कश्मीर के लिए निकलना अचानक ही हुआ। जाने के पहले सोचा था कि कश्मीर के बारे में पढ़कर और वहां की समस्याओं के बारे में कुछ जानकारी लेकर निकलूँगा। इसके लिए अशोक कुमार पाण्डेय की विस्तृत शोध के बाद लिखी किताब- ‘कश्मीर इतिहास और समकाल‘ पढ़नी शुरू भी की थी। इतिहास, समाज और राजनीति के आईने में कश्मीर समस्या की पड़ताल करती हुई किताब के बारे में प्रसिद्ध लेखक और विचारक डॉ पुरुषोत्तम अग्रवाल ने लिखा था –‘हिन्दी में कश्मीर समस्या पर पहली मुकम्मल किताब।
किताब पढ़नी तो शुरू हुई लेकिन 460 पन्ने की किताब के शुरुआती हिस्से ही पढे जा सके यात्रा के पहले। किताब साथ भी ले गए लेकिन रास्ते में एक पन्ना आगे नहीं पढ़ा जा सका। इस बीच कश्मीर में श्रीनगर , गुलमर्ग और पहलगाम देख भी लिया। उनके बारे में थोड़ा कुछ लिखा भी। बहुत कुछ बाकी है।
यात्रा के दौरान जो मैंने देखा और जैसा महसूस किया वह लिखने की कोशिश कर रहा हूं मैं। मेरे कुछ मित्रों ने अपने अनुभव साझा करते हुए कई बातें लिखीं हैं। उनके अपने अनुभव और विचार होंगे न मैं उनका खंडन कर सकता हूँ न समर्थन। मेरा लिखना वहीं तक सीमित है जैसा मैंने देखा और महसूस किया। हफ्ते भर में किसी इलाके और उसकी खूबियों/खामियों को समझने का भ्रम पालना खामखयाली ही होगी। इसलिए जरूरी नहीं कि आप मेरी बात या नजरिए से सहमत हों।
कश्मीर समस्या के कारणों के बारे में मेरा कुछ कहना ठीक नहीं होगा अलबत्ता जो वहां के लोगों से बातचीत करके एहसास हुआ उससे यह लगा कि समस्या की जड़ में वही बात थी जो अफगानों के शासन के (सन 1753 से 1820) समय सूबेदारों की नियुक्ति के बारे में लारेन्स ने 1895 में अपनी किताब में लिखा था :
“स्वार्थी लोगों को सूबेदार बनाया गया, जिन्होंने कश्मीर के गरीब लोगों से जितना धन कमा सकते थे , कमाया। जल्दी से जल्दी उन्हे धन कमाना था क्योंकि वे नहीं जानते थे कि कब काबुल में कोई और जरुरतमन्द शासकों का करीबी हो जाएगा और उसे सूबेदार नियुक्त कर दिया जाएगा।‘
बहरहाल बात हो रही थी श्रीनगर के डाउनटाउन की। सुबह घूमते हुए आखिरी मंजिल श्रीनगर की जामा मस्जिद और लाल चौक के आसपास के इलाके संवेदनशील माने जाते रहे हैं। अक्सर आतंकवादी गतिवधियों के कारण चर्चा में रहते रहे हैं ये इलाके। लाल चौक में तो एक दिन पहले पानी के बतासे खा चुके थे। अगले दिन जामा मस्जिद के थोड़ा पहले ही सुबह की चाय पी गई। पूछते हुए पहुँच गए जामा मस्जिद।
मस्जिद में भीड़ तो बिल्कुल नहीं थी। बल्कि एक मायने में वीरान टाइप था मस्जिद के आसपास का इलाका। गेट पर ही मस्जिद के बारे में बोर्ड लगा था – Historical Jama Masjid Srinagar (ऐतिहासिक जामा मस्जिद श्रीनगर)| वहीं पर जामिया आटो स्टैंड का बोर्ड भी लगा था। बोर्ड पर शायद आटो के नंबर लिखे थे जो उस आटो स्टैंड पर खड़े हो सकते थे। कुल 17 आटो के नंबर थे। गेट के अंदर घुसते ही आदमियों का वजूखाना था। वजूखाने के बंद गेट के बाहर दो महिलायें और एक मर्द बैठे बतिया रहे थे। आदमी मास्क लगाए था। महिलायें अपनी धोती और हथेली से मुंह ढंके हुए गप्परत थीं। मर्द और औरत के बीच रखी झाड़ू आराम कर रही थी।
मस्जिद के आसपास 278 दुकाने बनी हैं। किराये पर उठी इन्हीं दुकानों और लोगों द्वारा दिए चंदे से मस्जिद के रखरखाव का काम होता है।
सुबह के समय ज्यादातर दुकाने बंद थीं। केवल एक दुकानवाला अपनी दुकान लगाने के लिए साफ-सफाई कर रहा था। दुकान मस्जिद के एकदम सामने थी।
मस्जिद का मुख्यद्वार बंद था। दुकान वाले से पूछा तो पता चला कि नौ बजे के बाद खुलती है मस्जिद जब उसके देख-रेख करने वाले आ जाते हैं। एक आदमी आया मस्जिद का दरवाजा खोला और अंदर चला गया। हम भी लपके। लेकिन तब तक फिर बंद हो गया दरवाजा। बताया गया साढ़े नौ बजे खुलेगा।
हमको मस्जिद देखने की ललक से साथ यह चिन्ता भी थी कि होटल में नाश्ता न खतम हो जाए। होटल को फोन किया –‘दस बजे तक आएंगे। नाश्ता रख लेना।‘
होटल वाले ने भी हां कह दिया। हम इत्मीनान से मस्जिद खुलने का इंतजार करते रहे।
साढ़े नौ बजे मस्जिद खुली। अंदर जाकर देखी। पूरी मस्जिद देवदार के पेड़ के तनो के खंभों (कुल 378) और लकड़ी की छत पर टिकी थी। देवदार के पेड़ के तनों पर न कोई जोड़ और न कोई कील। सात सौ साल पहले से टिके हैं जस के तस। तनों की गोलाई पाँच फुट(346) और छह फुट(32) थी। खंभों की ऊंचाई 21 फुट (346 खंभे) और 48 फुट (32 खंभे) है।
फर्श पर कालीन बिछा था। एक हिस्से में महिलाओं के नमाज पढ़ने का इंतजाम था। आँगन में पानी का फव्वारा तो नहीं चल रहा था लेकिन पानी पूरा भरा था। पानी के आसपास कबूतर मटरगस्ती कर रहे थे।
मुखयद्वार पर मस्जिद का जो विवरण अंग्रेजी में लिखा था उसका हिन्दी अनुवाद इस तरह है:
1. जामा मस्जिद ,श्रीनगर सन 1394 में सुल्तान सिकंदर शाह कश्मीरी शाहगिरी सुल्तान जैनउलाबदीन के पिता (बुधशाह) द्वारा बनवाई गई।
2. मस्जिद का आकार 384 फुट x 381 फुट है।
3. मस्जिद का क्षेत्रफल 146000 वर्ग फुट (27 कनाल ) है।
4. दीवार की चौड़ाई 5 फुट और 4 फुट है।
5. जामा मस्जिद का निर्माण भव्य तरीके से बनाए गए 378 देवदार की लकड़ी के स्तंभों पर स्थित लकड़ी की छत पर हुआ। इस 378 स्तंभों में 346 स्तम्भ की 21 फुट और घेरा 5 फुट है बाकी 32 स्तंभों की ऊंचाई 48 फुट और घेरा 6 फुट है।
6. मस्जिद में 33 फुट x 34 फुट आकार का फव्वारा भी है जिसका उपयोग वजू के लिए भी किया जाता है।
7. जामा मस्जिद में एक साथ 33333 लोग नमाज पढ़ सकते हैं।
8. मस्जिद की मेहराब की सजावट कीमती ग्रेनाइट से की गई है जिनमें सर्वशक्तिमान अल्लाह के 99 गुण बताएं गए हैं।
9. शुक्रवार को जामा मस्जिद में एक बार नमाज पढ़ना दूसरी मस्जिदों में 500 बार नमाज पढ़ने के बराबर फल देने वाला है।
10. हर वर्ष रमजान के पवित्र महीने के आखिरी शुक्रवार को लाखों लोगों यहां नमाज पढ़ते हैं।
11. मस्जिद में तीन बार आग लगी। आग लगने के बाद निम्न लोगों ने मस्जिद का पुनर्निर्माण करवाया:
अ. सुल्तान हसन शाह –सन में 1480
ब. जहांगीर शाह अबुल मुजफ्फर –सन 1620 में
स. औरंगजेब आलमगीर शाह - सन 1672 में
मस्जिद में मौजूद आदमी ने मुझे मस्जिद घुमाई। उसकी खूबियों का बखान किया। सात सौ साल पुरानी इमारत के अभी तक महफूज रहने की बात कही।
उसकी बात की याद करते हुए मुझे अभी हाल ही में बुंदेलखंड की एक प्रसिद्ध सड़क के एक हिस्से के उद्घाटन के पाँच दिन बाद धंस जाने की खबर याद आई। तकनीक ने बहुत उन्नति की है लेकिन लालच भी कम नहीं बढ़ा है।
थोड़ी देर और मस्जिद में बिताकर हम बाहर आ गए। आटो स्टैंड पर आटो किया। होटल तक के उसने सौ रुपए मांगे। हम बैठ गए। होटल के पास उतरकर पैसे दिए। उसने पूछा कश्मीर कैसा लगा ? हमने कहा –बहुत अच्छा , बहुत खूबसूरत।
वह हमारी तारीफ से खुश होकर खुदा हाफिज कहते हुए चला गया। हम भी लपके अंदर। अंदर नाश्ता हमारा इंतजार कर रहा था।
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