"ओ मेरे हमराही मेरी बांह थामे रहना
बदले दुनिया सारी तुम न बदलना।"
ये गाना बज रहा है चाय की दूकान पर जहां हम बैठे चाय पी रहे हैं।
सुबह उठे तो सूरज भाई ऐसे गर्म होकर घूर रहे जैसे कोई समय का पाबन्द अफसर
अपने उस मातहत को घूरता है जो दफ्तर में लेट आया हो।साइकिल से चले चाय की
दूकान की तरफ तो रास्ते पर रौशनी के छींटे मुंह पर मारते रहे गोया हम अभी
भी नींद में हैं और रौशनी की बौछार से हमारी नींद उड़ जायेगी।
रास्ते में बस स्टॉप पर एक भाई जी एक बेंच पर निर्मलबाबा की तरह दोनों हाथ दोनों तरफ फैलाये रामपाल पर प्रवचन कर रहे थे।सुनाई पड़ा -"रामपाल की हरकतें सरकार बर्दास्त करती रही। उसकी पहुंच थीं।आम आदमी करे तो पुलिस एक दिन में अंदर कर दे।"
एक जगह कुछ लोग शाखा लगाये हुए थे। आठ दस लोग।एक मध्यम आयु का व्यक्ति लाठी के पैंतरे सीखा रहा था। नमस्ते सदा वत्सले पता नहीं हुआ कि अभी बाद में होगा।
चाय पीते हुए गाना सुन रहे हैं:
"तू इस तरह से मेरी जिन्दगी में शामिल है
जहां भी जाऊँ लगता है तेरी महफ़िल है।"
यह शायद चाय के बारे में मेरा बयान सुना रहा है बाजाबाबू।दूसरी चाय मांगते हुए पहली चाय ठण्डी होने की बात कहते हैं तो चाय बाबू बोले-"आप मोबाइल में खेल रहे थे तो इसमें मेरी क्या गलती?"
आम आदमी मोबाइल में घुसे आदमी के बारे में यही सोचता है कि अगला गेम ही खेल रहा है।कुछ ऐसे जैसे यह धारणा कि आतंकवादी है तो मुस्लिम होगा।
चाय की दूकान के पास और कई दुकाने गुलजार हैं। नास्ते पानी और दीगर चीजें। एक दूकान पर जलेबी छन रही है।पोहा भी साथ में। गर्म पोहा से भाप जैसे ऐसे निकल कर बाहर जा रही है जैसे आप पार्टी से उसके कार्यकर्ता।
सूरज भाई इस बीच बगल में आकर बैठ गए। मुझे पता तब चला जब रेडियो पर गाना बजा:
"बड़ी दूर से आये हैं
प्यार का तोहफा लाये हैं।"
हमने सूरज भाई से रूबरू होते हुए कहा--"वाह भाई आप भी बाजार के चोचले सीख गए! दूर से आये हो यह तो सब जानते हैं लेकिन प्यार का तोहफा लाये हो यह पहली बार पता लगा।"
हमारी यह बात सुनकर सूरज भाई मुस्कराने लगे।उनके साथ कि बच्ची किरणें खिलखिलाने लगीं। सुबह हो गयी है।वंशीधर शुक्ल की कविता याद आ गयी :
"उठ जाग मुसफिर भोर भई
अब रैन कहाँ जो सोवत है।'
सूचना:पहला फोटो मेरे कमरे के बाहर से।दूसरा मेस से तीन किलोमीटर दूर वेहकिल मोड़ पर चाय की दूकान पर जहां हम 14 मिनट में पहुंचे।मतलब स्पीड 12 किमी प्रति घंटा। जाम में फंसी कार के मुकाबले बहुत तेज।
अपडेट:लौटे 11 मिनट में।मतलब स्पीड 15 किमी प्रति घण्टा।
रास्ते में बस स्टॉप पर एक भाई जी एक बेंच पर निर्मलबाबा की तरह दोनों हाथ दोनों तरफ फैलाये रामपाल पर प्रवचन कर रहे थे।सुनाई पड़ा -"रामपाल की हरकतें सरकार बर्दास्त करती रही। उसकी पहुंच थीं।आम आदमी करे तो पुलिस एक दिन में अंदर कर दे।"
एक जगह कुछ लोग शाखा लगाये हुए थे। आठ दस लोग।एक मध्यम आयु का व्यक्ति लाठी के पैंतरे सीखा रहा था। नमस्ते सदा वत्सले पता नहीं हुआ कि अभी बाद में होगा।
चाय पीते हुए गाना सुन रहे हैं:
"तू इस तरह से मेरी जिन्दगी में शामिल है
जहां भी जाऊँ लगता है तेरी महफ़िल है।"
यह शायद चाय के बारे में मेरा बयान सुना रहा है बाजाबाबू।दूसरी चाय मांगते हुए पहली चाय ठण्डी होने की बात कहते हैं तो चाय बाबू बोले-"आप मोबाइल में खेल रहे थे तो इसमें मेरी क्या गलती?"
आम आदमी मोबाइल में घुसे आदमी के बारे में यही सोचता है कि अगला गेम ही खेल रहा है।कुछ ऐसे जैसे यह धारणा कि आतंकवादी है तो मुस्लिम होगा।
चाय की दूकान के पास और कई दुकाने गुलजार हैं। नास्ते पानी और दीगर चीजें। एक दूकान पर जलेबी छन रही है।पोहा भी साथ में। गर्म पोहा से भाप जैसे ऐसे निकल कर बाहर जा रही है जैसे आप पार्टी से उसके कार्यकर्ता।
सूरज भाई इस बीच बगल में आकर बैठ गए। मुझे पता तब चला जब रेडियो पर गाना बजा:
"बड़ी दूर से आये हैं
प्यार का तोहफा लाये हैं।"
हमने सूरज भाई से रूबरू होते हुए कहा--"वाह भाई आप भी बाजार के चोचले सीख गए! दूर से आये हो यह तो सब जानते हैं लेकिन प्यार का तोहफा लाये हो यह पहली बार पता लगा।"
हमारी यह बात सुनकर सूरज भाई मुस्कराने लगे।उनके साथ कि बच्ची किरणें खिलखिलाने लगीं। सुबह हो गयी है।वंशीधर शुक्ल की कविता याद आ गयी :
"उठ जाग मुसफिर भोर भई
अब रैन कहाँ जो सोवत है।'
सूचना:पहला फोटो मेरे कमरे के बाहर से।दूसरा मेस से तीन किलोमीटर दूर वेहकिल मोड़ पर चाय की दूकान पर जहां हम 14 मिनट में पहुंचे।मतलब स्पीड 12 किमी प्रति घंटा। जाम में फंसी कार के मुकाबले बहुत तेज।
अपडेट:लौटे 11 मिनट में।मतलब स्पीड 15 किमी प्रति घण्टा।
- सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी “गर्म पोहा से भाप जैसे ऐसे निकल कर बाहर जा रही है जैसे आप पार्टी से उसके कार्यकर्ता। ” वाह, क्या कहने...!
- प्रवीण 'सुनिये मेरी भी' साइकिल से गये होंगे और हाँ स्पीड रही 12+ 12/14 किमी0 प्रति घंटा, 13 से थोड़ा ही कम...
- Kiran Dixit गाने , सूरज , चाय, बाबा, मोबाइल लोग , राजनीति, पोहा , किलोमीटर , लेखन के कितने किरदार हैं जो सब सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं , बीच बीच में गाने और कविताऐं भी उछल कूद मचाने लगती हैं ।क्या बात है ।आजकल जबलपुर में नहीं हो क्या जो चाय पीने दुकान पर जाना पड़ता है ।
- Priyam Tiwari संतोष जी। इनसे कहिए पुलिया जाना न छोडें। सूरज काका तो पुलिया पर भी मिल सकते हैं। चाहें तो इसे प्यार भरी धमकी भी समझ सकते हैं । एक दो दिन पुलिया पर कुछ न छपे तो अकबकाइ आने लगती है, काहे नइ गए होंगे? कहीं न.नि वाले सड़क चौड़ी करने के चक्कर में पुलिया तोड़ न गए होंगे। वगैरह।
- Harivansh Sharma कभी कभार लगी शाखा में भी चले जाया करो,मन और मष्तिष्क को चेतना मिलती है-प्रार्थना सुनने से तो कोई देश भक्त नहीं बनता।जब तक स्वयं मुख द्वार से उच्चरित नहीं करते।
- संजय अनेजा https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10203928921996344&set=a.1079058769617.2012710.1020718001&type=1
अनूप शुक्ल जी के स्टेटस से मौका पाकर उठाया
"ओ मेरे हमराही मेरी बांह थामे रहना
बदले दुनिया सारी तुम न बदलना।"
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