Saturday, April 04, 2015

बयानों की मियाद

अक्सर लोगों का मन देश सेवा के लिये हुड़कने लगता है। खासकर चुनाव के समय देश सेवा की ललक  सबसे तगड़ी होती है । इस इच्छा की पूर्ति के लिये लोग उसी पार्टी से चुनाव लड़ना चाहते हैं जिस पार्टी की सरकार बनने की सम्भावना होती है। बिना सरकार में शामिल हुये देशसेवा कोई मायने नहीं रखते।

सरकार बनाऊ पार्टी के लिये लोग या तो पार्टी बदलते हैं या पहली बार उस पार्टी में शामिल होते हैं। दोनों स्थितियों में पहले के दिये गये बयान बहुत समस्या पैदा करते हैं। पहले जिस पार्टी की ऐसी-तैसी करते रहे बाद में उसी की तारीफ़ करने पर लोग बहुत सवाल उठाते हैं।---" पहले आप इसको घटिया बताते रहे अब यह अच्छी पार्टी कैसी हो गयी। जिसको गरियाते रहे उसकी जय बोलते हुये कैसा लगता है आपको।जिसका मुंह तोड़ने की मंशा रखते थे उसके चरण चांपते हुये कैसा फ़ील होता है। "

बयान और भी बवाल करते हैं। कोई पार्टी विपक्ष में रहते हुये जो कहती है सरकार बनने पर उससे उलट काम करना पड़ता है। सरकार में रहते हुये जिन कामों की वकालत करते रहे चुनाव में हार कर विपक्ष में बैठने पर उसी का विरोध करना पड़ना है।

पहले का जमाना होता और बात अखबारों तक ही सीमित रहती तो कह देते - "अखबार ने मेरे बयान को तोड़-मरोड़ कर छापा है।" लेकिन आजकल तो ट्विटर और फ़ेसबुक का जमाना है। लोग आपके ही ट्विट आपको दिखाकर पूछते हैं -" ये तो आप ही ने कहा था। अब आप इसके उलट कैसे हो गये? इस हृदयपरिवर्तन का कारण क्या है ? "

ट्विटर, फ़ेसबुक और सोशल मीडिया पर दिये गये बयानों का ई-कचरा बहुत दिन तक सुरक्षित रहता है। जहां आपके खिलाफ़ हुआ आपके विरोधी आपके सामने  लहराकर कहेंगे कि आपका आचरण इस बयान के विरुद्ध है। आपकी पालिटिक्स क्या है बंधुवर? आप लोगों से अगर कहेंगे कि आपका हृदय परिवर्तन हुआ है तो लोग विश्वास नहीं करेंगे। सबको पता है कि हृदय परिवर्तन तो डाकुओं का होता है। राजनीतिज्ञ का तो केवल दल परिवर्तन होता है।

पुराने बयानों से होने वाली असुविधा सर्वव्यापी है। सभी राजनीतिज्ञ इससे हलकान हैं। ऐसे में इसका यही एक उपाय है कि बयानों की मियाद तय कर ली जाये। हर राजनीतिज्ञ अपने बयान की सीमा तय कर दे। जैसे गारण्टी/वारण्टी की मियाद खतम होते ही ग्राहक का दावा खतम हो जाता है। वैसे ही बयान की मियाद खतम होते ही उस बयान पर सवाल बेमानी हो जायेंगे। कुछ मियादें इस तरह की हो सकती हैं:

१. गैरराजनीतिज्ञ रहते हुये दिये बयानों की अवधि राजनीति में प्रवेश करते ही समाप्त हो जायेगी।
२. सरकार में रहते हुये दिये गये बयान सरकार गिरते ही अमान्य हो जायेंगे।
३. विपक्ष में रहते हुये दिये गये बयान सरकार बनने की स्थिति में स्वत: निरस्त हो जायेंगे।
४. एक पार्टी में रहते हुये दिये गये बयान दूसरी पार्टी में ज्वाइन करने पर मान्य नहीं होंगे।
५. अलग-अलग समय में दिये गये बयानों में विरोधाभाष होने पर सबसे ताजा बयान ही मान्य होगा। ऐसी स्थिति में  पुराने बयान की मियाद स्वत: समाप्त मानी जायेगी।

राजनीति में बयानों की मियाद संबंधी यह नियम लागू होने पर देश के अधिक से अधिक लोग देश सेवा के क्षेत्र में आगे आयेंगे। देश का धड़ल्ले से विकास होगा। फ़िलहाल तो चुनाव के समय राजनीति में बयान बाजी को फ़ैशन मानकर ही काम चलाना होगा। और जैसा कि फ़ैशन के बारे में सब जानते हैं कि फ़ैशन के दौर में गारण्टी का कोई मतलब नहीं होता।  देश सेवा के पवित्र भाव के सामने  दिये गये बयानों की कोई गारण्टी नहीं होती।









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