आज पानी बरस रहा। घूमने नहीं जा पाये। खराब लगा। कुछ अच्छा भी। खराब इसलिए कि किसी से मुलाकात नहीं हो पायी। अच्छा इसलिए कि इत्मिनान से टीवी देखते हुये,चाय पीते हुए बाहर बरसते पानी को देख रहे हैं।
इतना लिखने के बाद मन किया पत्नी को फोन करने का। वो अभी स्कूल में होगी। फोन किया उठा नहीं। कई काम एक के बाद एक याद आये करने के लिए। कल शाम को मन किया ऐसे कामों की सूची बनाई जाए जो मैं पिछले दिनों करना चाहता था लेकिन शुरू भी नहीं कर पाया।
आगे कुछ लिखने के पहले कुछ दोस्तों के गुडमार्निंग आ गए व्हाट्सऐप और फेसबुक पर। कुछ को हमने पहले से भेज दिए। आते-जाते गुडमॉर्निंग कहीं मिलते होंगे एक-दूसरे से तो पता नहीं आपस में हाउ डू यु डू करते होंगे कि नहीं। क्या पता करते भी हों।
सम्भव है मेरे मोबाईल से निकला सन्देश जिस मोबाईल टावर पर सुस्ता रहा हो उसी टावर पर दोस्त का भी सन्देश बैठकर चाय पी रहा हो।दोनों आपस में बातचीत करके जहां से आये और जहां जा रहे वहां के हाल-चाल ले रहे हों।
क्या पता हमारे मोबाइल से निकला सन्देश दोस्त के मोबाइल से निकले सन्देश से कहता हो-'अरे जल्दी जाओ यार,आज वो टहलने नहीं गया। इंतजार में है कि जल्दी से सन्देश आये तो मुस्कराये।'
सन्देश वार्ता को फिर से स्थगित कामों की लिस्ट बनाने वाले विचार ने धकिया दिया। बोला अब तुम जाओ हम पर काम होने दो। काम शुरू हो तब तक सामने टीवी पर मुकेश की आवाज गूंजने लगी:
हमने आइडिया को देखा। नई सी लगती चीज कह रहा था 'चाँद सी महबूबा' वाले गाने के सिलसिले में।बोलता है--'देखिये बिम्ब की दुनिया में भी कितना घपला है गुरु। महबूबा स्त्रीलिंग होती है। महबूब पुल्लिंग। लेकिन देखिये यहां महबूबा को चाँद जैसी बताने की भी बात हुई। ऐसा सालों से हो रहा है।कितना बड़ा बिम्ब घोटाला है यह। बिम्ब की दुनिया में यह समलैंगिकता न जाने कब से जारी है और आज तक किसी ने इस पर एतराज नहीं किया।'
हमने आइडिया से कहा-ठीक है। तुम तो पहले भी कई बार आ चुके दिमाग में।लिखेंगे कभी इत्मीनान से।हड़बड़ी न करो। आराम से रहो। आइडिया भुनभुनाने लगा। उसकी मुद्रा कुछ ऐसी दिखी मानो कुछ और आइडिये उसका साथ देते तो दिमाग में इंकलाब जिंदाबाद कर देता।
कुछ और लिखने के पहले पास में रखे थर्मस को उसका ढक्कन 4 चक्कर घुमाकर चाय निकाली। ठण्डी हुई चाय को पिया। दो ही घूंट तो बची थी। मन किया कि और मंगा लें क्या चाय? फिर मन के उसी हिस्से ने तय किया -अब नहीं। बहुत हुई दो चाय सुबह से।
अधूरे पड़े कामों की लिस्ट फिर से फड़फड़ाने लगी।बोली हमपर लिखो पहले। हमने कहा इतनी बड़ी लिस्ट कैसे लिखे भई तुम पर। लिस्ट बोली हमें कुछ न पता। नहीं लिखोगे तो और जोर से फड़फड़ाने लगेंगे। लिखो चाहे आधा-अधूरा ही लिखो। 'आधा-अधूरा' से लगा कि लिस्ट वाला आइडिया पढ़ा-लिखा सा है। मोहन राकेश का नाटक 'आधे-अधूरे' पढ़ने की तरफ इशारा कर रहा है।
खैर आइये आपको कुछ उन बातों का जिक्र करते हैं जो हम।करना चाहते थे लेकिन अब तक कर नहीं पाये। बिना किसी क्रम देखिये:
1. मन था कि कोई एक दक्षिण भारतीय भाषा सीखें।नहीँ सीख पाये।
2. मराठी शब्दकोश के सहारे पु.ल.देशपांडे को पढ़ना चाहते थे। नहीं पढ़ पाये।
3. अपने पास रखी सब किताबें पढ़ने का इरादा अमल में नहीं ला पाये।
4.साइकिल से नर्मदा परिक्रमा करने का आइडिया अमल में नहीँ ला पाये।
5.पेंटिंग और कोलाज बनाना सीखने का मन था। नहीं कर पाये।
6. किसी छुट्टी के दिन पैसेंजर ट्रेन से पचास-साठ किलोमीटर जाकर वापस आने की सोच अमल में नहीं ला पाये।
7.जिन लोगों के रोज फोटो लेते उनको बनवाकर देने का मन था फोटो । नहीं दे पाये।
8. नेत्र दान, देहदान का फ़ार्म भरना था। नहीं भर पाये।
9.एक लेख लिखना था - स्त्री -पुरुष का लिंग साल में एक माह के लिए बदलना अगर अनिवार्य होता तो समाज व्यवस्था पर उसका क्या असर होता।
10. एक लेख इस पर भी कि साल एक माह जीवनसाथी का मनमर्जी के साथी के साथ रहने की व्यवस्था होती समाज में तो क्या फर्क पड़ता।
12.अपने फेसबुक के सारे लेख उठाकर ब्लॉग पर डालना चाहता था। अब तक पूरा नहीं कर पाया।
13. अपने व्यंग्य लेख की किताब पूरी करने का मन था। नहीं हो पाया।
14. नियमित कम से कम एक व्यंग्य लेख लिखने की चाहत पर अमल नहीं कर पाया।
15. अपने कई मित्रों से अरसे से बात नहीं कर पाया उनसे बात करने का मन था। नहीं कर पाया।
16.फेसबुक पर जिनके अनुरोध आये उनको स्वीकार करना था नहीं कर पाया।
17.जिन कामों को हम समय की बर्बादी मानते हैं उनको कम करना चाहते थे नहीँ कर पाये।
18.कई पुरानी पिक्चर्स देखने का मन था नहीं देख पाये।
ओह कितनी तो इच्छायें है जिनको हम पूरा करना चाहते हैं लेकिन कर नहीं पाये। अभी तो शुरू भी नहीँ पाये लिखना। इनमें दफ्तर और पारिवारिक जिंदगी से सम्बंधित बातें तो लिखी ही नहीं।
बहरहाल यह सोचते हुए कि अभी तक नहीं किया तो क्या आगे तो कभी किया जा सकता है न। वो कहा गया है न-सब कुछ लुट जाने के बाद भी भविष्य बचा रहता है। आगे देखा जायेगा।
फ़िलहाल तो दफ्तर का समय हुआ। चलना पड़ेगा। चलते हैं। आप मजे करो। मस्त रहा जाए। खुश। मुस्कराते हुए।मुस्कराता हुआ इंसान दुनिया का सबसे खूबसूरत इंसान होता है। आप भी हैं अगर अभी आप मुस्करा रहे हैं। सच्ची ।
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10206305606652519
इतना लिखने के बाद मन किया पत्नी को फोन करने का। वो अभी स्कूल में होगी। फोन किया उठा नहीं। कई काम एक के बाद एक याद आये करने के लिए। कल शाम को मन किया ऐसे कामों की सूची बनाई जाए जो मैं पिछले दिनों करना चाहता था लेकिन शुरू भी नहीं कर पाया।
आगे कुछ लिखने के पहले कुछ दोस्तों के गुडमार्निंग आ गए व्हाट्सऐप और फेसबुक पर। कुछ को हमने पहले से भेज दिए। आते-जाते गुडमॉर्निंग कहीं मिलते होंगे एक-दूसरे से तो पता नहीं आपस में हाउ डू यु डू करते होंगे कि नहीं। क्या पता करते भी हों।
सम्भव है मेरे मोबाईल से निकला सन्देश जिस मोबाईल टावर पर सुस्ता रहा हो उसी टावर पर दोस्त का भी सन्देश बैठकर चाय पी रहा हो।दोनों आपस में बातचीत करके जहां से आये और जहां जा रहे वहां के हाल-चाल ले रहे हों।
क्या पता हमारे मोबाइल से निकला सन्देश दोस्त के मोबाइल से निकले सन्देश से कहता हो-'अरे जल्दी जाओ यार,आज वो टहलने नहीं गया। इंतजार में है कि जल्दी से सन्देश आये तो मुस्कराये।'
सन्देश वार्ता को फिर से स्थगित कामों की लिस्ट बनाने वाले विचार ने धकिया दिया। बोला अब तुम जाओ हम पर काम होने दो। काम शुरू हो तब तक सामने टीवी पर मुकेश की आवाज गूंजने लगी:
चाँद सी महबूबा हो कब ऐसा मैंने सोचा थायेल्लो एक आइडिया और उछलकर सामने आ गया। जैसे ललित मोदी और व्यापम घोटाले को धकियाकर गुजरात में पटेल आरक्षण का मुद्दा मीडिया पर पसर जाये वैसे ही यह नवका आइडिया बोला-पहले हम पर लिखिए न जी। देर किये तो हम किसी और के की बोर्ड चले जाएंगे। तमाम लोग बैठे हैं सुबह-सुबह हमको लपकने के लिए।
हाँ तुम बिलकुल वैसी हो जैसा मैंने सोचा था।
हमने आइडिया को देखा। नई सी लगती चीज कह रहा था 'चाँद सी महबूबा' वाले गाने के सिलसिले में।बोलता है--'देखिये बिम्ब की दुनिया में भी कितना घपला है गुरु। महबूबा स्त्रीलिंग होती है। महबूब पुल्लिंग। लेकिन देखिये यहां महबूबा को चाँद जैसी बताने की भी बात हुई। ऐसा सालों से हो रहा है।कितना बड़ा बिम्ब घोटाला है यह। बिम्ब की दुनिया में यह समलैंगिकता न जाने कब से जारी है और आज तक किसी ने इस पर एतराज नहीं किया।'
हमने आइडिया से कहा-ठीक है। तुम तो पहले भी कई बार आ चुके दिमाग में।लिखेंगे कभी इत्मीनान से।हड़बड़ी न करो। आराम से रहो। आइडिया भुनभुनाने लगा। उसकी मुद्रा कुछ ऐसी दिखी मानो कुछ और आइडिये उसका साथ देते तो दिमाग में इंकलाब जिंदाबाद कर देता।
कुछ और लिखने के पहले पास में रखे थर्मस को उसका ढक्कन 4 चक्कर घुमाकर चाय निकाली। ठण्डी हुई चाय को पिया। दो ही घूंट तो बची थी। मन किया कि और मंगा लें क्या चाय? फिर मन के उसी हिस्से ने तय किया -अब नहीं। बहुत हुई दो चाय सुबह से।
अधूरे पड़े कामों की लिस्ट फिर से फड़फड़ाने लगी।बोली हमपर लिखो पहले। हमने कहा इतनी बड़ी लिस्ट कैसे लिखे भई तुम पर। लिस्ट बोली हमें कुछ न पता। नहीं लिखोगे तो और जोर से फड़फड़ाने लगेंगे। लिखो चाहे आधा-अधूरा ही लिखो। 'आधा-अधूरा' से लगा कि लिस्ट वाला आइडिया पढ़ा-लिखा सा है। मोहन राकेश का नाटक 'आधे-अधूरे' पढ़ने की तरफ इशारा कर रहा है।
खैर आइये आपको कुछ उन बातों का जिक्र करते हैं जो हम।करना चाहते थे लेकिन अब तक कर नहीं पाये। बिना किसी क्रम देखिये:
1. मन था कि कोई एक दक्षिण भारतीय भाषा सीखें।नहीँ सीख पाये।
2. मराठी शब्दकोश के सहारे पु.ल.देशपांडे को पढ़ना चाहते थे। नहीं पढ़ पाये।
3. अपने पास रखी सब किताबें पढ़ने का इरादा अमल में नहीं ला पाये।
4.साइकिल से नर्मदा परिक्रमा करने का आइडिया अमल में नहीँ ला पाये।
5.पेंटिंग और कोलाज बनाना सीखने का मन था। नहीं कर पाये।
6. किसी छुट्टी के दिन पैसेंजर ट्रेन से पचास-साठ किलोमीटर जाकर वापस आने की सोच अमल में नहीं ला पाये।
7.जिन लोगों के रोज फोटो लेते उनको बनवाकर देने का मन था फोटो । नहीं दे पाये।
8. नेत्र दान, देहदान का फ़ार्म भरना था। नहीं भर पाये।
9.एक लेख लिखना था - स्त्री -पुरुष का लिंग साल में एक माह के लिए बदलना अगर अनिवार्य होता तो समाज व्यवस्था पर उसका क्या असर होता।
10. एक लेख इस पर भी कि साल एक माह जीवनसाथी का मनमर्जी के साथी के साथ रहने की व्यवस्था होती समाज में तो क्या फर्क पड़ता।
12.अपने फेसबुक के सारे लेख उठाकर ब्लॉग पर डालना चाहता था। अब तक पूरा नहीं कर पाया।
13. अपने व्यंग्य लेख की किताब पूरी करने का मन था। नहीं हो पाया।
14. नियमित कम से कम एक व्यंग्य लेख लिखने की चाहत पर अमल नहीं कर पाया।
15. अपने कई मित्रों से अरसे से बात नहीं कर पाया उनसे बात करने का मन था। नहीं कर पाया।
16.फेसबुक पर जिनके अनुरोध आये उनको स्वीकार करना था नहीं कर पाया।
17.जिन कामों को हम समय की बर्बादी मानते हैं उनको कम करना चाहते थे नहीँ कर पाये।
18.कई पुरानी पिक्चर्स देखने का मन था नहीं देख पाये।
ओह कितनी तो इच्छायें है जिनको हम पूरा करना चाहते हैं लेकिन कर नहीं पाये। अभी तो शुरू भी नहीँ पाये लिखना। इनमें दफ्तर और पारिवारिक जिंदगी से सम्बंधित बातें तो लिखी ही नहीं।
बहरहाल यह सोचते हुए कि अभी तक नहीं किया तो क्या आगे तो कभी किया जा सकता है न। वो कहा गया है न-सब कुछ लुट जाने के बाद भी भविष्य बचा रहता है। आगे देखा जायेगा।
फ़िलहाल तो दफ्तर का समय हुआ। चलना पड़ेगा। चलते हैं। आप मजे करो। मस्त रहा जाए। खुश। मुस्कराते हुए।मुस्कराता हुआ इंसान दुनिया का सबसे खूबसूरत इंसान होता है। आप भी हैं अगर अभी आप मुस्करा रहे हैं। सच्ची ।
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10206305606652519
No comments:
Post a Comment