हमने कहा- " अभी यहां मौसम बहुत खराब है। जहाज उतर नहीं पाते। रामफ़ल भी इतवार को इस बार फ़ैक्ट्री के पास ही ठेला लगायेंगे। पुलिया पर नहीं आयेंगे। अभी रहन देव। फ़िर कभी देखा जायेगा। "
वो बोले -" ठीक है , भाई साहब, जैसा आप कहें।"
ओबामा जी ने फोन करके पूछा- "भाई साहब आप बिना समुचित सुरक्षा इंतजाम के कैसे इतने मस्त रहते हैं? " हमने बताया -"हम अपना लक पहन के चलते हैं।लक्स कोजी पहनते हैं।"
इस पर वो बोले -" हम फालतू में सुरक्षा के लिए हथियार पर इतना पैसा फूंकते हैं। हम भी लक पहन के चलने लगेंगे।पैसा बचाएंगे।"
हमने कहा-"ऐसा करोगे तो हथियार कम्पनी के मालिक अपना राष्ट्रपति बदल देंगे।"
वो बोले- "हाँ भाईसाहब आप बात तो सही कहते हैं।"
वो बोले- "हाँ भाईसाहब आप बात तो सही कहते हैं।"
"अबे ये बताओ कि ओबामा मसाला कौन सा खाता है पान पराग की कमला पसंद?" -एक सहज कनपुरिया जिज्ञासा।
परमाणु समझौता सम्पन्न होते ही अमेरिकी रिएक्टर बनाने वालों ने ओबामा को एस.एम.एस. किया - "कबाड़ के अच्छे दाम मिल गए।गुड वर्क डन।"
शुरू करो अंताक्षरी लेकर हरि का नाम ।"
अमेरिका से दोस्ती करते समय यह ध्यान भी रखना होगा कि उसका और हमारे कानपूरिया "ठग्गू के लड्डू" का एक ही नारा है....
"ऐसा कोई सगा नही,
जिसको हमने ठगा नही"
भारत और अमेरिका परमाणु समझौता उम्रदराज हो चुकी लड़की (पुरानी होती परमाणु तकनीक) और बुढौती की तरफ़ बढ़ते लड़के( कोई रिश्ते की आस में) के गठबंधन सरीखा है। रिश्ता तय होने दोनों पक्ष खुश हैं।
"तुम हमें नयी नौकरी दो, हम तुम्हें पुराने रिएक्टर देंगे।" -अमेरिका का नारा।
एक कानी लड़की का विवाह लड़के वालों को झांसे में डालकर सम्पन्न कराया गया।शादी होते ही लड़की वालों की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा और उनमें से एक चिल्लाया- 'जग जीति लिहिस मोरी कानी'
(हमारी कानी लड़की ने संसार पर विजय प्राप्त कर ली)
इस पर लड़के वालों में से एक ने कहा-
'वर ठाड़ होय तब जानी'
(लड़का खड़ा हो जाय तब समझना--(वर लँगड़ा था) )
टेलीविजन पर भारत अमेरिकी संबंधों पर भारतीय मीडिया का लहालोट उत्साह देखकर यह कथा याद आ गयी।
'वर ठाड़ होय तब जानी'
(लड़का खड़ा हो जाय तब समझना--(वर लँगड़ा था) )
टेलीविजन पर भारत अमेरिकी संबंधों पर भारतीय मीडिया का लहालोट उत्साह देखकर यह कथा याद आ गयी।
2008 में हुआ परमाणु समझौता सुरक्षा कारणों रुका हुआ था।अब वह अड़चन दूर हो गयी और तय हुआ कि परमाणु दुर्घटना की स्थिति में बीमा की रकम भारत की बीमा कम्पनियां और भारत सरकार देगी और रही बात लोगों की जान की तो उसकी क्या कीमत? वैसे भी देश के (विकास के) लिए कुर्बान होने वालों की जान की कीमत भला कोई लगा सका है आजतक?
1. अमेरिका में 100 न्यूक्लियर रिएक्टर हैं जो कि वहां की 19.40 % ऊर्जा की कमी पूरा करते हैं।
2. वहां 1974 से कोई नया प्लांट नहीं लगा।
3. न्यूक्लियर पावर प्लांट लगाना और उसका रखरखाव मंहगा है।
4. बचे हुये ईंधन का सुरक्षित रखरखाव कठिन काम है।
5. जापान में हुई नाभिकीय दुर्घटना के कारण।
6. 2013 में चार पुराने रिएक्टर लाइसेंस अवधि के पहले ही स्थायी रूप से बंद कर दिये गये। ऐसा करने के पीछे ऊंची रिपेयर और रखरखाव की कीमत और गैस के दाम कम होने के कारण किया गया।
7. बढ़ती आतंकवादी गतिविधियों के चलते न्यूक्लियर पावर प्लॉंट सुरक्षा की दृष्टि से बहुत संवेदनशील हैं।
जो देश मंहगे होने और सुरक्षा की दृष्टि से खतरनाक होने के चलते खुद अपने यहां नाभिकीय पावर प्लॉंट नहीं लगा रहा उसके साथ न्यूक्लियर पावर समझौता उल्लास का विषय है तो क्या सिर्फ़ इसलिये कि हमारे यहां लोगों की जान सस्ती है?
स्रोत:http://en.wikipedia.org/wiki/Nuclear_power_in_the_United_States
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