Monday, June 25, 2018

गंगा किनारे स्कूल

चित्र में ये शामिल हो सकता है: एक या अधिक लोग, लोग बैठ रहे हैं, जूते और बाहर
गंगा के तट पर इतवारी स्कूल
इतवार को टहलने निकले। साईकल किसी नवजात सरकार सी उचकती-फुचकती चल रही थी। नई सरकारें कसम खाते ही हर तरफ फ़ीता काटने लगती हैं। उसी तर्ज पर साईकल गड्ढे, सड़क सब जगह पहिया घुसाती चल रही थी। सरपट।
सुरेश अपने अड्डे पर रिक्शा सम्भाल रहे थे। रिक्शेवाले नदारद थे। जब मन आता है घर चले जाते हैं। वापस आ जाते हैं। राधा फूलबाग की तरफ अपनी रोजी कमाने गईं थीं। रोजी कमाने मतलब भीख मांगने। मांगने वालों का भी ड्यूटी टाइम होता है। देर करने पर दिहाड़ी कम हो जाती है।
शुक्लागंज के मुहाने पर सड़क डिवाइडर पर एक आदमी 'कम्बल कब्जा' करके टहलने गया था। जिस जगह सोया होगा, वहीं कम्बल छोड़ गया होगा।
डिवाइडर के दूसरे सिरे पर एक महिला घुटने सिकोड़े सो रही थी। कमीज पहने थी। कमर के नीचे बिना कपड़े। बाल उलझे। शरीर पर मैल। पता नहीं कहाँ से आई। कब से यहां है। सो रही थी इसलिए हिम्मत भी नहीं हुई कुछ पूछने की। जागती भी तो क्या कर पाते। मध्यम वर्ग का आदमी खाली दर्शक बना रहता है। कुछ भी होता रहे अगल बगल। देख लेगा। दुखी हो लगा। फोटो खैंच लेगा। वीडियो बना लेगा। कुछ लिख लिखा लेगा। बहुत हुआ तो दुखी होकर अपना अपना काम पूरा कर लेगा।
हमने भी मध्य वर्ग के सच्चे प्रतिनिधि की तरह चुपचाप महिला को कुछ देर देखा। फिर बाकी लोगों के देखने के लिए छोड़कर आगे बढ़ गए। आसपास के लोग अपने हिस्से का काम पहले ही कर चुके थे। महिला तसल्ली से सोती रही।
चित्र में ये शामिल हो सकता है: एक या अधिक लोग, जूते, भीड़ और बाहर
हर बच्चे का अपना आसन
घाट किनारे पेड़ के नीचे सुबह वाला स्कूल चल रहा था। 30-35 बच्चे अलग-अलग पढ़ रहे थे। क्लास के हिसाब से बच्चे बंटे थे। छोटे बच्चों को गणित पढ़ाते हुए बड़ी संख्या, बराबर, छोटी संख्या ( ग्रेटर , इक्वल टू, स्मालर दैन) सिखा रहे थे। बड़ी संख्या, छोटी संख्या के लिए चोंच इधर, चोंच उधर। मुंह इधर खुला, उधर खुला मतलब समझ सकने वाली भाषा में सिखा रहे थे बच्चे।
चबूतरे पर कुछ बच्चे पीरियॉडिक टेबल मतलब आवर्त सारणी सीख रहे थे। कक्षा छह में पढ़ते हैं बच्चे। हमें याद आता है कि हमारा परिचय आवर्त सारणी से तब हुआ था जब हम कक्षा ग्यारह में घुसे थे। कक्षा छह में तो अपन एबीसीडी से हेलो, हाउ डु यू डू सीखे थे। जमाना तेजी से आगे बढ़ रहा था।
अंग्रेजी सीखते बच्चे बीच बीच में पानी पीने की छुट्टी मांग रहे थे। कई बच्चों के एक साथ छुट्टी मांगने पर टीचर नाराज़ सी भी हुई। बच्चे चुप हुये। कुछ देर बाद फिर हाथ उठाकर पानी की अर्जी लगा दी।
इस बीच मोटर साइकिल के सहारे टिका ब्लैक बोर्ड हवा के झोंके से हिलकर नीचे गिर गया। ऐसे जैसे कोई गठबंधन सरकार साथी दल के समर्थन वापस लेने पर गिर जाए। बोर्ड फिर टिकाया गया। क्लास फिर शुरू हुई।
कुछ देर बाद योग क्लास शुरू हुई। बच्चों ने विभिन्नता में एकता की तरह एक ही आसन अलग- अलग तरह से करते हुए योग किय्या। योग के बाद बच्चों को जूडो-कराटे सिखाया गया। बच्चे आत्मरक्षा के उपाय सीख रहे थे।
चित्र में ये शामिल हो सकता है: 2 लोग, मुस्कुराते लोग, लोग बैठ रहे हैं
संस्था की सदस्य कोषाध्यक्ष रचना
इस बीच जय हो फ्रेंडशिप ग्रुप के लीडर जयसिंह और कोषाध्यक्ष का काम भी देखने वाली रचना आईं। उनसे पता चला कि रजिस्ट्रेशन हो गया है ग्रुप का। लेकिन अभी खाता नहीं खुला। ग्रुप के करीब 50-55 सदस्य हैं। ग्रुप को सहयोग मिलने की बात करने पर पता चला कि अधिकतर सहयोग करने वालों की मंशा ग्रुप पर कब्जे की रहती है। जो भी सहयोग करता है, वह ग्रुप की उपलब्धियों को अपने खाते में जोड़कर खुद को चमकाना चाहता है।
अभी तो कोई ग्रांट नही मिलती तब यह हाल। कल को पैसा आएगा तब तो मारकाट ही मच जाएगी। समाजिक काम काज में भी बड़ी मारकाट है। बड़ी असामाजिकता है।
नई उम्र के बच्चों का उत्साह देखकर अच्छा लगता है। लगता है हम भी पढ़ाएं बच्चों को। एकाध दिन कर भी लेंगे। लेकिन नियमित कठिन लगता है। किसी भी काम को नियमित करना मुश्किल होता है। इसी चक्कर में भले लोग भी अच्छे कामों से दूर रहते हैं। हो नहीं पाते अच्छे काम ज्यादा। बुरे काम धड़ल्ले से होते रहते हैं।
लौटते हुए धूप काफी हो गयी थी। डिवाइडर पर सोती महिला पुल की छांह में सो रही थी। सड़क पर आते-जाते लोग उससे निर्लिप्त बगल से गुज़रते जा रहे थे। हम भी चुपचाप साइकिलियाते हुए घर आ गए।

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