सुबह की सड़क |
हमको बाहर निकला देख पक्षी अलग-अलग अंदाज में चहचहाने लगे। ऐसे लगा जैसे कोई ताजा व्यंग्य रचना फ़ेसबुक पर पोस्ट करो तो साथी लोग अलग-अलग प्रतिक्रिया दे रहे हों। बढिया, भौत बढिया, कलम तोड़ से लेकर इसमें व्यंग्य कहां है, सरोकार नदारद, ये तो सपाटबयानी है तक की प्रतिक्रियायें मानो पक्षी दे रहे हों -हमको ताजा व्यंग्य रचना मानकर।
एक चिडिया तो हमको देखकर बहुत जोर से चिंचियाती हुई हंस सी रही थी। लगता है वो हमको आज ’घुट्टन्ना’ की जगह पूरे पायजामा में देखकर मजे ले रही हो और कह रही हो- नकलची कहीं के। कुछ भी पहनो- रहोगे पाजामा ही।
एक आदमी पुलिया के पास सर झुकाये हाथ में ’टहलुआ डंडा’ लिये चला जा रहा था। लगता है देहरादून में घोड़े की पिटाई के लिये जबलपुर में शर्मिन्दगी व्यक्त कर रहा हो।
सूरज भाई अपने डुप्लीकेट के साथ |
सूरज और उस आदमी के बीच ऊर्जा का आदान प्रदान होते देख मुझे बड़ी बात नहीं कल को सूरज से गर्मी लेने पर कोई सरकार ’से्स’ लागू कर दे। जलकर, मलकर की तरह कोई ’धूपकर’ लागू हो जाये। हर आदमी सीसीटीवी कैमरे की निगरानी में रहेगा और महीने के अंत में उसका ’धूपकर’ का बिल उसके पास पहुंच जायेगा। पहली बार लागू होने पर वापस ले लिया जायेगा लेकिन फ़िर बाद में फ़िर क्या पता लागू होकर ही रहे। फ़िर अगली पीढी को बताते हुये लोग कहेंगे - ’जब हम बच्चे थे तब धूप मुफ़्त में मिलती थी। जितनी मन आये उतनी सेंक लो। कोई टोंकता नहीं था।’
तालाब पर सूरज भाई एकदम जमकर गदर किये हुये थे। खिलकर चमक रहे थे। पानी भी उनकी संगत में ऐसे चमक रहा था जैसे किसी नेता के बगल में सटकर सेल्फ़ी लेते उसके चेले-चपाटे चहकते हैं। पेड़ चुपचाप जनता की तरह सर झुकाये सारा गदर होते देख रहे थे।
खटखट होटल पर जलेबी बनने लगी |
सामने भट्टी पर जलेबी छान रहा था दुकान वाला। बने हुये पोहे से भाप उड़ रही थी। होटल का नाम देखा - ’खट-खट होटल।’ दुकान वाले ने कहा - ’अच्छा आया है।’ हमने कहा-’ आओ तुम्हारे साथ लेते हैं।’ वह कपड़े के छन्ने में मैदा भरकर जलेबी बनाने लगा और हमने उसका फ़ोटो लिया। फ़ोटो लेते समय उधर से सूरज भाई भी कढाई में घुस के बैठ गये। हमने कहा- ’क्या करते हो भाई, जल जाओेगे।’ वे बड़ी तेज हंसने लगे। बोले- ’पता है न हमारी सतह का तापमान 6000 डिग्री होता है। ये तेल तो सौ डिग्री के अल्ले-पल्ले होगा।
दुकान वाले ने बताया कि उसकी दुकान सन 1980 से चल रही है। 2200 रुपया किराया है। जलेबी आजकल 100 रुपया किलो है। बच्चों ने नाम रख लिया खट-खट होटल क्योंकि खटर-पटर होती रहती थी यहां। हमको लगा कि अच्छा हुआ कि हमारे पूर्वज अपने देश का नाम पहले ही हिन्दुस्तान या फ़िर भारत रख गये। आज रखा जाता तो न जाने किस नाम पर सहमति हो पाती।
टेसू के फूल |
लौटते में देखा टेसू के फ़ूल खिले हुये थे पेड़ पर। बगल में बेशरम के बैगनी फ़ूल भी खिले हुये थे शान से। दोनों बिना एक-दूसरे को गरियाये मजे से झूम रहे थे।
कुछ दूर रेल की पटरी पर रेलगाड़ी भन्नाती हुई चली जा रही थी। ऐसा लग रहा था कि उसको किसी ने बेमन से पटरी पर दौड़ा दिया हो और वह यात्रियों को लादकर चल दी हो। आलोक धन्वा की कविता याद करते हुये हम वापस लौट आये:
हर भले आदमी की एक रेल होती है.https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10207540197996531
जो माँ के घर की ओर जाती है.
सीटी बजाती हुई.
धुआँ उड़ाती हुई
दैनिक हिन्दुस्तान में 19.03.2016 |
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " सुखों की परछाई - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteSubah ki sair pr jakar achha laga.
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