Wednesday, April 15, 2015

मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे

न ये चाँद होगा न तारे रहेंगे
मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे।

गाना बज रहा है चाय की दूकान पर। बगल में एक युवा गाढ़े भूरे रंग की मंहगी सिगरेट फूंकता हुआ कुछ सोच सा रहा है। इतनी मंहगी सिगरेट का जब कश नहीं लिया जाता तब भी सुलगती रहती है। होंठ से अलग होने पर ऊँगली से राख झाड़ता रहता है पीने वाला। सिगरेट में भी वीडियो की तरह एक ठो पॉज मोड होना चाहिए। होंठ से हटते ही सुलगना बन्द कर दे। रेडियो पर बजता गाना शायद सिगरेट का दर्द बयान कर रहा है:
न कोई उमंग है न कोई तरंग है
मेरी जिंदगी है क्या एक कटी पतंग है।

सामने दूकान पर जलेबी तली जा रहीं हैं। सारी जलेबियाँ शुरुआत एक साथ करती हैं। सड़क पर साथ-साथ चलती हुई सहेलियों की तरह। एक दूसरे का हाथ पकड़कर पूरी कढ़ाई की गोलाई को घेर लेती हैं। जैसे जैसे जलेबियां तलती जाती हैं, एक दूसरे से बिछुड़ती जाती हैं। चार-पांच जलेबियाँ से हुई शुरूआत अंतत: सबको अकेला कर देती है। क्या पता सब जलेबियां दूसरी जलेबियों को याद करती हों जैसे लड़कियां बड़ी होने पर अपनी बचपन की सहेलियों को याद करती हों। कोई यह गाना भी गाता होगा:

दिए जलते हैं फूल खिलते हैं
बड़ी मुश्किल से मगर
दुनिया में दोस्त मिलते हैं।

सामने दूकान की भट्टी से उठता हुआ धुँआ पेड़ की फुनगी तक जा रहा है।ये शायद पेड़ की आवाज है जो रेडियो में सुनाई दे रही है:
बहारों फूल बरसाओ
मेरा महबूब आया है।

सड़क धुली धुली सी है। रात पानी बरसा था। सूरज भाई शरमाये से बादलों की आड़ में छिपे हैं। शायद शर्मिंदा हैं कि कल बादल ने सब फसलें भिगों दीं। कुछ बोल नहीं पा रहे हैं। किरणें भी अनमनी सी इधर-उधर आहिस्ते आहिस्ते आती ,उतरती बैठती चुपचाप धरती पर पसरती जा रहीं हैं। वे उदास सी हैं लेकिन उनको कुछ कहने, बोलने की मनाही है। इसलिए कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह रहीं हैं। परदुःखकातरता के लिए भाषण की जरूरत नहीं होती।

ग्लास में चाय खत्म हो गयी है। एक मक्खी बची हुई चाय में डूबकर निपट गयी है। चाय चूंकि खत्म हो गयी है इसलिए हम कुछ परेशान नहीं हैं।कुछ ऐसे ही जैसे शायद फसल बर्बादी पर किसी किसान की आत्महत्या कर लेने पर सरकारें सोचती हों-"कोई नहीं कौन अभी चुनाव होने हैं? मुआवजा दे देंगे।" गाना बजने लगा:
जुस्तजू जिसकी की उसको तो पाया हमने
इस बहाने मगर देख ली दुनिया हमने।

सड़क पर वाहन तेजी से इधर-उधर आ जा रहे हैं। दुपहिया वाहन वाले आधे लोग हेलमेट लगाये हैं आधे खुदाई हेलमेट लगाये चले जा रहे है। खुदाई हेलमेट मतलब सर पर बाल।

 जब इंसान को बनाया होगा भगवान ने तो यह शायद सोचा नहीं होगा कि उसका बनाया नमूना दुपहिया पर चलेगा। पता होता तो कोई और पुख्ता इंतजाम भी करता खोपड़ी बचाने का। लेकिन पता भी कैसे होता।सब तो उसने अकेले में बना दिया। किसी से सलाह भी न ली। सलाह करके दुनिया बनाता तो तमाम कमियां जो दिखती हैं शायद न दिखतीं।
अगला गाना चल रहा है:
यादों की बारात निकली है
आ दिल के द्वारे।

इसमें आगे कहती है हीरोइन -'तुम भी गाओ न!' सब साथ में गाने लगते हैं।

हमारा मन हो रहा है हम भी आपसे कह दें -"तुम भी गाओ न!"

अरे सही में कह रहे हैं भाई। गाइये न।

देखिये सुबह हो गयी है। सुहानी भी है। है न !

No comments:

Post a Comment