आज सर्वहारा पुलिया पर धूप सेंकते रामप्रसाद मिले।पनागर में रहते हैं।ड्राइवरी का काम करते हैं। कुछ दिन पहले तक बीएसएनएल में ठेके पर गाड़ी चलाते थे। 5000 रूपये महीने मिलते थे। इस बार ठेका किसी दूसरी फर्म को मिला तो काम ठप्प ड्राइवरी का। अब जो गाड़ी मिल जाती है उसको चला लिए हैं। जब काम नहीं मिलता तो इधर-उधर टहलते हैं।
रामप्रसाद कोल हैं। घर में खेती भी है। बाल-बच्चों के बारे में पूछने पर बताया कि बच्चे नहीं हैं। शादी हुई थी तब जब जबलपुर में बड़ा वाला भूकम्प आया था।
बच्चों के लिए डाक्टर को दिखाने की बात पर बताया डाक्टरों को दिखाने के अलावा अपने यहां पूजारियों को भी दिखाया। लकड़बाबा को भी। लोगों ने बताया कि देवी की पूजा करनी होगी। वो खुश होंगी तभी कुछ होगा। लेकिन देवी की पूजा में अड़चन है।
अड़चन यह कि देवी की पूजा में बलि देनी होगी। माँस बनाना खाना होगा।लेकिन रामप्रसाद की पत्नी और खुद रामप्रसाद शाकाहारी हैं। इसलिए देवी मान ही नहीं रहीं हैं। जब तक मांस नहीं चढ़ाया जायेगा तब तक देवी मानेंगी नहीं। लफड़ा है।
रामप्रसाद के बारे में यह लिखते हुए सोच रहा हूँ आजकल हर अगला अपने यहां की महिलाओं को चार बच्चे कोई कोई तो पांच बच्चे पैदा भी करने का नारा लगा देता है। लेकिन तरकीब कोई नहीं बताता कि इसमें किस देवी/देवता की पूजा करनी होगी। किस अस्पताल में डिलिवरी होगी। कहाँ रहेंगी इतनी सन्तानें? किन स्कूलों में पढ़ेंगी?क्या खायेंगी?
ओह हम भी कहाँ से कहां पहुंच गये। टीवी पर बहस आ रही है-"दिल्ली में अगली सरकार किसकी बनेगी?"
आप किसकी सरकार बनवा रहे हैं। खैर छोडिये । सुनते हैं बहस। :)
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