Thursday, April 16, 2015

प्यार एक राजा है जिसका बहुत बड़ा दरबार है

सुबह उठकर कमरे से बाहर आये तो देखा पूरा बरामदा धूप में नहाया हुआ सा है। रौशनी का पोंछा लगाकर जैसे किरणें छिटक दी हों, ढेर सारे उजाले के साथ, सूरज ने। सामने पूरे लॉन की हरी घास पर धूप खिलखिलाती हुई लेटी थी। हमको देखकर नटखट इशारा किया धूप ने -"आओ तुम भी मुस्कराओ। खुशनुमा हो जाओ।" इससे हमको मन में गुदगुदी सी लगती है। हम धूप के सामने से दूर हो जाते हैं। कमरे में आ जाते हैं। कमरे से ही देखते हैं कि धूप घास, पेड़ों, पत्तियों, फूलों, मुंडेर, कंगूरे पर गिलहरी से फुदकती घूम रही है।

हम अज्ञेय की कविता का शीर्षक याद करते हैं-'हरी घास पर क्षणभर'। लगा उस कविता की पुनर्रचना हो रही है। शीर्षक तय नहीं हुआ है। 'हरी घास पर' तो रहेगा लेकिन इसके आगे 'मन भर' होगा कि 'बल भर' या 'जी भर' यह तय नहीं हुआ है।क्या पता युवा किरणें हिंगलिश शीर्षक तय करें -'हरी घास पर फॉर एवर'। यह भी हो सकता है कोई कहे यार लेटस बिगिंन विथ इंग्लिश एन्ड कीप द टाइटिल 'ग्रीन ग्रास पर हेयर एन्ड देयर'। कोई टोकेंगा कि ये तो फुल इंग्लिश हो गया। इसका जबाब होगा अरे इसमें 'पर' तो हिंदी है यार। जैसे पता और दस्तखत हिंदी में होने पर राजभाषा आंकड़ों में पत्र हिंदी में गिन लिया जाता है उसी तरह इसमें 6 में से 1 ’वर्ड’ हिंदी में है -"इट्स मोर दैन इनफ टु काल इट हिंदी।"

साइकिल सैर पर निकलते हैं। पुलिया पर एक बुजुर्ग सजे-धजे बैठे हैं। घर से नहा धोकर निकले हैं। दो महिलाएं बतियाती चली जा रहीं हैं। एक आदमी एक औरत को साइकिल पर बैठाये गर्दन उससे बतियाता चला रहा है। हमारा भी मन किया हम भी किसी को साइकिल पर बैठाकर बतियाते हुए कहीं जाएँ। गाना भी तय कर लिया है गाने के लिए:

"आ चल के तुझे मैं ले के चलूँ
एक ऐसे गगन की तले
जहां गम भी न हो,आंसू भी न हो
बस प्यार ही प्यार पले।"

गाना सुनने में तो बड़ा रोमांटिक है। मुला बड़ा एकांगी है। मोनोटोनस टाइप है। ’प्यार ही प्यार पले’ तो वाला भाव तो गुंडागर्दी वाला भाव है न! गोया ’प्यार ठाकरे’ के स्वयंसेवक फतवा दें- 'अब यहां केवल प्यार रहेगा। और किसी को रहना हो तो भी अपना नाम प्यार रख ले।' पता चला कि गम, आंसू, पीड़ा, उदासी एफिडेविट लिए नाम पंजीयन कार्यालय के बाहर लाइन लगाये अपना नाम बदलकर 'प्यार' कराने की अर्जी लिए बैठे हों। हमको कानपुर के गीतकार उपेंद्रजी की कविता याद आती है:

"प्यार एक राजा है जिसका
बहुत बड़ा दरबार है
पीड़ा इसकी पटरानी है
आंसू राजकुमार है।"
त ससुर क्या प्यार अपनी पटरानी और राजकुमार को बेदखल कर देगा 'एक ऐसे गगन' पर कब्जा करने के लिए। त भैया गाना फाइनल नहीं हुआ। कैंसल कर दिया। वैसे भी हमको लगता है कि किसी को साइकिल पर बैठाकर गाना गाते हुए कहीं जाने का प्लान फिलहाल स्थगित करना पड़ेगा। अभी अकेले ही चलाने में हांफने लगते हैं। किसी को पीछे बैठाकर चलाएंगे तब तो लुढ़क ही जायेंगे। है कि नहीं?

लेकिन अब जब मन किया है कि साइकिल पर किसी को पीछे बैठाकर गाना गाते हुए तो इसको ’इच्छा सूची’ में डाल दिया है।गाने वाला गाना गूगल करके तय कर लेंगे। पीछे वजन रखकर साइकिल चलाने का अभ्यास करेंगे अब। अब बताओ कौन चलेगा हमारी साइकिल पर पीछे बैठकर गाना गाते हुए। अपनी रजामंदी के साथ अपना वजन भी बता दे ताकि उत्ते वजन के साथी को पीछे बैठाकर साइकिल चलाने का अभ्यास कर सकें।

आज आगे जाने का मन नहीं हुआ। मुड़कर वापस चले आये। फैक्ट्री के गेट नंबर एक के पास लोग 730 बजने का इंतजार कर रहे हैं। हूटर होते ही अंदर जाने के लिए। चाय की दूकान पर चहल-पहल है। लोग चाय पीते हुए, सुट्टा मारते हुए, गपियाते-बतियाते हुए जिंदगी का झंडा लहरा रहे हैं।

हम कमरे पर लौट आते हैं। पोस्ट लिखते हुए सुन रहें हैं चिड़ियाँ शिकायत कर रहीं हैं कि इसमें उनका जिक्र क्यों नहीं किया हमने ।सामने एक किरण दिख रही है पेड़ की सबसे ऊँची फुनगी पर झूला झूलती हुई। ऊपर से सूरज भाई उस पर गरम हो रहे हैं- "क्या करती है। गिर जायेगी। चोट लग जायेगी। पीछे हट। नीचे उतर।" लेकिन किरण उनकी हिदायत को अनसुना कर उस फुनगी से उछलकर दूसरी फुनगी पर बैठकर झूलने लगती है। हवा में छलांग लगाते हुए वह मेरी तरफ देखकर मुस्कराते हुए कहती है-' हम चलेंगे तुम्हारे साथ साइकिल पर बैठकर। ले चलोगे मुझे।'

किरण की आवाज सुनकर मुझे गुदगुदी सी होती है। हमें कुछ समझ में नहीं आता क्या कहें उससे। बस यही लगता है सुबह हो गयी है। सुबह जो कि काम भर की सुहानी भी है।

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3 comments:

  1. जबरदस्त मस्त

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  2. आप के लेख तो हमेशा ही पढ़ना अच्छा लगता है...रोचक तो होते ही हैं, मुझे हिंदी सीखने में भी मदद मिलती है...मैं कोई न कोई नया शब्द आपकी हरेक पोस्ट से ग्रहण कर लेता हूं।
    धन्यवाद।

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  3. बढिया लिखा है

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