बॉटैनिकल गार्डेन देखने के बाद पास ही स्थित शालीमार बाग देखने गए। खूबसूरत शालीमार बाग श्रीनगर का मुकुट कहलाता है। मुगल बादशाह जहांगीर ने अपनी रानी नूरजहां को खुश करने के लिए जहांगीर ने पुराने बाग को शाही बगीचे में तब्दील करवाकर शालीमार बाग बनवाया। 1619 में। रानी । राजा-महाराजाओं के पास पैसे की कोई कमी तो होती नहीं थी। न उनको गैस सिलेंडर खरीदना होता है न बच्चों की फीस भरनी पड़ती है। इफ़रात में पैसा होता है उनके पास। अपनी रानियों को खुश करने के लिए बाग-बगीचे, महल-चौबारे बनवाते रहते थे।
बगीचे को शाही बगीचे में तब्दील करवाने के बाद नया नाम रखा –फराह बक्श (आनंद प्रदान करने वाला)। बाद में 1630 में मुगल बादशाह शाहजहाँ के गवर्नर जफ़रखान ने इसको और बड़ा करवाया और नाम रखा -फैज बक्श (खूबसूरत)। बाद में भी यह बाग खास लोगों की आरामगाह और तफरीह का अड्डा रहा। गर्मी के दिनों में शहंशाह जहांगीर अपने पूरे लाव-लश्कर समेत अपना टीम- टामड़ा लेकर कश्मीर चले आते थे। यहीं उनका दरबार लगता था। शालीमार बाग में ही उनकी रिहाईश होती थी।
इस बाग में चार स्तर पर बगीचे बने हैं एवं पानी बहता है। इसकी जलापूर्ति निकटवर्ती हरिवन बाग से होती है। सबसे ऊंचे बना बगीचा , जो कि नीचे से दिखाई नहीं देता है, वह हरम की महिलाओं हेतु बना था। यह बगीचा गर्मी और एवं पतझड़ में सर्वोत्तम कहलाता है। इस मौसम में पत्तों का रंग बदलता है एवं अनेकों फूल खिलते हैं।
राजा-महाराजाओं के लिए बनवाया गया बगीचा फिलहाल आम जनता के किए खुला है और शालीमार बाग कहलाता है। इसी की देखा देखी दिल्ली और लाहौर में शालीमार बाग बने। इसे देखने की फीस केवल 24/- है।
बगीचा बहुत खूबसूरत है। बीचो-बीच पानी के फ़ौवारे चलते रहते हैं। आगे से पीछे जाते हुए ऊंचाई बढ़ती जाती है। खूबसूरत बाग की खूबसूरती को देखने और उसके साथ अपनी यादें सँजोने के लिए देश-दुनिया से लोग आते रहते हैं। देश के हर हिस्से के लोग वहाँ दिखे। आपस में बतियाते हुए , फ़ोटो खिचवाते हुए , हँसते-खिलखिलाते , मस्तियाते।
तमाम लोग पानी के पास बैठे बतिया रहे थे। कश्मीरी ड्रेस में फ़ोटो खींचकर तुरंत मुहैया करवाने वाले भी वहां पर्याप्त मात्रा में थे।
बगीचे में खूब सारे सुंदर फूल और पौधे थे। चिनार का पेड़ कश्मीर की खासियत है। वहां एक चिनार का पेड़ दिखा जिसकी उम्र लगभग 365 साल थी। उस पर उसका विवरण लिखा था –
“मैं चिनार हूँ। मैं मुगलों के शालीमार बाग में 365 साल से खड़ा हूँ। मेरे ऊंचाई लगभग 165 फुट है । मेरा बड़ा मुकुट और शानदार शाखाएं हैं। इस शानदार स्थापत्य और प्रेम के प्रतीक का मैं प्राकृतिक गवाह हूँ। लोग मेरे चारों तरफ आराम करते हैं और अपने अनुभव साझा करते हैं जिनको मैं अपनी पत्तियों और शाखाओ में सुरक्षित रखता हूँ। मेरे अलावा भी कश्मीर घाटी में अनेक मजबूत चिनार के पेड़ हैं। अगर आप और चिनार के पेड़ देखना चाहते हैं तो दूसरे मुगल उद्यान में देखें।“
चिनार के पेड़ का यह बयान पढ़ने के बाद हमने तमाम चिनार के पेड़ देखे और 365 साल की उम्र वाले 165 फुटे चिनार को याद किया।
घूमते-घूमते और लोगों को देखते-देखते अपन यहां-वहां टहलते रहे। कुछ लोग फव्वारे के पास जाकर फ़ोटो खिंचा रहे थे। तमाम लोग उस जगह पर फ़ोटोबाजी कर रहे थे जहां कभी मुगल महारानियाँ रहती होंगी। उस समय आम जनता का जहां प्रवेश तक वर्जित रहा होगा वहां आज आम लोग खिलखिलाते हुए फ़ोटो खिंचा रहे थे।
वहीं एक जोड़ा दिखा। नया शादी-शुदा। वे आपस में एक दूसरे के फ़ोटो खींच रहे थे। लड़की अलग-अलग पोज में फ़ोटो खिचा रही थी। लड़का खींच रहा था। कुछ देर में वे सेल्फ़ी मोड में अपने फ़ोटो खींच रहे थे। हमको वहां से गुजरते देख उन्होंने हमसे अपने फ़ोटो खींचने के लिए कहा –“अंकल थोड़ा फ़ोटो ले लेंगे?”
अब अंकल को फ़ोटो लेने में क्या एतराज? उनके तमाम पोज में फ़ोटो लिए। एक-दूसरे के पास आते हुए, दूर जाते हुए , चश्मा लगाकर ,चश्मा उतार कर , गले लगाकर, सर टिकाकर। मतलब पूरी शूटिंग ही हो गई। जब इतना हुआ तो हमने उनसे अनायास कहा –“आपस में एक दूसरे को प्यार करते हुए भी खिंचा लो फ़ोटो।“
हमारी बात सुनते ही या शायद सुनने के पहले ही लड़की ने लड़के का गाल चूम लिया। एक बार चश्मा लगाकर और फिर एक बार बिना चश्मे के। प्रफुल्लित मुख लड़की ने हमको फ़ोटो खींचने के लिए धन्यवाद दिया। हमने धन्यवाद ले लिया और लड़के से कहा –“तुम क्यों पीछे रहो भाई? तुम ही खिंचा लो फ़ोटो।“
लड़के ने भी लड़की को चूमते हुए फ़ोटो खिंचवाया। सिर्फ एक बार। इसके बाद शर्मा गया। झिझकते हुए धन्यवाद कहा और मोबाइल ले लिए।
उस जोड़े के फ़ोटो सेशन में लड़की उत्साही और बिंदास थी। लड़का सकुचाया हुआ और झिझकता रहा। इससे क्या कोई निष्कर्ष निकाला जा सकता है? क्या यह कहा जा सकता है कि लड़के सार्वजनिक रूप में प्रेम प्रदर्शन में शर्मीले होते हैं।
करीब घंटे भर बाग में टहलने के बाद और वहाँ के लोगों और खूबसूरती को देखने के बाद हम बाहर निकल आए।
कश्मीरी गेट के एक दम पास एक बुजुर्ग झालमूढ़ी बेंच रहे थे। नाम बताया इस्लाम। उम्र 75 पार। अगर राजनीति में होते तो मार्गदशक मण्डल में शामिल हो जाते। लेकिन आम लोगों के लिए मार्गदर्शक मण्डल कहां होता है। आम लोगों के लिए जब तक जीना है , कमाना है, काम करना है लागू होता है। मेराज फैजाबादी का शेर है :
‘मुझे थकने नहीं देता ये जरूरत का पहाड़,
मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते। “
बेतिया के रहने वाले इस्लाम ने अपने बारे में बताया –“हमको हमारा बड़ा बाप (पिता के बड़े भाई) लेकर आया था। छोटे थे तब। एक पैसा का सिक्का चलता था उस समय। तबसे छह महीने इधर रहते हैं छह महीने उधर बेतिया में। नवंबर में निकल जायेंगे । सर्दी गिरेगी तब। बेतिया में ताला मारा तो इधर आ गया। इधर ताला लगाएगा तो उधर निकल जाएगा। गांव के के बहुत आदमी साहब लेकिन हम अकेले ही रहते हैं। ऐसे तो यहाँ किराये के चार-पाँच हजार लेते हैं लेकिन हम हजार रुपए किराये के कमरे में रहते हैं। छोटा रूम में गुजारा कर रहे हैं।“
परिवार के बारे में पूछने पर बताया-“परिवार तो गुजर गया साहब। बच्चे भी मार गए। बीबी भी मर गया। दो गए भी मार गया। हम ही बच गया हूँ अकेला।“
बात करते हुए इस्लाम ग्राहकों को भी निपटाते जा रहे थे। एक आदमी को चालीस रुपया दाम बताया। उसने तीस रुपए में देने के लिए कहा। उन्होंने पूछा –“तीस रुपया में कितना पत्ता चाहिए? ले लो।“
एक झटके में 25% दाम गिरा दिए इस्लाम में। कोई प्रोफेशल कोर्स किया हुआ मैनेजर होता तो ऐसा करने के पहले हानि-लाभ का घंटों जोड़-घटाना-गुणा-भाग करता।
झालमूढ़ी बनाते हुए इस्लाम अपने सामान की पब्लिसटी भी करते जा रहे थे। एक चम्मच ग्राहक को खिलाते हुए बोले –“ये इस मौसम में इसको डाउन(मुलायम) होना चाहिए लेकिन खा के देखो कुरमुरा है।‘
ग्राहक से पूछते-बताते भी जा रहे थे इस्लाम –“सरसों के तेल में खाएगा कि नीबू? मिर्ची तेज कि हल्का? प्याज पहले तो डाला है।“
किसी ग्राहक के द्वारा झालमूडी के दाम पर सवाल उठाने पर बोले –“साहब गरम पानी मिलता है होटल में 20 रुपए का। इतना दूध होता है इतना चीनी होता है (उसमे तो पेट भी नहीं भरता)। ये (झालमूडी) तो पेट भरने वाला चीज है।
थोड़ी देर और इस्लाम से बतियाकर हम फिर अगले बाग की तरफ बढ़ गए।
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