झील के पानी में छप्प-छैयां करते सूरज भाई |
सड़क पर एक परिवार टहल रहा था। देखते-देखते बच्चा आगे दौड़ने लगा। जमीन पर धप्प-धप्प करते जूते रखता। पीछे उसका पिता भागने लगा। कुछ दूर आगे जाकर पिता ने बच्चे को पिछाड़ दिया। बच्चा पलटकर भागने लगा। पिता फ़िर पलटकर बच्चे को पकड़ने की मुद्रा में उसके पीछे भागने लगा। बच्चे की मां पिता-पुत्र के ’मार्निंग-कौतुक’ को देखते एक समचाल से टहलती रही। गरदन थोड़ा बायीं तरफ़ किये हुये।
दिहाड़ी कमाने निकला कुम्हार |
एक आदमी ठेले पर कुछ घड़े रखे बेंचने के लिये ले जा रहा था। लालमाटी जायेगा। एक घड़ा 70 रुपये का। बताया कि सब बिक जाते हैं घड़े। पहले महिलायें भी घड़े बेचने जाते दिखीं थीं। पर वे घड़े अपने सर पर ढोकर ले जातीं थीं। लेकिन आदमी लोग सर पर ढोकर बेंचने जाते नहीं दिखें। दोनों के काम करने की सुविधाओं में अंतर है। लैंगिग भेदभाव। एक ही काम के लिये महिला को सर पर ज्यादा बोझ ढोना होता है।
परदेशी और सुशीला चाय की दुकान पर |
इस पर सूरज भाई बड़ी तेज खिलखिलाकर हंसे। सब दिशायें भी उनके साथ हंस पड़ीं। इसके बाद उन्होंने मुस्कराते हुये अपनी शाश्वत धमकी दी-’ हम भी फ़िर अपनी ऊष्मा का शुरुआत से लेकर आजतक का बिल भेज देंगे। सदियों तक चुकाते नहीं बनेंगे।’ हम उनको मुस्कराते हुये पानी में नहाता छोड़कर चले आये।
दीपा पानी भर लाई
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पति-पत्नी समझा जाना समझ लो कितना खराब समझा जाता है। :)
दोनों रीवां के रहने वाले हैं। दोनों के जीवन साथी खत्म हो गये। बच्चे नहीं हैं। मांगते-खाते हैं। जीसीएफ़ के सामने बैठते हैं। दस-बीस-तीस रुपये मिल जाते हैं। उसी से गुजर बसर खाना-पीना हो जाता है।
सुबह की रसोई बनाते कामगार |
वहीं तीन लड़के चाय पीते हुये एक ही सिगरेट से बारी-बारी से सुट्टा लगा रहे थे। सरकार ने सिगरेट मंहगी करके युवा शक्ति को एक जुट होने का मौका दिया है।
दीपा से मिलने गये। उसके पापा ने कुंडम से आये कुछ लोगों को अपने ठीहे के पास बनाने-खाने की जगह दे दी। मतलब बुला लिया कि आओ बनाओ-खाओ। सबका अकेलापन दूर होगा।
कुंडम से आये लोग सुबह का खाना बना रहे थे। लकड़ी साथ लाये हैं। होली तक रुकेंगे। घर में सब लोग हैं। मां-पिता-बच्चे-पत्नी और परिवार। अभी वहां कोई काम नहीं तो यहां चले आये। 250 रुपये रोज के मिलते हैं।
बटलोई में आटा मांढ़ा जा रहा है |
दीपा पानी भरकर आ गयी। सर पर अल्युमिनियम की पतीली में पानी भरे। आज उसकी छुट्टी है। उसके पापा ने उसको नहाने के लिये चिल्लते हुये कहा। वह चुपचाप अंदर चली गयी। हमने उसके पापा से कहा-’ ऐसे चिल्लाया मत करो भाई। प्रेम से बोला करो।’ वह बोला- ’ प्रेम से बोलते हैं तो यह हमको बेवकूफ़ समझती है। बात नहीं मानती।’ कहने का मन हुआा (लेकिन कहा नहीं)-’ बेवकूफ़ तो हो ही तुम जो ऐसा समझते हो। प्रेम से बोलो तो बच्ची ज्यादा अच्छे से काम करेगी।’
टेसू के फूल जमीन का श्रंगार करते हुए |
’मुझे तोड़ लेना वनमालीचलिये। चला जाये। कर्तव्य पथ डट जाया जाये। कविता याद करते हुये:
उस पथ पर देना तुम फ़ेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ पर जायें वीर अनेक”
’वह शक्ति हमें दो दयानिधेमल्लब अगर कोई कर्तव्य मार्ग पर नहीं डटा है और कोई उसको टोंकता है तो अगला तसल्ली से कह सकता है -"क्या करें भाई! दयानिधे से शक्ति की ग्रांट आई ही नहीं! कैसे डट जायें कर्तव्य मार्ग पर? शक्ति की ग्रांट आये तभी तो डटें।" ये दयानिधे हमारे खिलाफ़ षडयन्त्र कर रहे हैं :)
कर्तव्य मार्ग पर डट जावें’
सूरज भाई सुबह से कर्तव्यमार्ग पर डटे हुये हैं और हमको बहानेबाजी करता देखकर मुस्करा रहे हैं। सुबह हो ही गयी।
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