Friday, August 07, 2015

कोई अपना मुझे कहे तो सही

आज पहली मंजिल के बरामदे से निकलते हुए देखा कि पीले फूलों से लदा पेड़ गुलदस्ते की तरह खड़ा था। मेस से निकलते ही बनी पुलिया पर बैठी अकेली महिला पल्लू से आँखें पोंछ रही थी। पता नहीं आँख की तकलीफ थी या आंसू।

बुर्जुआ पुलिया पर 'बड़सयान से मिला ज्ञान' ( http://fursatiya.blogspot.in/2015/06/blog-post_16.html) वाले रामनिरंजन अपने एक साथी के साथ मिले। शिकायत की -'बहुत दिन से दिखे नहीं। हम रोज इंतजार करते हैं शाम को। टहलने वाले पूछते हैं कि कहीँ चले गए क्या साहब ।' हमने रामनिरंजन जी का 'पुलिया समय' नोट किया। शाम 7 बजे करीब। आगे निकल लिए।

मन किया रामफल के यहां जाएँ। उनके घर वालों के हालचाल पूंछे। उधर की तरफ मुड़े ही थे कि सड़क पर रस्सी तहाता हुआ ड्राइवर दिखा। ये लोग बंगलोर के पास होसुर के अशोक लेलैंड से ट्रेलर पर इंजन, केबिन आदि सामान लाते हैं। फैक्ट्री के अंदर से कोई सामान चोरी न हो जाए इसके लिए दिए जाने वाले सामान के अलावा और कोई सामान अंदर नहीं ले जाने की व्यवस्था है। जो सामान सप्लाई होना है सिर्फ वही जायेगा अंदर। अंदर से ट्रक खाली आएगा।

ड्राइवर होसुर के पास का ही रहने वाला है। तमिल मातृभाषा है। हिंदी कामचलाऊ बोले तो 'क्वनचं-क्वनचं' मतलब थोड़ी-थोड़ी जानते हैं।हम भी जब साइकिल से भारत दर्शन को निकले थे तो दो-चार दस बीस शब्दों और इशारों से सम्वाद करके काम चलते थे। क्वनचं माने थोडा शब्द उसी समय सीखा था।

ड्राइवर के दो बेटे हैं दोनों कालेज में पढ़ते हैं। चार दिन लगते हैं होसुर से जबलपुर आने में।लौटते में नागपुर से सामान लादते हुए जाते हैं।


पास ही पुलिया पर चाय पीते हुए और भी ड्राइवर मिले। फोटो दिखाई तो मुस्कराते हुए बोले- बनियाइन में फोटो है। हमने कहा -स्मार्ट तो लग रहे हैं। इस पर मुस्कराते हुए सिगरेट सुलगाकर पीते हुए अपने काम में लग गए।
चाय पीते हुए देखा एक बच्ची आई। दूकान से चाय और टोस्ट लेकर नीचे बैठ गयी। चाय में डुबोकर टोस्ट खाने लगी। खाते हुए पैर के घाव से मक्खियाँ भगा रही थी। उसके पैर के दायें पंजे में घाव था। पूछा तो संकेत से बताया कि जल गई। इशारे से दियासलाई जलाने का इशारा किया और आग पैर में गिरने का। बोल नहीं पाती लेकिन सुन ले रही थी। किसी को कुछ पता नहीं कि कहां रहती है। चाय वाले ने बताया कि कभी-कभी आती है।शायद कन्चनपुर में रहती है।

बात करने से कुछ पता नहीँ लगा। लेकिन घाव पर उड़ती मक्खियां देखकर मन किया कि इसकी ड्रेसिंग हो जाए तो ठीक। लेकिन असप्ताल तक जाए कैसे। असमंजस में पड़े हुए हम लौटने को हुए। संवेदना जता दी। बहुत है।
लेकिन चलते हुए अचानक मैंने उससे कहा चलो ड्रेसिंग करवा दें। बच्ची चुपचाप मेरी साइकिल के कैरियर पर दोनों तरफ पैर करके बैठ गयी। चाय की दुकान पर मैंने बता दिया कि इसको डिस्पेंसरी ले जा रहे हैं।





रास्ते भर मुझे बच्ची का नहीँ बल्कि पुलिस का ख्याल आता रहा। कोई कहे कि बच्ची का अपहरण करके ले जा रहे।हरिशंकर परसाई के ' इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर' याद आई जिसमें धरती से गए इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर ऐसा माहौल बना देते हैं जिसके नतीजे हुए कि:

"कोई आदमी किसी मरते के पास नहीं जाता इस डर से कि वह कत्ल के मामले में फंसा दिया जाएगा।बेटा बीमार की सेवा नहीं करता।वह डरता है कि बाप मर गया तो उस पर कहीं हत्या का आरोप न लगा दिया जाये।घर जलते रहते हैं और कोई बुझाने नहीं जाता-डरता है कि उस पर आगलगाने का जुर्म कायम न कर दिया जाये।बच्चे नदी ने डूबते रहते हैं और कोई उन्हें नहीं बचाता इस डर से कि उस पर बच्चे को डूबाने का आरोप न लग जाए।सारे मानवीय सम्बन्ध समाप्त हो रहे हैं।"

बहरहाल करीब दो किमी दूरी पर साइकिल पर बच्ची को बिठाए अस्पताल पहुंचे। वहां मौजूद नर्स और स्टाफ ने बच्ची की ड्रेसिंग की। ड्रेसिंग के समय बच्ची को दर्द हुआ तो सबने उसका पैर पकड़कर ड्रेसिंग की। बच्ची इशारे से तिकोना निशान बनाते हुए बता रही थी कि वह घर में रहती है। नर्स ने एक पालीथीन में सुफरामाइसिन भी दे दी। बच्ची बोल नहीं पा रही थी। हमने ईश्वर के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया कि एक तो बच्ची को गरीब बनाया फिर उसकी वाणी भी रख ली। कितना गड़बड़ करते हो दीनबन्धु दीनानाथ।

लौटकर बच्ची को चाय की दूकान पर ही छोड़ दिया। वह बड़े सलीके से घाव के ऊपर की जालीदार पट्टी की सिकुडन दूर करके उसको सीधा कर रही थी। हाथ में 50 रुपए के नोट सहित करीब 70-80 रूपये थे। पहले मैंने सोचा कि शायद भीख मांगती होगी। लेकिन फिर लगा कि भीख मांगने वाली बच्ची के पास बड़े नोट कैसे होंगे।
कुछ देर बच्ची से सम्वाद करते हुये हमें कुछ समझ नहीं आया सिवाय इसके कि दफ्तर जाते समय चाय वाले को अपना फोन नम्बर दे देंगे ताकि जब कभी बच्ची फिर आये तो हमको बता दे और हम उसकी ड्रेसिंग करा दें।
हम चले तो बच्ची भी लंगड़ाती हुई कन्चनपुर की तरफ चली गयी। पहले मन हुआ कि साथ साथ चले जाएँ देखें कि कहां रहती है लेकिन फिर नहीं गए।

लौटते में पुलिया पर फैक्ट्री में काम करने वाली महिलाएं फैक्ट्री खुलने का इन्तजार करती बैठी थी। एक ने पूछा- गुड़िया को कहां ले जा रहे थे साहब। हमने बताया और बदले में उनसे पूछा-तम्बाकू क्यों खाती हो। मत खाया करो। उन्होंने अपने मुंह की पूरी तम्बाकू बाहर थूक दी। हम तम्बाकू न खाने की सलाह देते हुए वापस लौट आये।
अब इसको पोस्ट करते हुए मुझे अपने शाहजहाँपुर के शायर जो वजीर अंजुम जो कि हमारी ही फैक्ट्री में काम करते थे के मुंह से सुने ये शेर याद आ रहे हैं।सच तो यह कि याद तो पिछले कई दिन से आ रहे हैं लेकिन आज मन कर रहा है कि आपको भी पढ़ा दें। तो फरमाइए मुलाहिजा।अर्ज किया है:
हादसे राह भूल जायेंगे
कोई मेरे साथ चले तो सही।
मैं अपना सब गम भुला तो दूं लेकिन
कोई अपना मुझे कहे तो सही।
अब बस। चले दफ्तर। आपका दिन शुभ हो। मंगलमय हो।

फ़ेसबुक की टिप्पणियां

  1. Alok Puranik गहरी निकाल के लाते हैं जी।
  2. आर. के. निगम संवेदनाओं को उभारती पोस्ट ....... साधुवाद के हक़दार हैं आप !
  3. Hariom Choubey आप बच्ची के लिये बजरंगी चचा बन गये ।
  4. Vijay Wadnere सुबह सुबह ताज़ी हवा में सैर से मेरी तबियत भी थोड़ी बनने लगी है। smile इमोटिकॉन
  5. Pradeep Singh उस बच्ची के मरहम पट्टी के िलये धन्यवाद सर जी
  6. Rakesh Kumar ईश्वर स्वयं नहीं आता हाँ वो अपने जैसा इंसान को भेजता जरूर है ।

    प्रणाम !
  7. Anamika Vajpai शुक्रिया आपका उस बच्ची की तरफ से जो बोल नहीं सकती, दीनबंधु दीनानाथ से कोई शिकायत नहीं, बहुत से बनाये हैं उन्होंने आप जैसे।
  8. Virendra Bhatnagar परदुखकातर शुक्ल जी सादर प्रणाम ।
  9. Virendra Bhatnagar यह हमारे सिस्टम की विडम्बना ही है कि किसी अजनबी दुखी, घायल इन्सान की सहायता करने वाले को पुलिस का डर सताता है लेकिन अपराधी प्रवृत्ति के लोग पुलिस से बेखौफ़ अपनी गतिविधियों को अंजाम देते रहते हैं ।
  10. Sushil Kumar Jha इससे शानदार शुभ प्रभात हो ही नहीं सकती, आपके लिए और हमारे लिए भी।ऐसी लेख मानव बनने की ओर चलने की प्रेरणा देती है।
  11. Rekha Srivastava वैसे जहाँ पुण्य बटोरने का अवसर मिलता है बटोर लेते हैं । ईश्वर ने ऐसे इंसान कम क्यों बनाये ?
  12. Rajeshwar Pathak सुखद अहसास
    प्रणाम स्वीकार करे सर
  13. Ajai Rai गरीब की सेवा ईसवर की सेवा
    महान काम.
  14. Swadha Sharma बहुत संवेदनशील वाकया और प्रभावपूर्ण लेखन सर .. मानवता वहीँ पर दम तोड़ देती है जहाँ सक्षम लोग आंखे फेर लेते है
  15. सुमन जायसवाल andho me kane raja wali kahawat ko akhri salam........................................ek nai kahawat banani hogi ajke bujurgo ko !
  16. सुमन जायसवाल sanvedna jata di bahut hai ............................nahi wo galat bat thi, atma ne sahi rah dikhai hi kyu???
  17. Mukesh Sharma आज आपकी सुबह की सायक्लिंग वाकई में सार्थक हो गयी ।गुड़िया की इतनी आत्मीयता के साथ ड्रैसिंग करा कर आपने आज एक पुण्य कार्य किया है ।एक अलमस्त फक्कड़ ऑफिसर के अंदर ऐसा संवेदनशील इंसान छुपा है जो आज के समय में rarest of the rare है ।साधुवाद साधुवाद ।हां जब आ...और देखें
  18. Mahmud Alam · Vijay Sappatti और 1 other के मित्र
    Dhannya hain aap ! Garibon ke sachhe masiha, aap jaise prerna purush se hi manavta aur bhartiyata viddmaan h ab tak, pahnawa aur wyaktitwa se shahri abhijatya dikhna apki bahri awaran maatra hai aantarik rup se aap sakshat godan ka hori aur premashram ...और देखें
  19. RB Prasad "मैं अपना सब गम भुला तो दूं लेकिन
    कोई अपना मुझे कहे तो सही।"......सर ! आप सचमुच महान हैं ! मेरा नमन ! गुडिया की एक फोटो तो बनती थी.
  20. Hirendra Kumar Agnihotri साहब, परसाईं जी होते तो कहते , "शुकुल महाराज , बच्चों के अपहरण का रिहर्सल कर रहे हो कि पट्टी करवा रहे हो ? "
  21. Arvind Mishra Sir, aap ki rachnayen aur khinchi gaye photo jo aam aadmi ki roz-marra ki zindagi se jude hote hain atyant sundar hoti hain. Big salute to u sir.
  22. Sunita Damayanti आपको ढेरों शुभकामनाएँ।
  23. Rahul Tiwari Is bachhi Ka Ghr suhagi k pas kahi hai..kai baar vfj security inke Ghr tk pahuchane gye hain PR fir ye ghum k wapas aa jati hain...

No comments:

Post a Comment