Tuesday, January 06, 2015

ये तो हमारे यहां बहुत पहले हो चुका है






आजकल लोग कहते घूम रहे हैं कि भारत दुनिया का सबसे ज्ञानी देश था। जहाज वहाज उड़ते थे यहां। सर्जरी वर्जरी होती थी।

इस पर दूसरे इस बात की खिल्ली उड़ा रहे हैं। अगर था यह सब तो गुल किधर हो गया।

 क्या पता रहा हो सब कुछ लेकिन रख-रखाव के अभाव में खराब हो गया हो। पुराने जमाने में ऋषि लोग ज्ञानी बहुत होते थे। वे उन सारी चीजों को बना लेते थे जो आज आधुनिक कही जाती हैं। लेकिन उनके संचालन का काम करने के लिये लोग नहीं मिलते थे इसलिये वे चीजें पड़े-पड़े, खडे-खड़े खराब हो जाती होंगी। कबाड हो जाती होंगी।  बाद में दूसरे देश वाले हमारा कबाड़ उठाकर ले गये और धो-पोछकर, मांजकर चमका कर चला रहे होंगे।

यह कुछ ऐसे ही हुआ होगा जैसे कि सरकारी कारखाने में उन्नत तकनीक की मशीनें रखरखाव और देखभाल के अभाव में कबाड़ हो जाती हैं। कुछ मंहगी मशीनें तो खुलती ही नहीं हैं। जिस बक्से में आती हैं उसी में धरी रहती हैं। कबाड़ हो जाने पर इनकी नीलामी की जाती है। कबाड़ी लोग इनको सस्ते दामों में खरीदते हैं। फ़िर उन मशीनों से ही वही सामान बनाकर सरकार को ही सप्लाई करते हैं जिसको बनाने के लिये सरकारी कारखानों में मशीनें लगाई गयीं थीं।

अपने देश के लोग दिमाग से बहुत तेज थे। आज भी तेज हैं। दुनिया में कोई भी खोज हो रही होती है वे चुपचाप निठल्ले उसे देखते रहते हैं। जैसे ही खोज की घोषणा होती है वे खट से अपने किसी पुराने ग्रन्थ से कोई श्लोक  पटककर कहते हैं- "ये तो हम पहले कर चुके हैं। इसमें कौन बड़ी बात है।"

दुनिया में जो भी आधुनिक हो रहा है और आने वाले सैकड़ों सालों में होने वाला है वह हम हज्जारों साल पहले ही कर चुके हैं। क्या जरूरत है अब दुबारा वह सब करने की। फ़ालतू का टाइम वेस्ट। जो मजा गीता बांचने में है वह मजा वैज्ञानिक खोज में कहां ? ये लोग भी देखना जब खोज बीन करके थक जायेंगे तब बोर होकर गीता पढ़ने लगें। उनको भी समझ आयेगा- "काव्य शास्त्र विनोदेन कालो गच्छ्ति धीमताम।" मतलब विद्वान लोगों का समय काव्य शास्त्र से मनोविनोद करने में ही खर्च होना चाहिये। ये खोज-वोज फ़ालतू का समय बर्बाद करना है।

मैं सूरज से संबंधित पोस्टें लिखता हूं। उनमें सूरज को भाई कहकर संबोधित करता हूं। उनको चाय पिलाता हूं। हंसी-मजाक भी करता हूं। यह सब कल्पना की उड़ान है। क्या पता कल को कोई हमारी पोस्टें पढ़कर सैकड़ों साल बाद किसी विज्ञान कांफ़्रेंस में कहे- "जिस सूरज की सतह पर जाने की बात आज हो रही है उस सूरज को 21 सदी में हमारे पूर्वज अनूप शुक्ल अपने पास बुला लेते थे। वह रोज उनके साथ चाय पीता था। भारत विज्ञान के मामले में दुनिया का सबसे उन्नत देश था , है और रहेगा।"

कभी कल्पना करता हूं कि कभी रिसर्च के मामले  में हम इतने आगे हो जायेंगे कि जब हवा की जरूरत होगी तो पानी के अणु H2O को तोड़कर आक्सीजन सूंघ लेंगे और जब कभी पानी चाहिये होगा तो हवा से आक्सीजन और किसी दूसरी चीज से हाइडोजन निकालकर दोनों को रगड़कर पानी बनाकर पी लेंगे। लेकिन यह लिखने से हिचकता हूं इसलिये कि आगे कोई भी रिसर्च होगी तो वह हमारी इस उपलब्धि के सामने बौनी हो जायेगी।

हमारी समस्या यही है कि दुनिया में कहीं कुछ नयी खोज होती है हम भागकर अपनी हज्जारों साल पुरानी श्रेष्ठ संस्कृति से कोइ उद्धरण खोज लाते हैं कि यह तो पहले ही हो चुका है अपने यहां। हमारा स्वर्णिम अतीत हमें कुछ भी करने से रोकता है। जैसा मुस्ताक अहमद युसुफ़ी ने अपने उपन्यास  ’खोया पानी’ की भूमिका में लिखा है:

"कभी कभी कोई समाज भी अपने ऊपर अतीत को ओढ़ लेता है. गौर से देखा जाये तो एशियाई ड्रामे का असल विलेन अतीत है. जो समाज जितना दबा-कुचला और कायर हो उसे अपना अतीत उतना ही अधिक उज्जवल और दुहराये जाने लायक दिखायी देता है. हर परीक्षा और कठिनाई की घड़ी में वो अपने अतीत की ओर उन्मुख होता है और अतीत वो नहीं जो वस्तुत: था बल्कि वो जो उसने अपनी इच्छा और पसंद के अनुसार तुरंत गढ़ कर बनाया है."
अगर हो चुका है, पहले कर चुके हैं तो दुबारा क्यों नहीं कर पाते? उससे बेहतर क्यों नहीं हो पाता? इस सवाल का जबाब इस चुटकुले में है शायद:

"एक मास्टर साहब ने बच्चों ने पूछा- ’अगर दो आदमी दो बैलों के मिलकर एक खेत को तीन दिन में जोत लेते हैं तो बताओ तीन किसान तीन बैलों के साथ उसी खेत को कितने दिन में जोत लेंगे?’

कई बच्चों ने अलग-अलग जबाब दिये। लेकिन क्लास के सबसे शरारती बच्चे  ने सवाल नहीं लगाया/ मास्टर के पूछने  पर उसका जबाब था- ’मास्टर साहब जब एक बार खेत जुत चुका है तो उसे दुबारा जुतवाने की क्या जरूरत?"

हमारा देश दुनिया की कक्षा का सबसे शरारती बच्चा है। दुनिया में कुछ भी नया होगा तो हम उसको चुपचाप निठल्ले बने देखते रहेंगे। कोई पूछेगा तो कहेंगे- ये तो हमारे यहां बहुत पहले हो चुका है। दुबारा करने से क्या फ़ायदा?





7 comments:

  1. इस विषय पर बहुत पहले मनु स्मृति में लिखा जा चुका है.. आप क्यों दोबारा लिखकर वक़्त बर्बाद कर रहे है..?

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  2. देखिये जी
    हमारे हनुमान जी आज से कई साल पहले जम्प मारकर समुद्र लांघ लिया था और अब वहीँ काम दूसरे देश इतना बड़ा सा जहाज बनाने के बाद समद्र से तेल तेल निकालकर उसमे भरवाने के बाद लंघवा रहे हैं। फर्क सिर्फ इतना है की हनुमान जी के पास सुन्दर सुन्दर एयरहोस्टेस न थी टाइम पास को और अब है।

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  3. कल 07/जनवरी/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  4. ये तो हमारे यहां बहुत पहले हो चुका है। दुबारा करने से क्या फ़ायदा? इसी सोच के कारन तो हम आगे नहीं बढ़ पा रहे है। बहुत बड़ी बात बहुत ही साधे तरीके से कही है आपने! सुन्दर प्रस्तुति।

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  5. एकदम दुरुस्त कहना है आपका ......कब तक सुनहरे अतीत को ओढ़े रहेंगे और चुपचाप टिप्पणी कर देने से संतुष्ट हो कर फिर अगले क्षण का इंतज़ार करते रहेगें ...

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  6. बेहतरीन

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  7. Anonymous11:01 PM

    100 % sach kaha sir.

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