Saturday, March 05, 2016

भारत में पहले पानी की नदियां बहतीं थीं


सूरज भाई का जलवा झील पर पसरा है
आज सुबह निकले तो सड़क धुली-धुली लग रही थी। बादलों के पास जो पानी बचा रहा होगा वह फ़ेंककर चलते बने होंगे। मौसम सुहाना और आशिकाना सा !

चाय की दुकान पर दो लोग फ़र्श पर उकड़ू बैठे बीड़ी पी रहे थे। चाय का ग्लास बगल में धरा था। खाने के बाद जैसे लोग कोई ’स्वीट डिश’ खाते हैं वैसे ही चाय के बाद अब ’कुछ बीड़ी हो जाये’ के वाले अंदाज में सुट्टा मार रहे थे।

बात करते हुये पता चला कि देहरादून से आये हैं सामान लेकर। बुधवार को चले थे। शनिवार को आ गये 1400 किमी करीब दूरी तय करके। हम जानते हैं देहरादून से स्प्रिंग आती है। पूछा - ’ (लीफ़) स्प्रिंग लाये हो?’ वो बोले-’ स्प्रिग नहीं, कमानी लाये हैं।’ स्प्रिंग को बोलचाल की भाषा में कमानी कहते हैं।

जनता से जनता की भाषा में ही बतियाया जाना चाहिये। नहीं बतियायेंगे तो एक-दूसरे की बात समझ नहीं पायेंगे।
लौटते हुये बोले-’ बुरहानपुर होकर जायेंगे। केला मिल जायेगा ले जाने के लिये।’

देहरादून के पास ही एक गांव के रहने वाले हैं सब ड्राइवर। एक ट्र्क में दो ड्राइवर हैं ताकि जब एक आराम करे तो दूसरा चलाता रहे। तीन ट्र्क एक साथ आये हैं।


दीपा होमवर्क करती हुई
चाय की दुकान से चलकर झील की तरफ़ गये। रास्ते में बस स्टैंड पर एक आदमी सड़क की तरफ़ पीठ किये पैर ऊपर नीचे झटकते हुये कसरत कर रहा था। तेज कसरत करते हुये लगा कि फ़टाफ़ट दुलत्ती चला रहा है।
झील पर सूरज भाई का पायलट आ गया था। पूरा तालाब लाल सा कर दिया था उसने। मानो सूरज की रैली होने वाली हो झील के मैदान पर। सूरज भाई के आने के पहले रोशनी की झालर, झंडे लहरा रहे थे। तारों पर बैठे पक्षी चिंचियाते हुये लगता है सूरज भाई जिन्दाबाद, जिन्दाबाद, जिन्दाबाद का नारा लगा रहे थे। क्या पता कुछ लोग हमारा नेता कैसा हो, सूरज भाई जैसा हो भी का नारा भी लगा रहे थे।

मैदान के पास हैंडपंप पर ठेकेदारी पर काम करने वाले मजदूर नहा रहे थे। महिलायें कपड़े बदल रहीं थीं।
पास के ही मकान के बाहर एक लड़का स्कूल जाने के लिये बस्ता पीठ पर लादे तैयार खड़ा था। पानी की बड़ी बोतल बस्ते के बाहर झांक रही थी।

पानी की बात से याद आया कि कल शाम एक लड़की अपने भाई के साथ मोटरसाइकिल पर मेस के बाहर मिली। हम चूंकि बाहर ही मिल गये तो उसने पूछ लिया -’अंकल पानी भर लें?’ हमने कहा-’ भर लो।’ इसके बाद अंदर आकर वे मोटरसाइकिल एकदम नल के पास खड़ी करके अपने झोले में से कई बोतल निकालकर भरने के बाद झोले में रखने लगे।

पता चला कि उनके यहां पानी के लिये जो हैंडपम्प लगा है उसमें पानी खारा आता है। पीने लायक नहीं होता। आमतौर पर पापा आते हैं भरने पानी लेकिन अभी एक्सीडेंट हुआ है तो आ नहीं पाते। लड़की ट्यूशन पढकर आयी है तो अपने भाई के साथ पानी भरने आ गयी।

किस विषय का ट्यूशन पढती हो पूछने पर बताया उसने अंग्रेजी का। इंजीनियरिंग की पढाई करती है श्रीराम इंजीनियरिंग कालेज से। फ़र्स्ट ईयर में। कम्प्यूटर साईंस।

हमने कहा - ’तुम अंग्रेजी का ट्यूशन पढ़ती हो लेकिन बात तो हिन्दी में कर रही हो। सब पैसा बरबाद कर दिया। बोल पाती तो अंग्रेजी?’

इस पर उत्साहित होकर उसने कहा-’ यस वी कैन स्पीक इंगलिश।’

हमने मजे लिये- ’बोल अकेले रही हो। कह ’वी’ रही हो?’ वह हंसने लगी।

लेकिन बात पानी की हो रही थी। बच्चे लोग न्यू कंचनपुर से पानी भरने के यहां आये थे। दिन पर दिन पानी की सम्स्या विकराल होती जा रही है। अभी खबर सुन रहे हैं-’ बुंदेलखंड में पानी के तालाबों पर पहरे के लिये बंदूकधारी लोग तैनात किये गये हैं।’

कल के सीन क्या पता ऐसे हों- ’ लोग सुबह उठते ही पानी भरने के लिये निकल पड़ें। पेट्रोल पम्पों के बगल में ही पानी के पम्प खुल जायें। पानी की सप्लाई विदेशों से होने लगे। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पानी के दाम उछलने से देश में मंहगाई बढ़ने लगे। सरकारें पानी के सब्सिडी देने लगे। कोई पानी पंप वाला इसलिये जेल चला जाये कि वह पानी में पेट्रोल मिलाकर बेंच रहा था। जैसे आज पेट्रोल के विकल्प खोजे जाते हैं वैसे ही कल पानी के विकल्प खोजे जायें। एक-एक बोतल पानी के मार-काट होने लगे। लोग दहेज में पानी के भरे टैंकर देने लगें। और लोग बीते हुये जमाने को याद करते हुये कहें- ’ भारत में पहले पानी की नदियां बहतीं थीं।

रेलवे क्रासिंग पर पीला सिग्नल जल रहा था। क्रासिंग के पास एक लड़की स्कूल ड्रेस में मोबाइल पर बतिया रही थी। पावरपैक से चार्जिंग भी चल रही थी। मोबाइल की बैटरी आजकल लोगों के धैर्य की तरह देखते-देखते खल्लास हो जाती है। कल को क्या पता वाई-फ़ाई चार्जर आने लगें।

दीपा से मिलने गये। वह बैठे हुये होमवर्क कर रही थी। अंग्रेजी की किताब से फ़ूलों के नाम याद कर रही थी। कुर्ता उलटा पहने थी। हमने याद दिलाया तो हंसने लगी। पापा उसके हमेशा की तरह शिकायत करते मिले। पढ़ती नहीं। हमने पूछा तो बोली- ’ खेलने चली जाती हूं। सहेली के साथ। पकड़म-पकड़ाई, चीटी धप और इसी तरह के खेल।’

पापा उसके कहने लगे- ’ हम इससे कहते हैं कि पढोगे नहीं तो बंगले में काम करोगी। मैडम नहीं बन पाओेगी। लेकिन ये पढती ही नहीं। हम दिन भर रिक्शा चलाते हैं। शाम को आते हैं बरतन मांजते हैं। खाना बनाते हैं। ये दिन भर घूमती, खेलती रहती है। पढती ही नहीं।’

हम कहते हैं कि पढ़ा करो तो चुप रहती है। फ़िर बताती है आज साढे नौ बजे जाना है स्कूल। पापा को बुलाया है। दस्तखत करने के लिये। शायद पैरेन्टस टीचर मीटिंग है।

लौटते हुये दो लड़कियां साइकिल पर जाती हुई दिखीं। एक लड़की बार-बार अपनी स्कर्ट नीचे करते हुये ठीक सा कर रही थी। शायद कुछ छोटी हो। बगल से गुजरते हुये उनसे बात करते हुये चलने लगे। पता चला कि इंतहान देने जा रही हैं। आज अंग्रेजी का पर्चा है। इसके पहले हिंदी का हुआ। अच्छा हुआ। हमने ’आल द बेस्ट’ कहा इम्तहान के लिये तो दोनों बोलीं- ’थैंक्यू अंकल।’ अब इस समय उनको कापी मिल गयी होगी। वे उस पर अपना रोल नंबर लिख चुकी होंगी।

सूरज भाई पूरे बगीचे में अपना जलवा बिखेरे हुये हैं। किरणें पूरे बगीचे में पसरी हुई धमाचौकड़ी कर रही हैं।
सुबह हो गयी है। आपको दिन मुबारक हो।

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