सूरज भाई झील के पानी पर अपना अंगौछा धर दिए |
एक लड़का सड़क पर टहलता हुआ आता दिखा। उसके हाथ जेब में थे। शायद सर्दी के कारण। लेकिन हमको लगा कि उसके हाथ सरकार के हाथ हैं जो उसकी जेब में जो भी होगा, निकाल लेंगे। हमें यह सोचने का कारण भी समझ में आ गया। सरकार ने प्राविडेंट फ़न्ड के पैसे पर भी टैक्स लगा दिया है। इसको सही ठहराते हुये कल किसी ने बताया कि लोग अपने प्रावीडेंट फ़ंड का उपयोग इन्वेस्टमेंट में करते हैं इसलिये यह टैक्स लगाया गया।
हमने उसी समय याद किया था कब-कब हमने पैसे निकाले। हमने आज तक पैसे बहन/भतीजी की शादी के लिये, कार लिये, बच्चे की फ़ीस भरने के लिये या फ़िर कोई उधार चुकाने के लिये निकाले। अब फ़िर बच्चे की फ़ीस भरनी है दो महीने बाद। क्या इस बार टैक्स लगेगा? वैसे देखा जाये तो यह भी तो इन्वेस्टमेंट ही है !
एक लड़की टहलती हुई जोर-जोर से अपनी साथ की महिला को बता रही थी- ’आंटी हम उठ तो बहुत जल्दी ही गये थे लेकिन निकलने में देर हो गयी।’ एक लड़की गले में टुपट्टा डाले शाल ओढे महिला के साथ तेज-तेज टहलती हुई जा रही थी।
आम आदमी की बतकही -जनता तो फुटबाल है |
रास्ते में दो सुअर एक-दूसरे को पिछियाते हुये दिखे। क्या पता अपने समाज में वे एक-दूसरे की विरोधी पार्टी में हों और उनके यहां भी कोई बजट-शजट पेश हुआ हो कोई और उनके प्रवक्ता आपस में बहस करते हुये एक दूसरे का तगड़ा विरोध कर रहे हों। इसी प्रक्रिया में एक-दूसरे को थूथनियाते हुये, धौल-धप्पा करते हुये दौड़ा रहे हों।
रांझी मोड़ पर एक पुलिस वाले भाई जी टाइगर वाहन के बाहर अकेला खड़ा अपने सर पर हाथ फ़ेर रहे थे। लग रहा था खुद ही खुद को दुआयें दे रहे हों-’ सलामत रहो, आबाद रहो।’
चाय की दुकान पर अखबार पढ़ते हुये चाय पीने लगे। बजट के समर्थन और विरोध में बयान थे। चाय की दुकान से थोड़ी ही दूर पर कुछ लोग एक तसले में लकड़ी सुलगाये आग तापते हुये बतिया रहे थे। एक ने कहा -’लगता है सर्दी अब होली के साथ ही जायेगी। होली तक ऐसे ही आती-जाती रहेगी।’
दूसरे ने घर-घर मदिरालय बन जाने की बात कहते हुये सूचित किया कि अब सरकार ने सुविधा दे दी है कि मुंह खोलते ही पीने लगो। हमने कहा - ऐसा क्या? वह बोला- ’हौ, तब क्या? सुबह से ही लोग खटखटाने लगते हैं और चढ़ाने लगते हैं। ’ एक घर की तरफ़ इशारा करते हुये बताया -’ वहां सुबह-शाम बैठकी चलती है। जुआ भी चलता है। पत्ते खेलते देखते हैं तो अपन भी खड़े हो जाते हैं जाकर।’
सूरज भाई अपने डुप्लीकेट के साथ |
फ़िर पता नहीं कहां से जनता की बात भी होने लगी। एक ने कहा- ’जनता तो फ़ुटबाल की तरह है। गौरमेंन्ट एक किक मारती है जनता उधर गिरती है। उधर से भी एक किक पड़ती है जनता बेचारी और कहीं गिरती है। लेकिन गौरमेंट भी का करे? उसको भी तो चलाना है न । यह सब करना पड़ता है। पर गरीब आदमी की मरन है।’
एक बोला- ’गरीब आजकल वही है जो काम नहीं करना चाहता है। काम करने वाले के लिये पचास काम हैं।’
दूसरे ने डपट दिया उसे और कहा-’ लौंडे काम पर लग गये इसई लाने ऐसी छांट रहे बातें। बताओ उसका दद्दा कौन काम करेगा अब? घर भर का कमाई का सहारा था वो!’
पता चला कि ड्राइवर की बात हो रही थी जो अपने परिवार में एक मात्र कमाने वाला था। उसको लकवा मार गया। इससे उसके परिवार में भुखमरी का संकट हो गया है।
उसके बारे में और बाते हुईं फ़िर-’ भला आदमी है। नेक इंसान। कभी-कभी मदद करके मुफ़्त भी सामान ढो देता था। लेकिन बीपी के चलते लकवा मार गया। आधा शरीर झूल गया। बीपी बड़ी खतरनाक बीमारी है।’
रास्ता ही मंजिल है का सन्देश देती जोंक |
हमने उसने पूछा कि जब मैं इधर से गया था भी आप सर पर हाथ फ़ेरते दिखाई दिये। अभी भी लगातार सर पर हाथ फ़ेर रहे हैं। कोई तकलीफ़ है सर में या बाल छोटे ज्यादा हो गये उसका अफ़सोस मना रहे हैं।
भाई जी मुस्कराये पर कुछ बोले नहीं। लेकिन उनके सर पर बीच के बाल काफ़ी कम से थे। सफ़ेद हो गये बाल बीच में कम थे तो सहलाते हुये उनको शायद सांत्वना सी दे रहे हों या फ़िर किनारे के बालों को फ़ुसलाकर बीच में लाने के लिये पटा रहे हों यह सोचते हुये कि ये बीच में आ जायें तो ’सबका साथ , सबका विकास’ टाइप हो जाये सर के बालों में।
मोड़ पर ही एक कूड़े का वाहन पंक्चर खड़ा था। चार लोग मिलकर पहिया बदल रहे थे। इसके बाद कूड़ा भरने निकलें शायद।
लौटते में फ़िर झील के पानी पर सूरज भाई को देखते हुये आये। सूरज भाई पूरी तरह से चमक रहे थे। उनकी पूरी जवान परछाई झील के पानी में पड़ रही थी। ऐसा लग रहा था मानो उनकी ’अटेस्टेट फ़ोटोकाफ़ी’ झील के पास धरी हो। हो तो यह भी सकता है कि सूरज भाई वीआईपी हैं तो उनके कई डुप्लीेकेट साथ चलते हों। झील के पानी वाला सूरज उनका कोई डुप्लीकेट हो।
झील के किनारे ही एक जोंक मिट्टी में सरकती जा रही थी। बहुत-बहुत धीमी गति से। लेकिन जहां जा रही थी रास्ते में अपने निशान छोड़ती जा रही थी। यह भी सोचने की बात है कि वह जोंक अकेली थी। मंजिल कहां है कुछ पता नहीं उसको लेकिन वह आगे जा रही है। शायद वह भी मानती हो कि - ’रास्ता ही मंजिल है। आगे बढ़ते जाना ही जिन्दगी है।’
नहीं क्या ?
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