सुबह
उठकर कमरे से बाहर आये तो देखा पूरा बरामदा धूप में नहाया हुआ सा है।
रौशनी का पोंछा लगाकर जैसे किरणें छिटक दी हों, ढेर सारे उजाले के साथ,
सूरज ने। सामने पूरे लॉन की हरी घास पर धूप खिलखिलाती हुई लेटी थी। हमको
देखकर नटखट इशारा किया धूप ने -"आओ तुम भी मुस्कराओ। खुशनुमा हो जाओ।" इससे
हमको मन में गुदगुदी सी लगती है। हम धूप के सामने से दूर हो जाते हैं।
कमरे में आ जाते हैं। कमरे से ही देखते हैं कि धूप घास, पेड़ों, पत्तियों,
फूलों, मुंडेर, कंगूरे पर गिलहरी से फुदकती घूम रही है।
हम अज्ञेय की कविता का शीर्षक याद करते हैं-'हरी घास पर क्षणभर'। लगा उस कविता की पुनर्रचना हो रही है। शीर्षक तय नहीं हुआ है। 'हरी घास पर' तो रहेगा लेकिन इसके आगे 'मन भर' होगा कि 'बल भर' या 'जी भर' यह तय नहीं हुआ है।क्या पता युवा किरणें हिंगलिश शीर्षक तय करें -'हरी घास पर फॉर एवर'। यह भी हो सकता है कोई कहे यार लेटस बिगिंन विथ इंग्लिश एन्ड कीप द टाइटिल 'ग्रीन ग्रास पर हेयर एन्ड देयर'। कोई टोकेंगा कि ये तो फुल इंग्लिश हो गया। इसका जबाब होगा अरे इसमें 'पर' तो हिंदी है यार। जैसे पता और दस्तखत हिंदी में होने पर राजभाषा आंकड़ों में पत्र हिंदी में गिन लिया जाता है उसी तरह इसमें 6 में से 1 ’वर्ड’ हिंदी में है -"इट्स मोर दैन इनफ टु काल इट हिंदी।"
साइकिल सैर पर निकलते हैं। पुलिया पर एक बुजुर्ग सजे-धजे बैठे हैं। घर से नहा धोकर निकले हैं। दो महिलाएं बतियाती चली जा रहीं हैं। एक आदमी एक औरत को साइकिल पर बैठाये गर्दन उससे बतियाता चला रहा है। हमारा भी मन किया हम भी किसी को साइकिल पर बैठाकर बतियाते हुए कहीं जाएँ। गाना भी तय कर लिया है गाने के लिए:
गाना सुनने में तो बड़ा रोमांटिक है। मुला बड़ा एकांगी है। मोनोटोनस टाइप है। ’प्यार ही प्यार पले’ तो वाला भाव तो गुंडागर्दी वाला भाव है न! गोया ’प्यार ठाकरे’ के स्वयंसेवक फतवा दें- 'अब यहां केवल प्यार रहेगा। और किसी को रहना हो तो भी अपना नाम प्यार रख ले।' पता चला कि गम, आंसू, पीड़ा, उदासी एफिडेविट लिए नाम पंजीयन कार्यालय के बाहर लाइन लगाये अपना नाम बदलकर 'प्यार' कराने की अर्जी लिए बैठे हों। हमको कानपुर के गीतकार उपेंद्रजी की कविता याद आती है:
लेकिन अब जब मन किया है कि साइकिल पर किसी को पीछे बैठाकर गाना गाते हुए तो इसको ’इच्छा सूची’ में डाल दिया है।गाने वाला गाना गूगल करके तय कर लेंगे। पीछे वजन रखकर साइकिल चलाने का अभ्यास करेंगे अब। अब बताओ कौन चलेगा हमारी साइकिल पर पीछे बैठकर गाना गाते हुए। अपनी रजामंदी के साथ अपना वजन भी बता दे ताकि उत्ते वजन के साथी को पीछे बैठाकर साइकिल चलाने का अभ्यास कर सकें।
आज आगे जाने का मन नहीं हुआ। मुड़कर वापस चले आये। फैक्ट्री के गेट नंबर एक के पास लोग 730 बजने का इंतजार कर रहे हैं। हूटर होते ही अंदर जाने के लिए। चाय की दूकान पर चहल-पहल है। लोग चाय पीते हुए, सुट्टा मारते हुए, गपियाते-बतियाते हुए जिंदगी का झंडा लहरा रहे हैं।
हम कमरे पर लौट आते हैं। पोस्ट लिखते हुए सुन रहें हैं चिड़ियाँ शिकायत कर रहीं हैं कि इसमें उनका जिक्र क्यों नहीं किया हमने ।सामने एक किरण दिख रही है पेड़ की सबसे ऊँची फुनगी पर झूला झूलती हुई। ऊपर से सूरज भाई उस पर गरम हो रहे हैं- "क्या करती है। गिर जायेगी। चोट लग जायेगी। पीछे हट। नीचे उतर।" लेकिन किरण उनकी हिदायत को अनसुना कर उस फुनगी से उछलकर दूसरी फुनगी पर बैठकर झूलने लगती है। हवा में छलांग लगाते हुए वह मेरी तरफ देखकर मुस्कराते हुए कहती है-' हम चलेंगे तुम्हारे साथ साइकिल पर बैठकर। ले चलोगे मुझे।'
किरण की आवाज सुनकर मुझे गुदगुदी सी होती है। हमें कुछ समझ में नहीं आता क्या कहें उससे। बस यही लगता है सुबह हो गयी है। सुबह जो कि काम भर की सुहानी भी है।
हम अज्ञेय की कविता का शीर्षक याद करते हैं-'हरी घास पर क्षणभर'। लगा उस कविता की पुनर्रचना हो रही है। शीर्षक तय नहीं हुआ है। 'हरी घास पर' तो रहेगा लेकिन इसके आगे 'मन भर' होगा कि 'बल भर' या 'जी भर' यह तय नहीं हुआ है।क्या पता युवा किरणें हिंगलिश शीर्षक तय करें -'हरी घास पर फॉर एवर'। यह भी हो सकता है कोई कहे यार लेटस बिगिंन विथ इंग्लिश एन्ड कीप द टाइटिल 'ग्रीन ग्रास पर हेयर एन्ड देयर'। कोई टोकेंगा कि ये तो फुल इंग्लिश हो गया। इसका जबाब होगा अरे इसमें 'पर' तो हिंदी है यार। जैसे पता और दस्तखत हिंदी में होने पर राजभाषा आंकड़ों में पत्र हिंदी में गिन लिया जाता है उसी तरह इसमें 6 में से 1 ’वर्ड’ हिंदी में है -"इट्स मोर दैन इनफ टु काल इट हिंदी।"
साइकिल सैर पर निकलते हैं। पुलिया पर एक बुजुर्ग सजे-धजे बैठे हैं। घर से नहा धोकर निकले हैं। दो महिलाएं बतियाती चली जा रहीं हैं। एक आदमी एक औरत को साइकिल पर बैठाये गर्दन उससे बतियाता चला रहा है। हमारा भी मन किया हम भी किसी को साइकिल पर बैठाकर बतियाते हुए कहीं जाएँ। गाना भी तय कर लिया है गाने के लिए:
"आ चल के तुझे मैं ले के चलूँ
एक ऐसे गगन की तले
जहां गम भी न हो,आंसू भी न हो
बस प्यार ही प्यार पले।"
गाना सुनने में तो बड़ा रोमांटिक है। मुला बड़ा एकांगी है। मोनोटोनस टाइप है। ’प्यार ही प्यार पले’ तो वाला भाव तो गुंडागर्दी वाला भाव है न! गोया ’प्यार ठाकरे’ के स्वयंसेवक फतवा दें- 'अब यहां केवल प्यार रहेगा। और किसी को रहना हो तो भी अपना नाम प्यार रख ले।' पता चला कि गम, आंसू, पीड़ा, उदासी एफिडेविट लिए नाम पंजीयन कार्यालय के बाहर लाइन लगाये अपना नाम बदलकर 'प्यार' कराने की अर्जी लिए बैठे हों। हमको कानपुर के गीतकार उपेंद्रजी की कविता याद आती है:
"प्यार एक राजा है जिसकात ससुर क्या प्यार अपनी पटरानी और राजकुमार को बेदखल कर देगा 'एक ऐसे गगन' पर कब्जा करने के लिए। त भैया गाना फाइनल नहीं हुआ। कैंसल कर दिया। वैसे भी हमको लगता है कि किसी को साइकिल पर बैठाकर गाना गाते हुए कहीं जाने का प्लान फिलहाल स्थगित करना पड़ेगा। अभी अकेले ही चलाने में हांफने लगते हैं। किसी को पीछे बैठाकर चलाएंगे तब तो लुढ़क ही जायेंगे। है कि नहीं?
बहुत बड़ा दरबार है
पीड़ा इसकी पटरानी है
आंसू राजकुमार है।"
लेकिन अब जब मन किया है कि साइकिल पर किसी को पीछे बैठाकर गाना गाते हुए तो इसको ’इच्छा सूची’ में डाल दिया है।गाने वाला गाना गूगल करके तय कर लेंगे। पीछे वजन रखकर साइकिल चलाने का अभ्यास करेंगे अब। अब बताओ कौन चलेगा हमारी साइकिल पर पीछे बैठकर गाना गाते हुए। अपनी रजामंदी के साथ अपना वजन भी बता दे ताकि उत्ते वजन के साथी को पीछे बैठाकर साइकिल चलाने का अभ्यास कर सकें।
आज आगे जाने का मन नहीं हुआ। मुड़कर वापस चले आये। फैक्ट्री के गेट नंबर एक के पास लोग 730 बजने का इंतजार कर रहे हैं। हूटर होते ही अंदर जाने के लिए। चाय की दूकान पर चहल-पहल है। लोग चाय पीते हुए, सुट्टा मारते हुए, गपियाते-बतियाते हुए जिंदगी का झंडा लहरा रहे हैं।
हम कमरे पर लौट आते हैं। पोस्ट लिखते हुए सुन रहें हैं चिड़ियाँ शिकायत कर रहीं हैं कि इसमें उनका जिक्र क्यों नहीं किया हमने ।सामने एक किरण दिख रही है पेड़ की सबसे ऊँची फुनगी पर झूला झूलती हुई। ऊपर से सूरज भाई उस पर गरम हो रहे हैं- "क्या करती है। गिर जायेगी। चोट लग जायेगी। पीछे हट। नीचे उतर।" लेकिन किरण उनकी हिदायत को अनसुना कर उस फुनगी से उछलकर दूसरी फुनगी पर बैठकर झूलने लगती है। हवा में छलांग लगाते हुए वह मेरी तरफ देखकर मुस्कराते हुए कहती है-' हम चलेंगे तुम्हारे साथ साइकिल पर बैठकर। ले चलोगे मुझे।'
किरण की आवाज सुनकर मुझे गुदगुदी सी होती है। हमें कुछ समझ में नहीं आता क्या कहें उससे। बस यही लगता है सुबह हो गयी है। सुबह जो कि काम भर की सुहानी भी है।
फ़ेसबुक पर टिप्पणियां:
- Pallavi Trivedi सही जुगाड़ पकड़ा आपने ... किरण को लेकर घूमने का ! मगर देखिएगा कहीं स्कूल टाइम की दो चार किरणें आकर साइकल पर न लद जाएँ !
- Anamika Vajpai अनूप सर, आज यहाँ की सुबह भी सुहानी है, आपकी जलेबियाँ रूठ कर मेरे पास आ गयी हैं, रूठी हैं इसलिए थोड़ी सीठी भी हैं.... देखिएगा कहीं किरणें भी न रूठ जायें.
- Neeraj Mishra It's more than enough to call it HINDI.
- Govind Gautam बहुत ख़ूबसूरत । मज़ा आ गया सच्ची-मुच्ची
- Amit Kumar Srivastava किरण की आवाज़ से आपको गुदगुदी होना स्वाभाविक है । वो आपके बेटों की मौसी जो हैं ।:-)
- देवेन्द्र पाण्डेय। मस्त
- Rajeshwar Pathak दस्तखत हिन्दी मे होने पर,,,
बहुत सटीक व्यंग्य गुरू जी । - Sujata Sharma क्या सुहानी और रोमानी शुरुआत की सुबह की धूप के साथ ,जैसे अभी अभी नहा कर आयी हो वो।उसके बाद क्यों कर जा़लिम दुनिया की पैदा की हुई हिग्लिस के चक्कर में पड़ गये।आगे गाने का एकांगी होना सही पकडा है।फिर फैक्ट्री के गेट तक जाना आपके आज के कैनवस को पूरा कर रहा है। उसके बाद चिडिया की शिकायत और सूरज की किरण को रोक टोक, और फाइनली किरण के साथ साईकिल की सवारी का प्रस्ताव...मेरी घंटी बज गयी। आकर एक पंक्ति और कहती हूं।
- सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी "किरण की आवाज़ सुनकर मुझे गुदगुदी सी होती है..."
किरण? यह नाम कुछ जाना पहचाना लगता है जी। - Mangat Ram Athwal Anup ji bahut hi sundar aapne subah ka chitran kiya h padkar aachchha laga pr anup ji aaj hamari subah barish se bhigi hui h subah se barish ho rahi h
- Sujata Sharma वैसे किरण तो आपके पीछे रोजाना चुपके से सवारी करती है। सीट पर किसी और को बिठाओगे तो वो गुस्से से सर चढ़ जायेगी। कल्पना को वाचाल बना देते हैं आप अनूप जी।
- अनूप शुक्ल स्व. रमानाथ अवस्थी जी के गीत की पंक्तियां हैं:
मेरी रचना के अर्थ बहुत से हैं
जो भी तुमसे लग जाये लगा लेना।
मैं गीत लुटाता हूं उन लोगों पर
दुनिया में जिनका कोई आधार नहीं
मैं आंख मिलाता हूं उन आंखों से
जिनका कोई भी पहरेदार नहीं ।
आंखों की भाषायें तो अनगिन हैं
जो भी सुंदर हो समझा देना।
Pallavi, Amit , सिद्धार्थ Sujata जी
http://fursatiya.blogspot.in/2005/11/blog-post_8.html
- अनूप शुक्ल मंजर खुशनुमा है।Sujata Sharma
- Sangita Mehrotra kiran ko peeche baithange to suman naraz nahi hogi ??
- अनूप शुक्ल सुमन चूंकि आगे बैठीं हैं इसलिए उनको इस बात से कोई नाराजगी नहीं है कि पीछे कौन बैठ रहा है। किरण या संगीता या कोई और Sangita
Alok Ranjan bahut badhiya
जबरदस्त मस्त
ReplyDeleteआप के लेख तो हमेशा ही पढ़ना अच्छा लगता है...रोचक तो होते ही हैं, मुझे हिंदी सीखने में भी मदद मिलती है...मैं कोई न कोई नया शब्द आपकी हरेक पोस्ट से ग्रहण कर लेता हूं।
ReplyDeleteधन्यवाद।
बढिया लिखा है
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