सबेरे जल्दी नींद खुल गयी। 5 बजे।'नींद खुल गयी' से ऐसा लगता है न कि
जैसे नींद को बाँध के रखा गया हो सोने से पहले। सुबह खूंटा तुड़ा लिया हो
अगली ने।
नींद खुलते ही पहले मोबाइल खोला फिर आँख।मोबाइल आजकल ज्यादातर लोगों के सबसे करीबी होते हैं। चिपक के सोते हैं लोग मोबाइल से। आगे नहीं लिखेंगे मोबाइल के बारे में।आप खुदै समझ लीजिये।
बाहर कौआ कांव-कांव बोल रहा है।चिड़िया भी कोई चिं चिं चिं कर रही है। बोल तो और भी पक्षी रहे हैं लेकिन उनकी आवाज बूझ नहीं पा रहे हैं।हम अपने आसपास के पक्षी और पेड़ों के बारे में बहुत कम जानते हैं। हमारे अहाते में ही कई पेड़ हैं जिनके नाम अपन को नहीं पता। लेकिन कोई शर्मिंदगी नहीं। सब जानने का ठेका हमने ही लिया है क्या? गूगल को काहे के पैसे मिलते है। वो रखे इस सबका हिसाब।
सुबह जगकर स्मार्टफोन पर सर्फिंग करने लगे।सोचने लगे कि पहले की ऋषि मुनि ब्राह्ममूहूर्त में जग कर क्या करते होंगे।पक्का नेटसर्फिंग करते वे देवताओं से वरदान की डील करते होंगे।न जाने क्या-क्या फ़ाइल आती-जाती होंगी। होंगे।उनकी तपस्या भंग करने के लिए अप्सराएं उनसे चैट करती होंगी।
क्या पता विश्वामित्र ने त्रिशंकु को 'विनजिप' करके फ़ाइल में स्वर्गलोक भेजा हो। वहां फ़ाइल पूरी डाउनलोड करने के पहले ही स्वर्ग का नेट कनेक्शन कट गया हो।डीसी हो गया हो। इधर विश्वामित्र के यहाँ वह फ़ाइल डिलीट हो गयी हो।स्वर्ग वालों ने त्रिशंकु की फ़ाइल नेट कनेक्शन के न होने के चलते गुरुत्वबल से वापस भेजनी चाही हो।लेकिन देवताओं को पता ही नहीं रहा होगा कि इसके लिए रॉकेट चाहिए होता है।पता होता तो अपने यहां एक ठो 'नासा' या फिर 'इसरो' खोलते और रॉकेट से त्रिशंकु को वापस भेज देते।
बताइये देवताओं के तकनीकी रूप से पिछड़ेपन के चलते एक राजा बेचारा एक अटकी हुई फ़ाइल बनकर रह गया।
कहने का मतलब यह कि हमारे यहाँ महाभारत काल में विज्ञान इतना उन्नत था कि आदमी को बिना रॉकेट और यान के सीधे स्वर्ग भेज देते थे। अगर उस समय की तकनीक अमेरिका वालों के पास होती तो आज कल्पना चावला ज़िंदा होती। बहुत उन्नत विज्ञान था महाभारत काल में। भौत भौत। इतना कि जितने की आप कल्पना नहीं कर सकते।
हम भी देखिये, किधर फंस गए। हम आँख खुलने के बाद के किस्से बता रहे थे। आँख खुलने के बाद हम करवटें बदलते हुए बारी बारी से वामपंथी, कट्टरपन्थी ( दक्षिणपंथी )और सेकुलर होते रहे।मतलब बाएं,दायें और सीधे लेटते रहे।
पहले हम आम इंसान की तरह पेट के बल भी लेटते थे। लेकिन एक दिन पेट के बल छिपकली मुद्रा में लेटे तो न जाने क्या हुआ कि पल्स रेट 180 पहुंच गया। घण्टे भर ईसीजी,बीपी और कार्डियोलॉजिस्ट होता रहा। बाद में हफ्ते भर ट्रेडमिलटेस्ट, इको और न जाने क्या-क्या होता रहा। लेकिन कुछ निकला नहीं।
इतना कुछ होने के बाद भी कुछ निकला नहीं। 5000 ठुक गए बस। पहले का जमाना होता तो ऋषि मुनि नाड़ी पर हाथ रखकर बता देते -'मस्त रहो'।फीस के नाम पर केवल कन्दमूल फल में काम चल जाता।बहुत उन्नत समय था। बहुत ज्ञानी थे अपन के पूर्वज। ये आज के पश्चिम के वैज्ञानिक लोगों का ज्ञान उनके ज्ञान के सामने उचक- उचक कर हैण्डपम्प बोले तो चांपाकल से पानी भरता था।
अक्सर हम अपने अतीत के प्रति मोह ग्रस्त होते हैं। वह समय बहुत अच्छा था।मधुर था। अतीत वैसे भी हमेशा अच्छा लगता है। बुरा बीता तो यह लगता है कि बुरा समय बीत गया, अच्छा बीता तो यह सोचकर कि कितना सुहाना बीता।
कथाकार अखिलेश ने अपनी एक किताब में यह सवाल उठाते हुए पूछा है कि कितने लोग हैं जो अपने अतीत में पूरा का पूरा लौटना चाहेंगे। पूरा का पूरा मतलब पूरे के पूरे उस समय में जिसको वे ' मिस ' करते हैं। ऐसा करने के लिए अपना आज का सारा तामझाम छोड़कर उस समय में जाना होगा जिस समय को वे सबसे बेहतर मानते हैं।
आपका तो पता नहीं लेकिन कम से कम मैं अपने ऐसे किसी अतीत को इतना खुशनुमा नहीं पाता जिसके लिए मैं अपना वर्तमान छोड़ना चाहूँ। अभी मुझे वर्तमान में बहुत सारे काम करने हैं। मेरा बच्चा अभी हॉस्टल गया है उसकी खैरियत पूछनी है,पत्नी को फोन करना है, दोस्तों से बात करनी है, थर्मस में रखी चाय पीनी है।सबसे पहले यह स्टेट्स पूरा करना है।
मेरा कोई अतीत इतना हसीन नहीं जिसको पाने के लिए मैं अपना यह खूबसूरत झंझट वाला वर्तमान त्यागना चाहूँ।और जब मैं किसी स्वर्णिम अतीत में नहीं जाना चाहता तो मेरा देश भी नहीं जा पायेगा। अगर जाना चाहेगा तो हमको छोड़कर जाएगा और लटक जाएगा त्रिशंकु की तरह। पूरी फाइल अतीत में डाउनलोड ही न होगी। वहां का कम्प्यूटर बताएगा-'अनूप शुक्ल वाली फ़ाइल मिसिंग है।आपरेशन पूरा नहीं हो सकता।'
देवभाषा में कहें तो:
बोल सियावर रामचन्द्र की जय। थर्मस में रखी हुई चाय की जय।
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10207106212987177
नींद खुलते ही पहले मोबाइल खोला फिर आँख।मोबाइल आजकल ज्यादातर लोगों के सबसे करीबी होते हैं। चिपक के सोते हैं लोग मोबाइल से। आगे नहीं लिखेंगे मोबाइल के बारे में।आप खुदै समझ लीजिये।
बाहर कौआ कांव-कांव बोल रहा है।चिड़िया भी कोई चिं चिं चिं कर रही है। बोल तो और भी पक्षी रहे हैं लेकिन उनकी आवाज बूझ नहीं पा रहे हैं।हम अपने आसपास के पक्षी और पेड़ों के बारे में बहुत कम जानते हैं। हमारे अहाते में ही कई पेड़ हैं जिनके नाम अपन को नहीं पता। लेकिन कोई शर्मिंदगी नहीं। सब जानने का ठेका हमने ही लिया है क्या? गूगल को काहे के पैसे मिलते है। वो रखे इस सबका हिसाब।
सुबह जगकर स्मार्टफोन पर सर्फिंग करने लगे।सोचने लगे कि पहले की ऋषि मुनि ब्राह्ममूहूर्त में जग कर क्या करते होंगे।पक्का नेटसर्फिंग करते वे देवताओं से वरदान की डील करते होंगे।न जाने क्या-क्या फ़ाइल आती-जाती होंगी। होंगे।उनकी तपस्या भंग करने के लिए अप्सराएं उनसे चैट करती होंगी।
क्या पता विश्वामित्र ने त्रिशंकु को 'विनजिप' करके फ़ाइल में स्वर्गलोक भेजा हो। वहां फ़ाइल पूरी डाउनलोड करने के पहले ही स्वर्ग का नेट कनेक्शन कट गया हो।डीसी हो गया हो। इधर विश्वामित्र के यहाँ वह फ़ाइल डिलीट हो गयी हो।स्वर्ग वालों ने त्रिशंकु की फ़ाइल नेट कनेक्शन के न होने के चलते गुरुत्वबल से वापस भेजनी चाही हो।लेकिन देवताओं को पता ही नहीं रहा होगा कि इसके लिए रॉकेट चाहिए होता है।पता होता तो अपने यहां एक ठो 'नासा' या फिर 'इसरो' खोलते और रॉकेट से त्रिशंकु को वापस भेज देते।
बताइये देवताओं के तकनीकी रूप से पिछड़ेपन के चलते एक राजा बेचारा एक अटकी हुई फ़ाइल बनकर रह गया।
कहने का मतलब यह कि हमारे यहाँ महाभारत काल में विज्ञान इतना उन्नत था कि आदमी को बिना रॉकेट और यान के सीधे स्वर्ग भेज देते थे। अगर उस समय की तकनीक अमेरिका वालों के पास होती तो आज कल्पना चावला ज़िंदा होती। बहुत उन्नत विज्ञान था महाभारत काल में। भौत भौत। इतना कि जितने की आप कल्पना नहीं कर सकते।
हम भी देखिये, किधर फंस गए। हम आँख खुलने के बाद के किस्से बता रहे थे। आँख खुलने के बाद हम करवटें बदलते हुए बारी बारी से वामपंथी, कट्टरपन्थी ( दक्षिणपंथी )और सेकुलर होते रहे।मतलब बाएं,दायें और सीधे लेटते रहे।
पहले हम आम इंसान की तरह पेट के बल भी लेटते थे। लेकिन एक दिन पेट के बल छिपकली मुद्रा में लेटे तो न जाने क्या हुआ कि पल्स रेट 180 पहुंच गया। घण्टे भर ईसीजी,बीपी और कार्डियोलॉजिस्ट होता रहा। बाद में हफ्ते भर ट्रेडमिलटेस्ट, इको और न जाने क्या-क्या होता रहा। लेकिन कुछ निकला नहीं।
इतना कुछ होने के बाद भी कुछ निकला नहीं। 5000 ठुक गए बस। पहले का जमाना होता तो ऋषि मुनि नाड़ी पर हाथ रखकर बता देते -'मस्त रहो'।फीस के नाम पर केवल कन्दमूल फल में काम चल जाता।बहुत उन्नत समय था। बहुत ज्ञानी थे अपन के पूर्वज। ये आज के पश्चिम के वैज्ञानिक लोगों का ज्ञान उनके ज्ञान के सामने उचक- उचक कर हैण्डपम्प बोले तो चांपाकल से पानी भरता था।
अक्सर हम अपने अतीत के प्रति मोह ग्रस्त होते हैं। वह समय बहुत अच्छा था।मधुर था। अतीत वैसे भी हमेशा अच्छा लगता है। बुरा बीता तो यह लगता है कि बुरा समय बीत गया, अच्छा बीता तो यह सोचकर कि कितना सुहाना बीता।
कथाकार अखिलेश ने अपनी एक किताब में यह सवाल उठाते हुए पूछा है कि कितने लोग हैं जो अपने अतीत में पूरा का पूरा लौटना चाहेंगे। पूरा का पूरा मतलब पूरे के पूरे उस समय में जिसको वे ' मिस ' करते हैं। ऐसा करने के लिए अपना आज का सारा तामझाम छोड़कर उस समय में जाना होगा जिस समय को वे सबसे बेहतर मानते हैं।
आपका तो पता नहीं लेकिन कम से कम मैं अपने ऐसे किसी अतीत को इतना खुशनुमा नहीं पाता जिसके लिए मैं अपना वर्तमान छोड़ना चाहूँ। अभी मुझे वर्तमान में बहुत सारे काम करने हैं। मेरा बच्चा अभी हॉस्टल गया है उसकी खैरियत पूछनी है,पत्नी को फोन करना है, दोस्तों से बात करनी है, थर्मस में रखी चाय पीनी है।सबसे पहले यह स्टेट्स पूरा करना है।
मेरा कोई अतीत इतना हसीन नहीं जिसको पाने के लिए मैं अपना यह खूबसूरत झंझट वाला वर्तमान त्यागना चाहूँ।और जब मैं किसी स्वर्णिम अतीत में नहीं जाना चाहता तो मेरा देश भी नहीं जा पायेगा। अगर जाना चाहेगा तो हमको छोड़कर जाएगा और लटक जाएगा त्रिशंकु की तरह। पूरी फाइल अतीत में डाउनलोड ही न होगी। वहां का कम्प्यूटर बताएगा-'अनूप शुक्ल वाली फ़ाइल मिसिंग है।आपरेशन पूरा नहीं हो सकता।'
देवभाषा में कहें तो:
"अपि स्वर्णमयी अतीत न में रोचतेअतीत कितना भी स्वर्णिम हो लेकिन उसमें जाना मुझे पसंद नहीं। वर्तमान और आज मेरे लिए स्वर्ग से भी महान हैं।
वर्तमान: अद्य च स्वर्गादपि गरीयसी।"
बोल सियावर रामचन्द्र की जय। थर्मस में रखी हुई चाय की जय।
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10207106212987177
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