलते हुए रेडियो कह रहा था:
"आपकी आँखो में कुछ महके हुए ख़्वाब हैं
आपसे भी खूब सूरत आपके अंदाज हैं"
सूरज भाई धरती पर रौशनी भेजकर उसको खुश करने की कोशिश सा करते हुए दिख रहे थे। जैसे कोई प्रवासी पति घर लौटते हुए अपनी घरैतिन के लिए खूब सारे गहने,कपडे लत्ते के उपहार लाकर उसको खुश करने की कोशिश करता है वैसे ही सूरज भाई रात भर बाहर रहकर सुबह लौटे हैं और पूरी धरती को रौशनी के गहने से सजाते हुए खुश करने की कोशिश कर रहे हैं। धरती भी हवाओं के माध्यम से इठलाती, लजाती हुई खुश होकर सूरज को निहार रही है।प्रफुल्लित हो रही है।
आगे एक अखबार वाले बच्चे ने साइकिल पर चढ़े-चढ़े ही ऊपर अखबार फेंका।अखबार रेलिंग से टकराकर नीचे गिरा।हमने देखा सूरज भाई मुस्कराते हुए हमारी तरफ देख रहे हैं गोया कह रहे हों -"ऐसा ही हमारे साथ भी होता है।हम सब जगह बराबर रौशनी भेजते हैं।लेकिन कभी-कभी थ्रो गलत हो जाता है।दिल्ली की रौशनी कलकत्ता चली जाती है, लखीमपुर की जबलपुर।"
एक बच्ची एक ब्रश करते हुए पिता के कंधे पर उसकी परियोजना की तरह सवार थी। हमने उसको हाथ हिलाकर बाय किया तो उसने भी हाथ हिलाया हल्के से मुस्कारते हुए। उसके दादी-बाबा हमारा यह हाथ हिलौवा संवाद अपनी नातिन को फुल वात्सल्य के साथ निहारते हुए देखते रहे।बच्ची का पिता इस सबसे बेखबर बच्ची को अपने कंधे पर लादे ब्रश करता रहा।
लौटते में देखा एक जगह कुछ महिलायें लकड़ियाँ बिन रहीं थी। साथ के आदमी उनके सर पर लकड़ी लादने में सहायता कर रहे थे बस। अक्सर मैंने देखा है कि जहां आदमी और औरत दोनों काम करते हैं वहां आदमी अपना रोल अपेक्षाकृत निठल्लेपन का ही चुनता है।
पता चला कि ये लोग पास के मंडला जिले के रहने वाले हैं ।यहां मजूरी करने आये हैं। एक ठेकेदार के यहाँ। आज इतवार है तो हफ्ते भर का ईंधन जुटाने निकल पड़े।सुबह से बिन रहे थे लकड़ी।
लौटते में एक तालाब के पास देखा तो तमाम बगुले तालाब की जलकुंभी पर जगह-जगह अपना कब्जा जमाये हुए दिखे।प्रवचन मुद्रा में। उनको देखकर मुझे शहरों में जगह-जगह अतिक्रमण करके बनाये धर्मस्थल याद आये।बगुले धर्मगुरुओं की तरल 'निर्लिप्त घाघ' लग रहे थे।
मेस में पहुंचकर देखा सूरज भाई धरती के साथ गुफ्तगू करते हुए मुस्करा रहे थे। किरणें उजाले के साथ खिलखिलाते हुए बतिया रहीं थीं। सुबह हो गयी थी।
"आपकी आँखो में कुछ महके हुए ख़्वाब हैं
आपसे भी खूब सूरत आपके अंदाज हैं"
सूरज भाई धरती पर रौशनी भेजकर उसको खुश करने की कोशिश सा करते हुए दिख रहे थे। जैसे कोई प्रवासी पति घर लौटते हुए अपनी घरैतिन के लिए खूब सारे गहने,कपडे लत्ते के उपहार लाकर उसको खुश करने की कोशिश करता है वैसे ही सूरज भाई रात भर बाहर रहकर सुबह लौटे हैं और पूरी धरती को रौशनी के गहने से सजाते हुए खुश करने की कोशिश कर रहे हैं। धरती भी हवाओं के माध्यम से इठलाती, लजाती हुई खुश होकर सूरज को निहार रही है।प्रफुल्लित हो रही है।
आगे एक अखबार वाले बच्चे ने साइकिल पर चढ़े-चढ़े ही ऊपर अखबार फेंका।अखबार रेलिंग से टकराकर नीचे गिरा।हमने देखा सूरज भाई मुस्कराते हुए हमारी तरफ देख रहे हैं गोया कह रहे हों -"ऐसा ही हमारे साथ भी होता है।हम सब जगह बराबर रौशनी भेजते हैं।लेकिन कभी-कभी थ्रो गलत हो जाता है।दिल्ली की रौशनी कलकत्ता चली जाती है, लखीमपुर की जबलपुर।"
एक बच्ची एक ब्रश करते हुए पिता के कंधे पर उसकी परियोजना की तरह सवार थी। हमने उसको हाथ हिलाकर बाय किया तो उसने भी हाथ हिलाया हल्के से मुस्कारते हुए। उसके दादी-बाबा हमारा यह हाथ हिलौवा संवाद अपनी नातिन को फुल वात्सल्य के साथ निहारते हुए देखते रहे।बच्ची का पिता इस सबसे बेखबर बच्ची को अपने कंधे पर लादे ब्रश करता रहा।
लौटते में देखा एक जगह कुछ महिलायें लकड़ियाँ बिन रहीं थी। साथ के आदमी उनके सर पर लकड़ी लादने में सहायता कर रहे थे बस। अक्सर मैंने देखा है कि जहां आदमी और औरत दोनों काम करते हैं वहां आदमी अपना रोल अपेक्षाकृत निठल्लेपन का ही चुनता है।
पता चला कि ये लोग पास के मंडला जिले के रहने वाले हैं ।यहां मजूरी करने आये हैं। एक ठेकेदार के यहाँ। आज इतवार है तो हफ्ते भर का ईंधन जुटाने निकल पड़े।सुबह से बिन रहे थे लकड़ी।
लौटते में एक तालाब के पास देखा तो तमाम बगुले तालाब की जलकुंभी पर जगह-जगह अपना कब्जा जमाये हुए दिखे।प्रवचन मुद्रा में। उनको देखकर मुझे शहरों में जगह-जगह अतिक्रमण करके बनाये धर्मस्थल याद आये।बगुले धर्मगुरुओं की तरल 'निर्लिप्त घाघ' लग रहे थे।
मेस में पहुंचकर देखा सूरज भाई धरती के साथ गुफ्तगू करते हुए मुस्करा रहे थे। किरणें उजाले के साथ खिलखिलाते हुए बतिया रहीं थीं। सुबह हो गयी थी।
- Kiran Dixit हम भी यही कहना चाह रहे हैं -
आपके लेखन में कुछ महकी हुई सी बात है ।
आपसे भी खूबसूरत आपके अंदाज़ हैं ।। - Amit Kumar Hame bhi hamare vidyarthi dino ki yaad aa gayi aapki cycle ki baat pe jab ham apne shahar (paida to nahi hue the wahan lekin wo apna ho gaya hai) ka chakkar ek purani cycle (kyonki nai wali cycle khareedne ke doosre din hi chori ho gayi thi) pe kat te the.
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