Monday, July 11, 2022

जहां भी खायी है ठोकर निशान छोड आये

 करीब 30 साल का साथ है हमारा Shahid Raza से। हमारे पसंदीदा शायर। उनको हम शायर-ए-आजम कहते हैं। तमाम बेहतरीन गजलों के बावजूद उनके आलस और संकोच के चलते अभी तक उनका कोई संग्रह नहीं आया है। इसमें हम लोगों के उकसावे में कमी का भी योगदान रहा। इसी वजह से और लोगों के कलाम भी नहीं आ पाए जैसे घर में बड़े भाई/बहन के शादी न होने तक छोटों के भी नम्बर नहीं आ पाते।

🙂
उन्होंने दो दिन पहले मेरी सबसे पसंदीदा गजल रिकार्ड की। सुनिए आप भी।
जहां भी खायी है ठोकर निशान छोड आये,
हम अपने दर्द का एक तर्जुमान छोड आये.
हमारी उम्र तो शायद सफर में गुजरेगी,
जमीं के इश्क में हम आसमान छोड आये.
किसी के इश्क में इतना भी तुमको होश नहीं
बला की धूप थी और सायबान छोड आये.
हमारे घर के दरो-बाम रात भर जागे,
अधूरी आप जो वो दास्तान छोड आये.
फजा में जहर हवाओं ने ऐसे घोल दिया,
कई परिन्दे तो अबके उडान छोड आये.
ख्यालों-ख्वाब की दुनिया उजड गयी 'शाहिद'
बुरा हुआ जो उन्हें बदगुमान छोड आये.
--शाहिद रजा
शाहजहांपुर

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