Wednesday, August 05, 2015

थोड़े से दिन जुगाडे थे

थोड़े से दिन जुगाडे थे, संसद ने बहस के लिए,
कुछ निलम्बन में बीत गए, बाकी चीख पुकार में।

बैठा तो दिया था, जनता को बाजार की गोद में,
बची कि निपट गयी, पता चलता नहीं चीख पुकार में।

स्मार्ट बनेंगे, आगे बढ़ेंगे, होगी समूची दुनिया मुठ्ठी में,
जाने क्या-क्या बड़बड़ा रहा है ,वो नींद के खुमार में।
-कट्टा कानपुरी

No comments:

Post a Comment