Friday, July 15, 2022

डल झील के किनारे चहलकदमी



रात खाना खाकर वापस लौटते हुए डल लेक की तरफ घूम गए। झील अंधेरे में डूबी हुई थी। नदी के शिकारों में रोशनी गुलजार थी। उनके आसपास झील थोड़ी चमक रही थी।
झील सो गई थी। पानी ठहरा हुआ। कोई नाव कभी आती तो पानी कुनमनाकर जग जाता। नाव गुजरने पर फिर करवट बदलकर सो जाता।
सड़क पर इक्का-दुक्का वाहन आते-जाते दिखते। सामने होटलों ही होटल गुलजार थे। चहलपहल। लोग वहां खाना खा रहे थे। मस्तिया रहे थे। गपिया रहे थे।
झील किनारे टहलते हुए तमाम लोग दिखे। कुछ लोग कपड़े भी लगाए हुए थे बेंचने के लिए।
झील किनारे थोड़ी-थोड़ी दूर पर घाट बने हुए हैं। अमेरिका के सैनफ्रांसिस्को में समुद्र किनारे बने घाटों की तरह। यहां रात होने के चलते घाट उतने गुलजार नहीं दिखे।
घाट नम्बर 3 पर कुछ लोग बैठे बतिया रहे थे। हम भी आसन जमा लिए बेंच पर। वो लोग नाविक थे। बोले -'झील घूमने चलना है?'
हमने मना किया। सुबह के लिए स्थगित किया। बतियाना अलबत्ता जारी रहा।
उमर नाव चलाते हैं। मार्च 1990 की पैदाइश। हमारे बड़े बेटे से दो माह बड़े उम्र में। चार बच्चो के पिता हैं।
उमर ने बताया 2014 में भीषण बाढ़ आई थी। सामने दिखते होटलों की पहली मंजिल डूब गई थी। पहला बच्चा हुआ था उन्ही दिनों।
उमर ने बताया करीब 40 घाट हैं डल झील में। अंडाकार आकर की झील का दायरा 24 किलोमीटर है।
तरह-तरह के पैकेज हैं वोटिंग के। उमर रात देर तक नाव चलाते हैं। दिन में देर तक सोते हैं। हमारे लिए अलबत्ता सुबह जल्दी आने को तैयार हैं। नंबर दे दिया। उमर फरिश्ता शिकारा।
हजारों नावें शिकारे चलते हैं डल झील में। 2000 से 35000 हजार तक रेट।
शिकारों की बत्तियां जल रही हैं। लोग अपने कॉटेज में कश्मीर की यादें जमा कर रहे होंगे।
सड़क पर जम्मू-कश्मीर पुलिस की गाड़ी आती है। खड़ी हो जाती है। उनको देखकर उमर कहता है-'बहुत परेशान करते हैं। कोई गाड़ी खड़ी देखी चालान कर दिया। कस्टमर परेशान होता है। गाड़ी खड़ी करना मना है इस तरफ लेकिन खुद घंटों खड़े रहते हैं।'
साथ का आदमी पुलिस के पक्ष में बोलता है-'इनका भी काम है। लोगों को न हटाएं तो जाम लग जाये।'
झील के किनारे की सड़क कम चौड़ी है। डबल होने का प्लान था लेकिन हुई नहीं। इसीलिए गाड़ियां हटवाते रहते हैं पुलिस के लोग। नाव वालों की नजर में यह परेशान करने का काम है।
इस बीच एक बस कहीं से आकर रुकती है। बड़ी, वाल्वो बस। टूरिस्ट उससे हल्ला मचाते हुए उतरते हैं। ड्राइवर के सिवाय सब हुल्लड़ मुद्रा में हैं। ड्राइवर गाड़ी के स्टेयरिंग पर हाथ रखे निर्लिप्त भाव से सामने देख रहा है। सामने सड़क चुपचाप आराम कर रही है।
कुछ देर और बतियाने के बाद हम वापस चल देते हैं।
खरामा-खरामा टहलते हुए होटल आते हैं। होटल छोटा है लेकिन बत्तियां उसको गुलजार कर रही हैं। होटल पैसिफिक। एक दिन का किराया 2750 रुपये। बेटे ने खोज के तय किया। आरामदायक कमरा। कम पैसे में चोखा काम।
होटल की बात से याद आया कि Arvind Tiwari अरविंद तिवारी जी होटलों पर उपन्यास लिख रहे हैं। आधा लिख चुके हैं। पूरा होना बाकी है। जब अमेरिका गए थे तो एकाध बार उनको वीडियो काल करके अमेरिका के नजारे दिखाए हैं। कल भी मन किया डल लेक दिखाएं कुछ दोस्तों को कॉल करके। लेकिन नही दिखाए। रात को जिसको फोन करते वो बगल के थाने में रपट लिखा देता।
होटल पहुंचकर लेटते ही नींद आ गयी। सुबह उठे तो कल की आधी लिखी पोस्ट पूरी की।
कश्मीर में इस समय सुबह हो गई है। आपकी तरफ भी हो गयी होगी। अलबत्ता अंधेरा अभी बरकरार है। थोड़ी देर में अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा। कोई अंधेरा स्थाई नहीं होता।

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