व्यंग्य जीवन से साक्षात्कार कराता है,जीवन की आलोचना करता है,विसंगतियों, मिथ्याचारों और पाखण्डों का परदाफाश करता है। - परसाई
आज देश भर के अखबारों और पत्रिकाओं में धड़ाधड़ व्यंग्य लिखा जा रहा है। व्यंग्य जिसको परसाई जी स्पिरिट मानते थे अब विधा टाइप कुछ होने की तरफ़ अग्रसर है। पता नहीं विधा हुआ कि नहीं क्योंकि कोई गजट नोटिफ़िकेशन नहीं हुआ इस सिलसिले में। जो भी है इत्ता बहुत है कि व्यंग्य धड़ल्ले से लिखा जा रहा है।
व्यंग्य लिखा जा रहा है तो लेखक भी होंगे, लेखिकायें भी। कई पीढियां सक्रिय हैं लेखकों की। पीढियों से मतलब उमर और अनुभव दोनों से मतलब है। कई उम्रदराज लोगों ने हाल में ही लिखना शुरु किया है। कई युवा ऐसे हैं जिनकी लिखते-लिखते इत्ती धाक हो गयी है कि काम भर के वरिष्ठ हो गये हैं।
लिखैत खूब हैं तो लिखैतों की अपनी-अपनी रुचि के हिसाब से बैठकी भी है। व्यंग्य लेखकों के अलग-अलग घराने भी हैं। जहां चार व्यंग्यकार मिल गये वो अपने बीच में से किसी को छांटकर सबसे संभावनाशी्ल व्यंग्यकार घोषित कर देता है। कभी मूड़ में आया तो किसी ने सालों से लिख रहे किसी दूसरे व्यंग्यकार को व्यंग्यकार ही मानने से इंकार कर दिया। इन्द्रधनुषी स्थिति है व्यंग्य की इस मामले में। कब कौन रंग उचककर दूसरे पर चढ बैठे किसी को पता नहीं।
सभी व्यंग्यकार अलग-अलग बहुत प्यारे लोग हैं लेकिन जहां चार व्यंगैत इकट्ठा हुये वहीं लोगों को व्यंग्य सेनाओं में बदलते देर नहीं लगती।अनेक व्यंग्य के चक्रवर्ती सम्राट हैं व्यंग्य की दुनिया में जिनका साम्राज्य उनके गांव की सीमा तक सिमटा हुआ है।
बहरहाल यह सब तो सहज मानवीय प्रवृत्तियां हैं। हर जगह हैं। व्यंग्य में भी हैं। इन सबके बावजूद अक्सर बहुत बेहतरीन लेखन देखने को मिलता है। सोशल मीडिया के आने के बाद आम लोग भारी संख्या में लिखने लगे हैं । उनमें से कुछ बहुत अच्छा लिखते हैं। उनकी गजब की फ़ैन फ़ालोविंग है। उनके पढ़ने का इंतजार करते हैं लोग। सोशल मीडिया के लोगों के बारे में स्थापित व्यंग्यकारों की शुरुआती धारणा जो भी रही हो लेकिन उनको अनदेखा करना किसी के लिये संभव नहीं है।
कहने का मतलब टॉप टेन और बॉटम टेन की माया में उलझने के बेफ़ालतू चक्कर में पड़कर टाइम खोटी मती करिये। मस्त रहिये। देखिये, पढिये, सुनिये, गुनिये और धांस के लिखिये। जो होगा देखा जायेगा।
आप बुरा मत मानिये भाई यह हम आपसे नहीं कह रहे। यह खुद से कह रहे हैं।
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