आजकल देश सेवा के काम में बहुत बरक्कत है। जिसे देखो वह देश सेवा की लाइन में लगा हुआ है। लम्बी लाइन लगी है। देश सेवा का काम जिसको मिल जाता है वह अपने आप को धन्य समझता है। जिसको नहीं मिलता वह उदास हो जाता है।
बड़े-बड़े जुगाड़ लगते हैं। बहुत पैसा ठुकता है तब कहीं देश सेवा का टिकट मिलता है। टिकट मिलने से ही देश सेवा का काम नहीं मिलता। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि देश सेवा का टिकट तो मिल जाता है लेकिन काम नहीं मिलता। सब पैसे डूब जाते हैं। आदमी कुछ दिन उदास रहता है। लेकिन फ़िर अगला देश सेवा का काम देखता है। बहुत पहले से लाइन में लग जाता है। कोशिश करता है कि इस बार जैसे ही देश सेवा का काम निकले वह उसे हासिल कर ले। देश की भरपूर सेवा करके अपना और परिवार का कल्याण करे। साथ में नाम भी रोशन हो। देश के इतिहास में नाम दर्ज हो सो अलग से।
लेकिन देश सेवा के काम में कम्पटीशन बहुत तगड़ा है। आदमी पहुंच वाला हो, दबंग हो, लोकप्रिय हो, अच्छा वक्ता हो, मेहनती हो, लोग उसकी बातों पर भरोसा करते हों तभी उसको देश सेवा का काम मिल सकता है। यह सब गुण तो देश में बहुतों के पास होते हैं लेकिन इसके बाद सबसे जरूरी चीज है पैसा। अंधाधुंध पैसा चाहिये देश सेवा का काम हासिल करने के लिये। जितना गुड़ डालोगे उतना मीठा होगा जैसा ही है देश सेवा का काम। ज्यादा पैसा बड़ा काम। शुरुआत में कभी-कभी तो पूरा पैसा डूब जाता है। कमजोर दिल के देश सेवक निराश हो जाते हैं। देश सेवा का काम छोड़ देते हैं। लेकिन सच्चे देश सेवक लगे रहते हैं। वही लोग देश सेवा का काम हासिल करते हैं। एक बार देश सेवा का काम मिल जाने पर सब नुकसान पूरा हो जाता है। पैसा वसूल हो जाता है। नाम रोशन होता है। फ़ुटपाथ पर जिन्दगी बिताने वाला इतिहास की किताबों में कबड्डी खेलने लगता है।
लेकिन पैसा बहुत लगता है इस देश सेवा के काम में। करोड़ों -अरबों फ़ुंक जाते हैं देखते-देखते। देश सेवा के काम के लिये इतना पैसा फ़ुंकना बड़ी फ़िजूल खर्ची है। इसके लिये सरकार को कुछ उपाय सोचना चाहिये।
एक उपाय तो यह है कि देश सेवा के काम में एफ़.डी.आई को मंजूरी दे दी जाये। हमें कुछ पता नहीं है एफ़.डी.आई. के बारे में। लेकिन सुनते हैं कि जहां पैसा ज्यादा लगता है वहां सरकार एफ़.डी.आई. ले आती है। हर सेवा क्षेत्र में एफ़.डी.आई. आ जाती है। जिधर देखो उधर एफ़.डी.आई. का हल्ला है। फ़िर देश सेवा के काम भी एफ़.डी.आई. लाने में क्या हर्जा है भाई।
वैसे भी तो हर चुनाव में हर पार्टी दूसरी पर आरोप लगाती है कि उससे विदेशी पूंजी का इस्तेमाल किया। प्रवासी लोग भी तो पैसा लगाते हैं। सरकारी ठेकों में दलाल को मंजूरी मिलने ही वाली है। फ़िर आन दो विदेशी पूंजी देश सेवा के काम में भी। लगान दो विदेशियों को खुल्लम खुल्ला पैसा देश सेवा में।
देश सेवा के काम में एफ़.डी.आई. होने से एक तो फ़ायदा यह होगा कि फ़िर विदेशी पूंजी का हल्ला नहीं मचेगा। दूसरे अपने देश की पूंजी चुनाव में जो फ़ुंकती है वह बचेगी। देश का पैसा बचेगा। विदेशी पूंजी से बैनर, पोस्टर बनेंगे तो देश के लोगों को और रोजगार मिलेगा।
कुछ लोगों को शायद एतराज हो सकता है कि देश सेवा के काम में विदेशी पूंजी का दखल खतरनाक है। देश के लिये खतरा है। तो भैये हमारा कहना यह है कि अभी कौन विदेशी पूंजी कम गदर काटे है। अभी वह चोरी से आती है तो गड़बड़ करती है। एफ़.डी.आई. के रास्ते आयेगी तो अपना घर समझकर आयेगी। उसको देश की चिन्ता होगी और वह यहां मन लगाकर काम करेगी।
कुल मिलाकर हमको तो यही लगता है देश सेवा के धड़ल्लेदार विकास के लिये देशसेवा के काम में एफ़.डी.आई. बहुत जरूरी है। आपको क्या लगता है?
बड़े-बड़े जुगाड़ लगते हैं। बहुत पैसा ठुकता है तब कहीं देश सेवा का टिकट मिलता है। टिकट मिलने से ही देश सेवा का काम नहीं मिलता। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि देश सेवा का टिकट तो मिल जाता है लेकिन काम नहीं मिलता। सब पैसे डूब जाते हैं। आदमी कुछ दिन उदास रहता है। लेकिन फ़िर अगला देश सेवा का काम देखता है। बहुत पहले से लाइन में लग जाता है। कोशिश करता है कि इस बार जैसे ही देश सेवा का काम निकले वह उसे हासिल कर ले। देश की भरपूर सेवा करके अपना और परिवार का कल्याण करे। साथ में नाम भी रोशन हो। देश के इतिहास में नाम दर्ज हो सो अलग से।
लेकिन देश सेवा के काम में कम्पटीशन बहुत तगड़ा है। आदमी पहुंच वाला हो, दबंग हो, लोकप्रिय हो, अच्छा वक्ता हो, मेहनती हो, लोग उसकी बातों पर भरोसा करते हों तभी उसको देश सेवा का काम मिल सकता है। यह सब गुण तो देश में बहुतों के पास होते हैं लेकिन इसके बाद सबसे जरूरी चीज है पैसा। अंधाधुंध पैसा चाहिये देश सेवा का काम हासिल करने के लिये। जितना गुड़ डालोगे उतना मीठा होगा जैसा ही है देश सेवा का काम। ज्यादा पैसा बड़ा काम। शुरुआत में कभी-कभी तो पूरा पैसा डूब जाता है। कमजोर दिल के देश सेवक निराश हो जाते हैं। देश सेवा का काम छोड़ देते हैं। लेकिन सच्चे देश सेवक लगे रहते हैं। वही लोग देश सेवा का काम हासिल करते हैं। एक बार देश सेवा का काम मिल जाने पर सब नुकसान पूरा हो जाता है। पैसा वसूल हो जाता है। नाम रोशन होता है। फ़ुटपाथ पर जिन्दगी बिताने वाला इतिहास की किताबों में कबड्डी खेलने लगता है।
लेकिन पैसा बहुत लगता है इस देश सेवा के काम में। करोड़ों -अरबों फ़ुंक जाते हैं देखते-देखते। देश सेवा के काम के लिये इतना पैसा फ़ुंकना बड़ी फ़िजूल खर्ची है। इसके लिये सरकार को कुछ उपाय सोचना चाहिये।
एक उपाय तो यह है कि देश सेवा के काम में एफ़.डी.आई को मंजूरी दे दी जाये। हमें कुछ पता नहीं है एफ़.डी.आई. के बारे में। लेकिन सुनते हैं कि जहां पैसा ज्यादा लगता है वहां सरकार एफ़.डी.आई. ले आती है। हर सेवा क्षेत्र में एफ़.डी.आई. आ जाती है। जिधर देखो उधर एफ़.डी.आई. का हल्ला है। फ़िर देश सेवा के काम भी एफ़.डी.आई. लाने में क्या हर्जा है भाई।
वैसे भी तो हर चुनाव में हर पार्टी दूसरी पर आरोप लगाती है कि उससे विदेशी पूंजी का इस्तेमाल किया। प्रवासी लोग भी तो पैसा लगाते हैं। सरकारी ठेकों में दलाल को मंजूरी मिलने ही वाली है। फ़िर आन दो विदेशी पूंजी देश सेवा के काम में भी। लगान दो विदेशियों को खुल्लम खुल्ला पैसा देश सेवा में।
देश सेवा के काम में एफ़.डी.आई. होने से एक तो फ़ायदा यह होगा कि फ़िर विदेशी पूंजी का हल्ला नहीं मचेगा। दूसरे अपने देश की पूंजी चुनाव में जो फ़ुंकती है वह बचेगी। देश का पैसा बचेगा। विदेशी पूंजी से बैनर, पोस्टर बनेंगे तो देश के लोगों को और रोजगार मिलेगा।
कुछ लोगों को शायद एतराज हो सकता है कि देश सेवा के काम में विदेशी पूंजी का दखल खतरनाक है। देश के लिये खतरा है। तो भैये हमारा कहना यह है कि अभी कौन विदेशी पूंजी कम गदर काटे है। अभी वह चोरी से आती है तो गड़बड़ करती है। एफ़.डी.आई. के रास्ते आयेगी तो अपना घर समझकर आयेगी। उसको देश की चिन्ता होगी और वह यहां मन लगाकर काम करेगी।
कुल मिलाकर हमको तो यही लगता है देश सेवा के धड़ल्लेदार विकास के लिये देशसेवा के काम में एफ़.डी.आई. बहुत जरूरी है। आपको क्या लगता है?
जनसत्ता में दिनांक 28.01.15 को
कल 24/जनवरी/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !